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This Article is From May 04, 2023

कर्नाटक से क्या मैसेज ले सकता है राजस्थान?

Harsha Kumari Singh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 04, 2023 20:36 pm IST
    • Published On मई 04, 2023 20:08 pm IST
    • Last Updated On मई 04, 2023 20:36 pm IST

बेंगलुरु एयरपोर्ट पर उतरते ही एक अलग नज़ारा सामने आता है. जयपुर एयरपोर्ट से सफर करने के बाद लगता है कि आप  विदेश में किसी शहर में आए हैं. बड़ी और आधुनिक दुकानें, जहां तक नज़र जाती है, वहां तक विमान दिखाई देते हैं. केम्पे गौड़ा एयरपोर्ट से ही कर्नाटक की आर्थिक उन्नति का ब्यौरा मिल जाता है. इसलिए कोई हैरत की बात नहीं है कि राजस्थान से करीब 26 लाख लोग ऐसे हैं, जो कर्नाटक में उद्योग और रोज़गार के अवसर ढूंढते हुए अलग-अलग शहरों में पहुंच गए हैं.

राजस्थान से पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की एक टीम भी कर्नाटक चुनाव कवर करने यहां पहुंची है. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत वहां राजस्थान गवर्नेंस मॉडल और उनकी समाज कल्याण योजनाओं के बारे में चुनाव प्रचार करने गए हैं. पहली बार उत्तर के राज्य से दक्षिण जाते हुए और चुनाव की हलचल को देखते हुए मुझे ऐसा लगा कि शायद हम कर्नाटक से मानव संसाधन विकास के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं.

कर्नाटक में राजस्थान की समाज कल्याण योजनाओं का प्रचार अपने आप में राजनीतिक रूप से एक मैसेज ज़रूर देता है, लेकिन वहां से शायद राजस्थान भी बहुत कुछ सीख सकता है. खासकर उद्योग और महिला सशक्तीकरण को लेकर.

बेंगलुरु और मंगलुरु में हमने हर जगह उद्योग और व्यापार की चहल पहल देखी. लोग काम में व्यस्त दिखाई दिए. राजस्थान के  गांव और छोटे शहरों में जाएं, तो लोग बाजार और नुक्कड़ में बैठे बातचीत करते दिखते हैं. यहां ऐसा नहीं था. कर्नाटक में लोगों के कदम कुछ हासिल करते हुए आगे बढ़ते दिखाई देते हैं.

शायद यही वजह रही है कि उद्योग के अवसर ढूंढते हुए राजस्थान के लोग वहां खींचे चले गए हैं. मेरे गांव आऊवा से पिछले 100 सालों में करीब 200 परिवार बेंगलुरु जाकर वहां बस गए हैं. पूरे राजस्थान से वहां करीब 26 लाख परिवार हैं. यानी उन लोगों को व्यापार और उद्योग में ऐसे अवसर मिले, जो इस मरुप्रदेश में उपलब्ध नहीं थे.

मंगलुरु में एक अनोखा अनुभव सामने आया. हम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का रोड शो कवर करने गए थे. वो उत्तर मंगलुरु में कांग्रेस उम्मीदवार इनायत अली के लिए प्रचार कर रहे थे. वहां भारी भीड़ जुटी थी. समय कम होने के कारण मैं भी अपना मोजो किट (जिसमें एक मोबाइल और एक सेल्फी स्टिक है) लेकर भीड़ में चली गई. राजस्थान में एक महिला पत्रकार का भीड़ के बीच घुसना न मुमकिन के बराबर है. मंगलुरु में ऐसा नहीं हुआ. भीड़ ने मेरे लिए जगह बनाई. मेरे साथ धक्का-मुक्की बिल्कुल भी नहीं हुई. कहीं-कहीं तो ऊंचाई पर खड़े युवाओं ने मुझसे फोन लेकर कुछ शॉट्स लेने में मदद भी कर दी.

कुछ स्थानीय लोगों से बातचीत में जब मैंने अपना अनुभव बताया, तो उन्होंने कहा कि कर्नाटक और साउथ कर्नाटक में खासकर महिलाओं के प्रति लोगों के दिलों में सम्मान है. शाम को शूट और मुख्यमंत्री का इंटरव्यू करके जब हम अपने होटल पहुंचे, तो महिलाओं को लेकर एक खास अनुभव हुआ.

जिस होटल में हम ठहरे हुए थे, वहां एक रेस्ट्रो बार था. यहां महिलाएं वेटर्स थीं. उत्तर भारत में अगर महिलाएं शराब परोसे और किसी मैखाने में काम करें तो, उन्हें एक अलग नजर से देखा जाता है. लेकिन यहां मंगलुरु में ऐसा नहीं था. ये वेट्रेसेस आराम से अपना काम कर रही थीं. उन महिलाओं से मैंने बातें कीं. उन्होंने बताया कि उनके परिवार वालों, ससुराल वालों को उनके यहां काम करने से कोई आपत्ति नहीं है. दोपहर 3 बजे से रात के 12 बजे तक उनकी शिफ्ट होती है.

कर्नाटक के इस अनुभव से मुझे लगा कि अगर राजस्थान में ऐसा माहौल होता, तो यहां की महिलाएं भी कितना आगे बढ़ सकती थीं. हालांकि, राजस्थान में भी धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने इस कार्यकाल में कहा है-'घूंघट से बाहार निकलो और आगे बढ़ो.'

कर्नाटक को राजस्थान की समाज कल्याण योजनाएं से कुछ लाभ होगा. राज्य की तत्परता, उत्साह और महिलाओं के प्रति नजरिए से राजस्थान भी बहुत कुछ सीख सकता है.

(हर्षा कुमारी सिंह NDTV इंडिया में कंसल्टिंग एडिटर- न्यूज एंड स्पेशल प्रोजेक्ट्स हैं...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण):इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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