'स्टार्ट अप' है क्या और वह क्या-क्या दे सकता है

'स्टार्ट अप' है क्या और वह क्या-क्या दे सकता है

स्टार्ट अप इंडिया को लॉन्च किए जाने के मौके पर पीएम मोदी (फाइल फोटो)

पहले एक बहुत ही 'अजीब' विचार। विचार यह कि एक ऐसी संस्था बनाई जाए, जो 20 साल से कम उम्र के 20 उद्यमियों को फेलोशिप देगी। इस फेलोशिप में उन्हें लाखों डालर दिए जाएंगे, ताकि वे अपना उद्योग शुरू कर सकें। लेकिन इस फेलोशिप को पाने की दो विचित्र शर्तें होंगी। पहली शर्त यह कि 20 साल से कम उम्र का यह भविष्य का उद्योगपति 'कॉलेज ड्रॉप आउट' हो। यानी कि पढ़ाई-लिखाई पूरी होने से पहले ही उससे मुक्ति पा ली हो। दूसरी शर्त यह कि उसके बिजनेस का आइडिया फाउंडेशन को ठीक लगा हो। क्या इस उल-जुलूल विचार का कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध स्टार्ट अप इंडिया से है?

16 जनवरी को 'स्टार्ट अप इंडिया' अभियान की शुरुआत करते हुए हमारे प्रधानमंत्री ने एक बहुत जोरदार और मजेदार बात कही, जिस पर तालियों की गड़गड़ाहट सुनने को मिली थी। पीएम मोदी ने कुछ ऐसा कहा था कि जब मैं ओयो रूम के नौजवान को सुन रहा था, तब मैं सोच रहा था कि चाय बेचने वाले एक लड़के को होटलों की इस तरह चेन खोलने का विचार क्यों नहीं सूझा।

यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि इस ओयो रूम के नौजवान रितेश अग्रवाल वह पहले शख्स थे, जिन्होंने इस तथाकथित वाहियात विचार वाले फाउंडेशन की फेलोशिप हासिल की थी। फिर वहां से मिली रकम की बदौलत उन्होंने हिन्दुस्तान के स्टार्ट अप्स की सूची की मेरिट लिस्ट में अपना नाम दर्ज करा लिया।

इस तरह के फाउंडेशन का फितूर जिस आदमी के दिमाग में उपजा था, उसका नाम था पीटर थिएल। सन 2010 में स्थापित यह फाउंडेशन पहले 'ट्वेन्टी अंडर ट्वेन्टी' के नाम से जाना जाता था। लेकिन आज इसका नाम है थिएल फाउंडेशन। यह फाउंडेशन वैज्ञानिक शोध, स्टार्ट अप तथा सामाजिक कार्यों के लिए फेलोशिप देती है। लेकिन गजब का भरोसा यह कि आपको स्कूल या कॉलेज ड्रॉप आउट होना चाहिए। यहां गौर करने की बात यह है कि आज के समय के तीन विख्यात व्यक्ति - बिल गेट्स, स्टीव जॉब्स और मार्क जकरबर्ग यदि इसके लिए आवेदन करते, तो तीनों इसे क्वालीफाई कर जाते। (पढ़ें : आइए समझें 'स्टार्टअप' के महत्व और उससे जुड़ी उम्मीदों को)

तो क्या हम यह मान लें कि किसी भी क्षेत्र में कुछ नया सोचने और नया करने का काम एक ऐसा कोरा मस्तिष्क ही कर सकता है, जिस पर किसी भी तरह की औपचारिक शिक्षा के आखर उकेरे न गए हों? ऐसा मानना गलत नहीं होगा, और इसके लिए इतिहास आपका साथ देने में सक्षम है। न्यूटन, एडीसन, डार्विन और यहां तक कि आइंस्टीन भी औपचारिक शिक्षा के मामले में फिसड्डी ही थे। सम्राट अकबर जैसे दूरदर्शी प्रशासक, कबीर जैसे संत तथा महात्मा गांधी जैसे विचारक के बारे में हम सब जानते ही हैं।

दरसअल 'नयापन', जो 'स्टार्ट अप इंडिया' की नींव है, उसके लिए ज्ञान की नहीं, एक अन्तर्दृष्टि की जरूरत होती है। इस अन्तर्दृष्टि का संबंध मस्तिष्क से न होकर भावना एवं अवचेतन तथा अचेतन मन से होता है। मन के इसी स्तर को भारतीय दर्शन अपनी तरह से आत्मा कहता है, अध्यात्म कहता है। इस स्तर पर विचार पलते-बढ़ते नहीं हैं, बल्कि कौंधते हैं। जब एक बार यह कौंध पकड़ में आ जाती है, तो वही बढ़कर नवीन बन जाता है।

इस लिहाज से स्टार्ट अप इंडिया के बारे में कहा जा सकता है कि इसके लिए भारत की चेतना की जमीन सबसे अधिक उपजाऊ जमीन है, क्योंकि यह देश मूलत: एक आध्यात्मिक देश है तथा यदि इस अभियान को बहुआयामी (मल्टी डायमेंशनल) तरीके से अपनाया गया, तो यह भारत को फिर से 'विश्व-गुरु' के पद के निकट ले जाने में सहायक हो सकता है। इस रूप में यह अभियान आर्थिक से कहीं अधिक बौद्धिक भूमिका निभाने वाला सिद्ध होगा।

डॉ विजय अग्रवाल वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं...

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