यह ख़बर 10 मार्च, 2014 को प्रकाशित हुई थी

चुनाव डायरी : बीजेपी को समझना होगा 'ओल्ड इज़ गोल्ड'...

नई दिल्ली:

परिवर्तन संसार का नियम है... पेड़ों से पुराने पत्ते झरते हैं, नए पत्ते आते हैं... जो पुराना हुआ, नया उसकी जगह लेता है... नया पुराना होता है और फिर कोई नया उसकी जगह लेने आ जाता है... यही सृष्टि चक्र है... जीवन का सिद्धांत है... लेकिन परिवर्तन न आसान होता है, न आसानी से होता है... परिवर्तन की प्रक्रिया में प्रतिरोध होता है... पुराना आसानी से अपनी जगह नहीं छोड़ता, नए को आसानी से पुराने की जगह नहीं मिल पाती... इस प्रक्रिया को संक्रमण काल कह सकते हैं...

भारतीय जनता पार्टी इसी संक्रमण काल से गुजर रही है... बरसों से अटल-आडवाणी की छाया में रही पार्टी अब परिवर्तन के लिए तैयार है... पार्टी की कमान दूसरी पीढ़ी के हाथों में देने की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की योजना सिरे चढ़ने लगी है... नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का मतलब है, पार्टी में उनका नंबर एक के पद पर पहुंचना... राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज जैसे नेता अब मोदी के साथ पहले पायदान पर पहुंच गए हैं, लेकिन इस परिवर्तन का भी विरोध हुआ है, और अब भी हो रहा है...

आरएसएस की कोशिश थी कि लोकसभा चुनाव 2014 में बुजुर्ग नेता मैदान खाली करें, ताकि नए लोगों को हाथ आज़माने का मौका मिल सके... संघ चाहता था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता नेतृत्व देने के बजाए मार्गदर्शक की भूमिका निभाएं, इसीलिए प्रस्ताव दिया गया था कि लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी लोकसभा के बजाए राज्यसभा में जाएं... उम्र में 75 का आंकड़ा पार कर चुके सभी नेताओं को यह प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन शायद संघ की यह कल्पना नहीं रही होगी कि इस प्रस्ताव का इतना तीखा विरोध होगा...

86-वर्षीय लालकृष्ण आडवाणी, 80-वर्षीय मुरली मनोहर जोशी, 79-वर्षीय शांताकुमार, 79-वर्षीय भुवनचंद्र खंडूरी, 78-वर्षीय लालजी टंडन... ये तमाम नेता खम ठोककर मैदान में बने हुए हैं... लेकिन बुजुर्ग नेताओं को लोकसभा चुनाव के मैदान से हटाने में पार्टी को पहली कामयाबी मध्य प्रदेश में मिली... वहां 84-वर्षीय कैलाश जोशी ने काफी मान-मनव्वल के बाद पार्टी की इस विनती को मान लिया है और सार्वजनिक रूप से ऐलान किया है कि वह लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे...

बीजेपी उम्मीदवारों की पहली सूची में शांताकुमार का नाम हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा सीट से घोषित भी हो चुका है, वहीं लालकृष्ण आडवाणी इस बात पर निराशा जता चुके हैं कि पहली सूची में उनका नाम नहीं आया... वह सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि वह गांधीनगर से ही चुनाव लड़ना चाहते हैं...

इसी तरह मुरली मनोहर जोशी पिछले एक साल से मीडिया में चल रही उन खबरों से परेशान हैं, जिनके मुताबिक नरेंद्र मोदी उनकी सीट बनारस से चुनाव लड़ सकते हैं... 8 मार्च को केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में उन्होंने पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह से इन खबरों का खंडन करने को भी कहा, मगर आरएसएस के दखल के एक दिन बाद उनके तेवर ठंडे हो गए और कहा कि पार्टी का फैसला मानेंगे... उन्हें भरोसा दिया गया है कि अगर नरेंद्र मोदी बनारस से चुनाव लड़ने का फैसला करेंगे तो उन्हें कानपुर से टिकट दिया जाएगा...

उधर, राजनाथ सिंह भी गाजियाबाद छोड़कर लखनऊ जाना चाहते हैं और इसी बात से वहां के मौजूदा सांसद लालजी टंडन नाराज हो गए हैं... उन्होंने कहा कि वह सिर्फ नरेंद्र मोदी के लिए सीट छोड़ सकते हैं... राजनाथ सिंह के लखनऊ से लड़ने की संभावना को उन्होंने काल्पनिक कहकर खारिज कर दिया और कहा है कि उनसे किसी ने इस बारे में बात नहीं की है... हालांकि वह यह भी कहते हैं कि पार्टी जो तय करेगी, उसे मानेंगे... जबकि तमाम विरोध के बावजूद बीजेपी ने बीसी खंडूरी को उत्तराखंड से लोकसभा चुनावों में उतारने का मन बनाया है...

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जब पार्टी ने फैसला किया कि बुजुर्ग नेता लोकसभा चुनाव न लड़ें, तब उनके प्रति अनादर की बात नहीं रही... बल्कि इसे किसी भी राजनीतिक पार्टी में बदलाव की स्वाभाविक प्रक्रिया के तौर पर देखा गया... बीजेपी इस चुनाव में बार-बार युवा मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित करने की बात कह रही है, सो, ज़ाहिर है, युवा मतदाताओं का रुझान किसी बुजुर्ग उम्मीदवार के बजाए नए खून की तरफ ज़्यादा होगा... लेकिन अनुभव को नज़रअंदाज़ करना भी किसी पार्टी की अंदरूनी सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है... बीजेपी में पिछले एक हफ्ते से चली आ रही उठा-पटक को देखकर तो यही लगता है...