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This Article is From May 06, 2014

चुनाव डायरी : 'नीच राजनीति' पर मोदी का पलटवार

Akhilesh Sharma, Rajeev Mishra
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  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 13:04 pm IST
    • Published On मई 06, 2014 13:51 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 13:04 pm IST

'नीच राजनीति' करने के प्रियंका गांधी के आरोप का नरेंद्र मोदी ने अपने ही अंदाज़ में जवाब दिया है। मोदी ने इसे अपनी पिछड़ी जाति की पृष्ठभूमि से जोड़ दिया है। मंगलवार सुबह उन्होंने एक के बाद एक इस मुद्दे पर चार ट्वीट किए। इसमें मोदी ने कहा कि ''सामाजिक रूप से निचले वर्ग से आया हूं इसलिए मेरी राजनीति उन लोगों के लिए 'नीच राजनीति' ही होगी।''

दरअसल, कल अमेठी में जिस तरह से नरेंद्र मोदी ने एक के बाद एक गांधी परिवार पर निशाने साधे थे, प्रियंका ने उसका जवाब दिया था। मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री का अपमान करने का आरोप लगाया था। इसी तरह से उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी के कथित अपमान के लिए भी गांधी परिवार को आड़े हाथों लिया था।

इसके जवाब में प्रियंका ने कहा कि ''उन्होंने अमेठी की धरती पर मेरे शहीद पिता का अपमान किया है। अमेठी की जनता इस हरकत को कभी माफ नहीं करेगी। इनकी 'नीच राजनीति' का जवाब मेरे बूथ के कार्यकर्ता देंगे। अमेठी के एक-एक बूथ से जवाब आएगा।''

पिछड़े वर्ग से आने वाले नरेंद्र मोदी की जाति का मुद्दा पहली बार नहीं उठा है। कुछ कांग्रेसी नेताओं के इसी तरह के बयानों पर पहले भी हंगामा हो चुका है। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने मोदी और मनमोहन सिंह की तुलना करते हुए एक बार कह दिया था कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली। बीजेपी के तीखा ऐतराज़ करने के बाद कांग्रेस की ओर से सफाई आई थी कि इसे मुहावरे के तौर पर इस्तेमाल किया गया था।

नरेंद्र मोदी ने भी अपने पिछड़े वर्ग का हवाला इससे पहले दिया है। इस साल जनवरी में दिल्ली के रामलीला मैदान पर राष्ट्रीय परिषद के अपने भाषण में भी उन्होंने खुद के पिछड़े वर्ग से आने की बात कही थी और पार्टी का इस बात के लिए आभार जताया था कि उन्हें प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार जैसी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।

हालांकि जाति के हिसाब से महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश और बिहार में चुनावी दौर में इस पहचान को पहली बार उछाला गया है। इन दोनों ही राज्यों में मतदान के दो अंतिम चरण बचे हैं। दोनों ही जगह वोटिंग के पहले दो दौर बीजेपी के लिए बेहद अनुकूल रहे हैं। जबकि उसके बाद खासतौर से बिहार में लालू प्रसाद के पक्ष में मुसलमान और यादव का माई गठजोड़ तेज़ी से ध्रुवीकृत होते देखा गया है।

इसी तरह से बुंदेलखंड, अवध के बाद अब पूर्वांचल में भी मोदी लहर जाति की दीवारों से टकरा रही है। जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बने सांप्रदायिक माहौल का सीधा-सीधा फायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा था।

बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी के ओबीसी कार्ड को प्रमुखता से न उठाने का फैसला किया था। इसके पीछे एक वजह ये भी बताई गई थी कि मोदी जिस घांची समाज से आते हैं राज्य में उसके अधिक मतदाता नहीं हैं। साथ ही, इस पहचान को अधिक प्रभावी ढंग से रेखांकित करने पर पिछड़े वर्ग के एकजुट होने के बजाए बंटने की आशंका भी थी क्योंकि शायद पिछड़े वर्ग के दूसरे तबकों को लगता कि उनके समाज को सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिल रही है।

इसी तरह लंबे समय बाद ब्राह्मण मतदाता बीजेपी की तरफ वापस आ रहे हैं। पार्टी मोदी की ओबीसी पहचान को उछाल कर उन्हें बिदकाना नहीं चाह रही थी।

बीजेपी के रणनीतिकार कहते हैं कि मंदिर आंदोलन के बाद पहली बार उत्तर प्रदेश-बिहार में यादवों को छोड़ बाकी सारी पिछड़ी जातियां बीजेपी के पक्ष में इकट्ठी होती दिख रही हैं। मोदी का पिछड़े वर्ग से आना इसमें जरूर एक कारण है। लेकिन एक और कारण उनकी हिंदुत्व के पोस्टर बॉय की छवि होना भी है। बीजेपी ने इसीलिए करीब एक तिहाई यानी 24 टिकट पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों को दिए हैं।

पटेल, कुशवाहा, कुर्मी के अलावा लोध, निषाद, बिंद, केवट, मल्लाह, सैनी, प्रजापति, नोनिया, भुर्जी, बारी, नाई, शाक्य, सैनी जैसे पिछड़े वर्ग की जातियों पर बीजेपी ने खास ध्यान दिया है। इसी तरह गैर जाटव दलित समाज पर भी बीजेपी की नज़रें रही हैं। इनमें वाल्मिकी, पासी, खटीक और कोरी शामिल हैं जो 21 फीसदी दलित वोटों में से नौ फीसदी हैं। यादव, मुसलमान और जाटव को छोड़ बाकी सारे वोटों को अपने पक्ष में लाने की उसकी कोशिश रही है।

ये सही है कि प्रियंका के बयान की वजह से ही मोदी को अपने पिछड़ी वर्ग की पहचान बताने का मौका मिला है। ये बीजेपी के लिए फायदेमंद भी है। पूर्वांचल की जिन 33 सीटों पर अंतिम दो दौर में मतदान होना है वहां बीजेपी के पास सिर्फ चार सीटें हैं। बीजेपी को लगता है कि कई सीटों पर जातिगत समीकरण उसके उम्मीदवारों के खिलाफ जाते दिख रहे हैं। ऐसे में मोदी का ओबीसी कार्ड चलना कोई हैरानी की बात नहीं है।

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