प्राइम टाइम इंट्रो : क्या चीन से तनाव कुछ ज़्यादा बढ़ा?

चीन को हम तात्कालिक कारणों की नज़र से देखने के आदी रहे हैं, बेहतर है तात्कालिक कारणों के साथ-साथ उसकी दूरगामी नीतियों की भी समीक्षा करनी चाहिए.

प्राइम टाइम इंट्रो : क्या चीन से तनाव कुछ ज़्यादा बढ़ा?

जब कहीं कुछ नहीं हो हो रहा होता है तो भारत और चीन की सीमा पर कहीं कुछ होने लगता है. अगर इसका संबंध मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने से है तो ऐसे विषयों से दूर रहने के बाद भी मुझे लगता है कि अब चीन उस तरह का मनौवैज्ञानिक दबाव नहीं बना पाता है. अगर बना पाता तो अमरनाथ यात्रा की तरह कैलाश मानसरोवर यात्रा रोक देने पर हंगामा मच गया होता. इससे ज़्यादा हंगामा पाकिस्तान के साथ कुछ होने पर हो जाता है. कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा है कि पिछले 45 दिनों में चीन की तरफ से 120 इंकर्ज़न हुए हैं. इस साल ऐसे 240 इंकर्ज़न हो चुके हैं. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. अगर सिंघवी की बात सही है तो क्या चीन असाधारण रूप से अपनी आक्रामकता को तीव्र कर रहा है. भारत के लिए सस्ते सामानों का निर्यातक मुल्क कहीं सीमा पर भारी दाम तो नहीं वसूलना चाहता है. 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की खबर के अनुसार भारत ने डोकलाम में 1962 के बाद पहली बार भारी मात्रा में सैनिकों की तैनाती की है. भारत कोई जोखिम नहीं लेना चाहता लेकिन भारत से 5 अरब डॉलर का कारोबार करने वाला चीन इतने बड़े बाज़ार को जोखिम में क्यों डालना चाहेगा?

सिक्किम, भूटान और तिब्बत के त्रिकोण पर है डोकलम, वहां पर चीन की टुकड़ी सड़क बनाने के लिए प्रवेश करती है. वहां पेट्रोलिंग कर रही रॉयल भूटान आर्मी रोकती है और भारत की सेना भी उसमें शामिल हो जाती है. ख़बर आई कि चीन ने भारत के अस्थायी बंकर ध्वस्त कर दिये. मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन और भारत के सैनिकों के बीच गुत्मगुत्थी हो गई. हथियारों का इस्तमाल नहीं हुआ. भारत नहीं चाहता कि चीन वहां सड़क पूरी करे, इससे वह सिलीगुड़ी कोरिडोर के काफी करीब पहुंच जाएगा. उधर चीन का दावा है कि वह अपनी सीमा में सड़क बना रहा है. भारत उसकी सीमा में अतिक्रमण करने का आरोप लगा रहा है. वहां की सेना पीएलए के प्रवक्ता ने भारत को 1962 युद्ध की हार की याद दिलाते हुए कहा कि भारत की सेना युद्ध के लिए ज़्यादा बेचैन न हो. इस हद तक बयानबाज़ी की ज़रूरत क्यों पड़ी. भारत के थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि भारत अपनी आंतरिक उग्रवाद से जूझते हुए भी दो तरफा युद्ध झेल सकता है. भारत कहीं से भी चीन के मनोवैज्ञानिक दबाव में नहीं लगता है. बल्कि शुक्रवार को विदेश मंत्रालय ने एक बयान दिया कि भारत चीन के ताज़ा कदमों को लेकर चिंतित है और चीन की सरकार को अपनी चिंता से अवगत करा चुका है कि इस तरह के निर्माण से यथास्थिति में काफी बदलाव आ जाता है.

जम्मू कश्मीर सीमा पर भारत और चीन लाइन आफ एक्चुअल कंट्रोल के पास टकराते रहे हैं. 2013 और 2014 में चीन ने भारत की सीमा में घुसपैठ की थी. डोकलाम का विवाद पहली बार इतना चर्चित हुआ है. भारत के रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने इंडिया टुडे चैनल के कार्यक्रम में बयान दे दिया कि भारत भी 1962 वाला भारत नहीं है, 2017 का भारत है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी जवाब उधार नहीं रखा. कहा कि चीन भी 1962 वाला चीन नहीं है. रक्षा मंत्री जेटली का कहना है कि इलाके में टकराव की शुरुआत बीजिंग ने सड़क निर्माण की पहल से की थी, जिसे लेकर भारत चिंतित है.

डोकलम का मौजूदा विवादित क्षेत्र मात्र 90 वर्ग किमी का पहाड़ी इलाका है. भूटान की सीमा तक पहुंचने के लिए चीन डोकलम के रास्ते सड़क बना रहा है. चीन का कहना है कि सिक्किम पर 1890 की चीन और ब्रिटेन की संधि का भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी समर्थन किया था. चीन के तब के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई को भेजे ख़त में उन्होंने ये समर्थन किया था. चीन का कहना है कि भारत इस संधि का सम्मान करे और डोकलाम से अपनी सेना को वापस बुलाए. भूटान ने चीन से कहा है कि वह उसकी सीमा का अतिक्रमण कर रहा है, इस पर चीन का कहना है कि भारत, भूटान का ढाल की तरह इस्तमाल कर रहा है. भारत और भूटान के बीच समझौता है कि भारत भूटान की सीमाओं की सुरक्षा करेगा.

