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This Article is From Sep 19, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : उरी हमले का कैसे जवाब देगी सरकार?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 19, 2016 21:32 pm IST
    • Published On सितंबर 19, 2016 21:32 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 19, 2016 21:32 pm IST
सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि उरी के सेना बेस कैंप पर हमले के बाद भारत सरकार क्या फैसला करती है. रविवार से लेकर सोमवार पूरे दिन सरकार के संबंधित विभागों के मंत्रियों अधिकारियों और सेना प्रमुखों की लगातार बैठकें चलती रहीं. इन विभागों में आपातकालीन माहौल है. इस बार आपको यह बदलाव दिखेगा कि सरकार भी चुप है. बीजेपी के नेताओं की बयानबाज़ी बंद है. 'एक दांत के बदले जबड़ा उखाड़ने' जैसे बयानों से भी बचने की हिदायत दी गई है. अगर कहीं कुछ नहीं बदला है, तो वह है सोशल मीडिया और चैनलों के पैनल. सोशल मीडिया में समर्थक और विरोधी जिस तरह की बातें कर रहे हैं, उसे लेकर आप आश्वस्त हो सकते हैं कि ऐसे मुद्दों पर सार्वजनिक बहस का स्तर कितना गिर गया है.

विरोधी चुनाव पूर्व बयानों को निकाल कर प्रधानमंत्री से पूछ रहे हैं कि बताइये क्या करेंगे. बहुत कहते थे कि एक के बदले दस सर काट कर लायेंगे, अब लाने का वक्त आ गया है, लाकर दिखाइये. लव लेटर लिखने का टाइम चला गया तो बताइये कि कौन सा टाइम आया है. विरोधियों या आलोचकों के पूछने के अंदाज़ से ऐसा लग रहा है जैसे वे भी मांग कर रहे हों कि  युद्ध करके दिखाने का वक्त आ गया है. दूसरी तरफ समर्थक भी युद्ध के लिए ललकार रहे हैं. सब फेल हो चुका है, अब सिर्फ युद्ध ही बचा है. सबक सिखाना होगा. प्रधानमंत्री को अभी ही फैसला करना होगा, इतिहास उनका इंतज़ार कर रहा है. पांच-छह हज़ार ट्वीट के दम पर उन्हें सीधे युद्ध पर आ जाने के लिए कहा जा रहा है. हैशटैग को राष्ट्रीय जनमत बताया जा रहा है. आप देख सकते हैं कि विरोधी और समर्थक दोनों की भाषा और सोच में किस तरह की गिरावट आई है. इसके बाद कमेंटबाज़ी इस पर होने लगती है कि वो कहां गए जो शांति की बात करते हैं, बातचीत की बात करते हैं. सबसे पहले देश के भीतर ऐसे लोगों पर सर्जिकल स्ट्राइक करनी होगी. एक हमले ने हमें किस तरह आपस में भिड़ा दिया है और एक जैसा बना दिया है क्या इसे आप नहीं देखना चाहेंगे. शपथ ग्रहण समारोह में नवाज़ शरीफ को बुलाना, या उनके जन्मदिन पर लाहौर जाना, क्या ये प्रमाण नहीं है कि भारत सरकार भी बातचीत के रास्ते पर यकीन करती है. क्या ये फैसले शांति की बात करने वालों से पूछ कर लिए गए थे. प्रधानमंत्री के इन दोनों राजनयिक फैसलों को मास्टर स्ट्रोक बताया गया. खासकर उनकी तरफ से जो रविवार रात से 'प्राइम टाइम' में युद्ध की वकालत कर रहे हैं. क्या प्रधानमंत्री के लिए इतना आसान है कि वे हैशटैग के हिसाब से फैसला ले लें जिनकी संख्या बीस या पचीस हज़ार भी नहीं होती है, जो इसके दम पर राष्ट्रीय जनमत का दावा बन जाने का दावा करते हैं. बिना सोचे समझे परमाणु हमले की वकालत कर रहे हैं. सरकार को तरह तरह के सुझाव भी दे रहे हैं.  

कई बार इन सुझावों से लगता है कि सरकार ने इसी साल जनवरी में पठानकोट हमले के बाद कुछ किया ही नहीं. अभी हाल में चीन में जी-20 सम्मेलन में दुनिया के तमाम बड़े नेताओं के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि दक्षिण एशिया में सिर्फ एक देश है जो आतंकवाद फैला रहा. जो इस महामारी को फैला रहे हैं उन पर प्रतिबंध लगने चाहिए, उन्हें अलग-थलग किया जाना चाहिए न कि सम्मानित किया जाना चाहिए. हमारे लिए आतंकवादी आतंकवादी है. यही नहीं अमरीकी कांग्रेस में भी उन्होंने पाकिस्तान की तरफ इशारा किया था.

भारत की पश्चिमी सीमा से लेकर अफ्रीका तक, नाम भले अलग-अलग हों, लश्कर-ए-तैयबा से लेकर तालिबान और आईसिस (ISIS), इसका दर्शन एक ही है, नफरत, हत्या और हिंसा. हालांकि इसकी छाया दुनिया भर में पड़ रही है लेकिन यह पैदा हो रहा है भारत के पड़ोस में. सेना, खुफिया या कूटनीति के पारंपरिक हथियारों से ही ये लड़ाई नहीं जीती जा सकती.

