भारत ने इस वर्ल्डकप में तीन मैच खेले और सभी मैच हार गया था। पहला मैच वेस्ट-इंडीज से नौ विकेट से हारा, दूसरा मैच न्यूज़ीलैंड से आठ विकेट से और तीसरा मैच श्रीलंका 47 रन से हारा।
फाइनल मैच 23 जून को इंग्लैंड और वेस्ट-इंडीज के बीच लॉर्ड्स के शानदार मैदान पर खेला गया, लग रहा था की इंग्लैंड अपने घरेलू मैदान पर वर्ल्डकप जीतने का इतिहास रचेगा, लेकिन वेस्ट-इंडीज जैसे बेहतरीन टीम को हराना इतना आसान नहीं था। वेस्ट-इंडीज ने शानदार खेल का प्रदर्शन करते हुए इंग्लैंड को 92 रन से हराया और दूसरी बार वर्ल्डकप अपने नाम किया। इंग्लैंड का वर्ल्डकप जीतने का सपना टूट गया। घरेलू दर्शकों के सामने फाइनल में पहुंचने के बाबजूद भी इंग्लैंड ख़िताब अपने नाम नहीं कर पाया।विवियन रिचर्ड्स के शानदार शतक के लिए उन्हें "मैन ऑफ़ द मैच" का ख़िताब मिला।
तीसरा वर्ल्ड कप भी इंग्लैंड में हुआ। उस वक़्त दूसरे देशों में क्रिकेट की मैदान कम थे। विश्व स्तरीय मैदान न होने की वजह से पहले तीन वर्ल्डकप इंग्लैंड के मैदान पर खेले गए थे। कपिल देव की कप्तानी में भारत की टीम इंग्लैंड पहुंची। उस वक़्त भारत की टीम काफी कमजोर मानी जाती थी। जहां पहले वर्ल्डकप में भारत सिर्फ एक मैच जीत पाया था, उसी तरह दूसरे वर्ल्डकप में भारत कोई भी मैच जीत नहीं पाया था। इंग्लैंड और वेस्ट-इंडीज जैसी शानदार टीमों के सामने भारत कमजोर नज़र आ रहा था।
वेस्ट-इंडीज के पास क्लाइव लॉयड, विवियन रिचर्ड्स, मैल्कम मार्शल जैसे वर्ल्ड क्लास खिलाड़ी थे। लेकिन भारत की किस्मत में कुछ और लिखा हुआ था। भारत ने अपने पहले मैच में बहुत बड़ा उलटफेर कर दिया। तीसरे वर्ल्डकप के चौथे मैच में भारत ने वेस्ट-इंडीज को 34 रन से हराकर सबको हैरान कर दिया।
वेस्ट-इंडीज के दिग्गज खिलाड़ी भारत के सामने घुटने टेकते नज़र आए। इस जीत के बाद भारत के खिलाड़ियों का मनोबल ऊंचा हो गया। अब भारत पीछे हटने वाला नहीं था। भारत अपने छह लीग मैचों में से चार मैच जीतकर सेमी-फाइनल में पहुंचा। इंग्लैंड जैसी शानदार टीम के खिलाफ भारत ने अपना पहला सेमी-फाइनल मैच 22 जून 1983 को मैनचेस्टर में खेला। ऐसा लग रहा था कि भारत हार जाएगा, लेकिन भारत ने कमाल का खेल खेलते हुए इंग्लैंड को छह विकेट से हराया और फाइनल में पहुंचा।
मोहिंदर अमरनाथ के शानदार खेल की वजह से उनको "मैन ऑफ़ द मैच" का अवार्ड मिला। वेस्ट-इंडीज भी पाकिस्तान को हराकर फाइनल में पहुंच चुका था। अब तो असली मज़ा आने वाला था। जहां भारत ने इस वर्ल्डकप के पहला मैच वेस्ट-इंडीज को हराया था वहीं, दूसरे मैच में वेस्ट-इंडीज ने भारत को हराकर बदला ले लिया था। अब तीसरे मैच के जीत की तैयारी में दोनों टीमें लगी हुईं थी।
ऐसा लग रहा था कि वेस्ट-इंडीज फिर तीसरी बार वर्ल्डकप ख़िताब जीत जाएगा और यह उम्मीद और सही लगने लगी जब भारत फाइनल मैच में सिर्फ 183 रन पर ऑल आउट हो गई। लेकिन भारत हार मानने वाला नहीं था।
सैयद किरमानी जो फाइनल मैच में विकेटकीपर के रूप में खेले थे, कहते हैं कि भारत के ऊपर कोई दबाव नहीं था। भारत के लिए फाइनल में पहुंचना बहुत बड़ी बात थी और भारत के लोग बहुत खुश थे। किरमानी यह भी कहते हैं कि भारत की रणनीति भी साफ़ थी।. कप्तान कपिल देव की तरफ से खिलाड़ियों के ऊपर कोई दबाव नहीं था। क्योंकि टीम में सात सीनियर खिलाड़ी थे जो अपनी जिम्मेदारी समझते थे।
वेस्ट-इंडीज का स्कोर जब पांच रन था तब बलविंदर सिंह संधु ने गार्डेन ग्रीनिज जैसे शानदार बल्लेबाज को आउट करके भारतीय कैंप में ख़ुशी की लहर फैला दी। अब वेस्ट-इंडीज के ऊपर दबाव बढ़ने लगा, लेकिन यह दबाव ज्यादा देर तक नहीं रहा। विवियन रिचर्ड्स ने आते ही धुआंधार बल्लेबाजी करना शुरू कर दिया।
मैदान के चारों तरफ बेहतरीन शॉट्स खेलते हुए भारत की गेंदबाजों का होश उड़ा दिए। ऐसा लग रहा था कि मैच 30 ओवर में खत्म हो जाएगा। अब भारत मौके का इंतज़ार कर रहा था कि कब रिचर्ड्स गलत शॉट्स खेलें। भारत के खिलाड़ी जानते थे कि रिचर्ड्स अपनी पारी में एक या दो गलत शॉट्स जरूर खेलते हैं। अब वह मौका आ गया रिचर्ड्स ने मदन लाल की गेंद पर छक्का मारने की कोशिश में बॉल को हवा में उठाया और कप्तान कपिल देव ने पीछे भागते हुए बेहतरीन कैच लपक लिया और वह कैच नहीं था बल्कि कप्तान ने वर्ल्डकप पकड़ लिया था।
रिचर्ड्स 28 गेंदों में 33 रन बनाकर आउट हुए। अब भारत पीछे हटने वाला नहीं था। वेस्ट-इंडीज के विकेट गिरते गए। पूरी टीम 52 ओवर में 140 रन पर ऑल आउट हो गई और भारत ने वर्ल्डकप जीतने का इतिहास रचा।
मोहिंदर अमरनाथ को बेहतरीन प्रदर्शन की वजह से "मैन ऑफ़ द मैच" और "मैन ऑफ़ द सीरीज" का अवार्ड मिला।