चिट्ठी दिखाकर किसी भौगोलिक क्षेत्र पर दावेदारी भी अजीब हास्यास्पद है. अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर चिट्ठी और बयानों से दावा किया जाने लगे तो हो चुका. ज़ाहिर है जानकार समझने का प्रयास कर रहे हैं कि चीन इतना आक्रामक क्यों हैं. क्या भारत के वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट में शामिल न होने से नाराज़ है, क्या भारत और अमरीका की नज़दीकी से नाराज़ है, क्या दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश जाने से नाराज़ है, कोई एक स्पष्ट कारण नज़र नहीं आता है. 2014 में जब चीन के राष्ट्रपति भारत आए थे तब उनका भव्य स्वागत किया गया था. साबरमती के तट पर झूला भी झुलाया गया था तब भी चीन ने लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ कर दी थी. तब भी क्या उस घुसपैठ को हम इन कारणों के संदर्भ में देख सकते हैं. तब तो भारत ने वन बेल्ट वन रोड का विरोध भी नहीं किया था.

आपको बता दें वन बेल्ट, वन रोड चीन का अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है, जिसका बजट है दस खरब अमेरिकी डॉलर यानी सात सौ ख़रब रुपए जो भारत की कुल अर्थव्यवस्था का क़रीब एक तिहाई है. वन बेल्ट वन रोड चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का सपना है. जिसका मकसद बताया गया है एशियाई देशों के साथ चीन का संपर्क और सहयोग बेहतर करना और अफ्रीका और यूरोप को भी एशियाई देशों के साथ क़रीबी से जोड़ना. बीजिंग में इसके उद्घाटन के मौके पर चीन समेत 29 देशों के राष्ट्रप्रमुख और 70 अन्य देशों के प्रतिनिधि मौजूद रहे. इस प्रोजेक्ट के तहत ज़मीन और समुद्री रास्तों से व्यापार मार्गों को बेहतर बनाया जाएगा. कई हाई स्पीड रेल नेटवर्क होंगे जो यूरोप तक जाएंगे. एशिया और अफ्रीका में कई बंदरगाहों से ये रूट गुज़रेगा और इसके रास्ते में कई फ्री ट्रेड ज़ोन आएंगे. चीन दुनिया के पैंसठ देशों को एक दूसरे के क़रीब लाएगा और दुनिया की दो-तिहाई आबादी को अपनी अर्थव्यवस्था से सीधे जोड़ देगा.

भारत ने तब भी अपनी भौगोलिक संप्रभुता को प्राथमिकता दी और इतने महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट से खुद को अलग कर लिया. मई में चीन क्यों परेशान हुआ था जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी असम और अरुणाचल प्रदेश को जोड़ने वाले पुल का उद्घाटन करने गए. तब तो वे ट्रंप के अमरीका भी नहीं गए थे. तब तो ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति की ही जमकर तारीफ की थी. ब्रह्मपुत्र नदी पर बने इस पुल के कारण असम और अरुणाचल प्रदेश काफी करीब आ गए. यह पुल भारत चीन सीमा के काफी करीब है. तब चीन ने बयान जारी कर कहा था कि भारत के साथ उसका सीमा विवाद चल रहा है इसलिए पूर्वोत्तर भारत में बुनियादी ढांचों का निर्माण करने में संयम बरते. अरुणाचल प्रदेश में दलाई लामा की यात्रा के समय चीन ने ऐसी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी. मगर यह कारण है तो यूपीए के दौर में भी दलाई लामा अरुणाचल प्रदेश गए थे और फिर तिब्बत को लेकर भारत ने अपनी नीति में कोई खास परिवर्तन किया है या पुरानी नीति में आक्रामता का पुट डाला है, यह भी साफ नहीं है. ज़ाहिर है चीन हमारे सामने मौजूद कारणों से नहीं चिढ़ा होगा, कारण कुछ और होंगे.

चीन को हम तात्कालिक कारणों की नज़र से देखने के आदी रहे हैं, बेहतर है तात्कालिक कारणों के साथ-साथ उसकी दूरगामी नीतियों की भी समीक्षा करनी चाहिए. हो सकता है दुनिया के स्तर पर सामरिक गठबंधन बदल रहे हों. भारत के प्रधानमंत्री खुलकर एशिया की सदी की बात करते हैं, चीन एशिया के नेतृत्व करने की दबी इच्छा रखता है. वो कभी पाकिस्तान के साथ ग्वादर प्रोजेक्ट के ज़रिये भारत को घेरता है तो भारत वहां से 72 किमी दूर ईरान से मिलकर चाबहार प्रोजेक्ट के ज़रिये चीन के दांव से निकल जाता है. पर क्या चीन भारतीय सीमा पर सामान्य से ज़्यादा सक्रिय हो रहा है?


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