प्रधानमंत्री लगातार आतंकवाद को प्रोत्साहित करने वाले मुल्क को अलग-थलग करने की बात हर मंच से करते आ रहे हैं. अब आते हैं रक्षा मंत्री पर. सीमा पार आतंकवाद को लेकर उनके लगातार बयान आते रहते हैं. 2015 में रक्षा मंत्री का एक बयान है कि 2014 की तुलना में इस बार 65 से 70 फीसदी अधिक आतंकवादी मारे गए हैं. वे हमेशा कहते रहते हैं कि बंदूक गोली खाने के लिए नहीं बल्कि चलाने के लिए है. यह सवाल महत्वपूर्ण तो है कि सेना के बेस कैंप पर आतंकवादियों ने हमला कैसे किया. अगर भारत आतंकवाद के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस की नीति पर चलता है तो पठानकोट के बाद सेना के ठिकाने पर हमला कैसे हो गया. यह सवाल आखिर क्यों छोड़ दिया जा रहा है.

हमारे सैन्य कार्रवाई के महानिदेशक यानी डीजीएमओ लेफ्निटेंट जनरल रणबीर सिंह ने बताया है कि उरी में सर्च आपरेशन पूरा हो गया है. आतंकवादियों से चार एके 47 राइफल, चार अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर, 39 अंडर बैरल ग्रेनेड्स, 5 हैंड ग्रेनेड, दो रेडियो सेट्स, दो जीपीएस, दो मैप शीट्स, दो मैट्रिक्स शीट्स बरामद हुए. इसके अलावा काफी संख्या में खाने और दवा के पैकेट बरामद हुए जिन पर पाकिस्तान की मुहर थी. इतना सबकुछ लेकर ये अंदर तक आ गए. पठानकोट हमले के आठ महीने बाद भी ऐसा करने में सफल हो गए. भारतीय सेना ने इस साल 17 घुसपैठ के मामलों को नाकाम किया है. इस साल अलग-अलग ऑपरेशन में 110 आतंकवादी मारे गए हैं, जिनमें से 31 को घुसपैठ करते वक्त मारा गया है. पिछली दो घुसपैठ में भी आठ आतंकवादियों को मार गिराया गया है, फिर भी पिछले तीन चार सालों की तुलना में इस साल घुसपैठ बढ़ गई है.

रूस ने पाकिस्तान के साथ होने वाला साझा सैनिक अभ्यास को रद्द कर दिया है. चीन ने भी कहा है कि वह हर तरह के आतंकवाद के खिलाफ है. अमरीका और ब्रिटेन ने भी निंदा की है, लेकिन निंदा को क्या पाकिस्तान के खिलाफ गोलबंदी कह सकते हैं. निंदा तो हर बार होती है. अमरीका जिसने पाकिस्तान की धरती पर ओसामा बिन लादेन को मारा है उसे पाकिस्तान के बारे में क्या नया कुछ बताने की ज़रूरत है, जिसने हाल ही में पठानकोट हमले से संबंधित दस्तावेज़ भारत को सौंपे हैं. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ़ ने कहा है कि हमारी धरती पर कोई कदम रखेगा तो हम गुरेज़ नहीं करेंगे न्यूक्लियर वेपन्स इस्तमाल करने में. परमाणु हथियारों का इस्तमाल करने की बात कोई देश करे और दुनिया को कोई फर्क ही न पड़े तो हम किस आधार पर माने कि दुनिया के देश आतंकवाद को लेकर गंभीर हैं. पाकिस्तान को अलग-थलग करने में दिलचस्पी रखते हैं. भारत का न्यूक्लियर डॉक्टरिन यह कहता है कि भारत कभी भी पहले इस्तमाल नहीं करेगा. अगर भारतीय सीमा या भारतीय सेना पर न्यूक्लियर हमला हुआ तभी अपने परमाणु हथियारों का इस्तमाल करेगा. परमाणु हमले की बात करने वालों को चाहें वो पाकिस्तान में हैं या भारत में हैं, उन्हें अंदाज़ा नहीं है कि वे क्या बात कर रहे हैं. भारत में किसी भी ज़िम्मेदार व्यक्ति ने ऐसी बातें नहीं की है. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री के बयान के जवाब में भी किसी मंत्री ने परमाणु हथियार के इस्तमाल की बात नहीं की है.

सोमवार को नई दिल्ली में दिनभर बैठकों का सिलसिला चलता रहा. सबसे पहले गृहमंत्रालय में बैठक हुई. रक्षा मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, रॉ चीफ, खुफिया ब्यूरो के निदेशक, गृह और रक्षा सचिव, बीएसएफ और सीआरपीएफ के महानिदेशक, सुरक्षा एजेंसियों के कई बड़े अधिकारी शामिल थे. उसके बाद रक्षा मंत्री और गृह मंत्री ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की जहां वित्त मंत्री जेटली, सेना प्रमुख भी मौजूद थे. उसके बाद प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति से मिलकर उन्हें स्थिति से अवगत कराया है. रणनीतिक फैसलों को लेकर मीडिया में बयानबाज़ी बंद है.

क्या दो दिन की बैठकों से रक्षा मामलों के जानकार आश्वस्त हैं कि भारत ने सही तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त की है. बौखलाहट की बजाय सरकार के भीतर बेचैनी के बाद भी संयम किसी नई रणनीति का संकेत है या सोशल मीडिया के तमाम खेमों को निराशा हाथ लगी है. हम 'प्राइम टाइम' में शहीदों की भी बात करेंगे, जिनका पार्थिव शरीर उनके गांव घर पहुंचा तो सारी दलीलें चुप हो गईं. हम बात करेंगे कि पिछले दो साल में पाकिस्तान को लेकर भारत को क्या करना चाहिए था, जो किया जा रहा है वो क्यों नहीं काफी है या उल्लेखनीय है. बातचीत से लेकर कूटनीति सब बेकार है, तो कारगर क्या है.
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