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This Article is From Mar 07, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : बच्चों को टॉपर बनाने की कोशिश में हम भटक तो नहीं रहे

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 07, 2017 21:12 pm IST
    • Published On मार्च 07, 2017 21:12 pm IST
    • Last Updated On मार्च 07, 2017 21:12 pm IST
नेता ज़रा सा तनाव में आते हैं, लगता है हारने वाले हैं तो बड़बड़ाने लगते हैं, हड़बड़ाने लगते हैं, आपस में एक दूसरे को लड़ाने लगते हैं, चुनाव उनके लिए बोर्ड इम्तहान से कम नहीं होता है. होली के आसपास का मौसम इम्तहानों का भी होता है. पतझड़ की उदासी लाखों करोड़ों बच्चों के ज़हन पर छाई रहती है. बहुत कम बच्चे ऐसे होते हैं जो इम्तहान को मौज की तरह लेते हैं, ज़्यादातर के घरों में दिन पर ओपिनियन पोल और एग्ज़िट पोल होता रहता है कि इसमें कितना आएगा, इसमें कम आएगा तो उसमें कैसे मेक अप होगा. इन दिनों कई बच्चों का व्यवहार बदल जाता है. वो इस कमरे से निकल कर उस कमरे में, कभी मां के पास तो कभी ड्राईंग रूम में पढ़ते मिलेंगे. हॉस्टल वाले बच्चों का कोई अनुभव नहीं है, ज़ाहिर है उनकी पीड़ा कुछ अलग होती है.

भारत में भाषण तो दिया जाता है कि इम्तहानों से घबराना नहीं है मगर सारा सिस्टम इसी तरह से बनाया जाता है कि न घबराने वाला बच्चा भी घबराया सा रहे. इम्तहान हमारी जीडीपी से भी ज़्यादा तनाव पैदा करते हैं. जिन इम्तहानों का जीवन में कोई मतलब नहीं होता है, वो न जाने कितने जीवन पर जानलेवा साबित हो रहे होंगे, हिसाब लगाना मुश्किल है. सीबीएसई ने फिर से दसवीं का इम्तहान शुरू कर दिये हैं. घरों में युद्ध सा माहौल रहता है. मुझे भी इम्तहानों के कारण मार्च से लेकर मई तक का महीना उदास करता था. घबराहट पैदा होती थी लेकिन एक दिन इस डर को जीतना सीख लिया. अफसोस यही है कि तब तक बहुत देर हो चुकी थी. अपने अनुभव से आपको यकीन दिला सकता हूं कि इम्तहान का डर जीता जा सकता है. जिस तरह से स्कूल के इम्तहान में कुछ नहीं रखा है, उसी तरह से इम्तहानों के डर में भी कुछ नहीं रखा है. हम जिन इम्तहानों के लिए लगता था कि जान दे देंगे, आज उनमें पास होने का सर्टिफिकेट कहां हैं, याद भी नहीं है. कुछ नहीं तो कम से कम बीस साल से उन सर्टिफिकेट को देखा तक नहीं है. यही हालत आपमें से बहुतों की होगी. अब तो स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट भी बेकार हो गया है जो जन्म प्रमाण पत्र के काम आता था.

इसका मतलब यह नहीं कि व्यवस्था में इम्तहान का महत्व नहीं है. हमारी पूरी व्यवस्था इम्तहान की बुनियाद पर बनी है. इम्तहान के ज़रिये ही आपका मुख्य रूप से मूल्यांकन होता है. नामांकन होता है. इसलिए जो भी कहे कि इम्तहान को महत्व नहीं देना है, अगर वो नेता है तो पक्का उसके चक्कर में नहीं पड़ना है. इम्तहान वास्तविकता है. इम्तहानों का सामना तो करना पड़ेगा. मामूली समझदारी और धीरज से आप इस दानव से निपट सकते हैं. इस देश में इम्तहान की व्यवस्थाएं अलग-अलग राज्यों में हर साल टॉपर पैदा करती हैं, स्कूल से लेकर ज़िला, ज़िला से लेकर राज्य, राज्य से लेकर ऑल इंडिया लेवल के टॉपर. ये सब टॉपर आगे चल कर कपूर की तरह उड़ जाते हैं. कुछ सफल होते हैं कुछ के लिए स्कूल की सफलता बोझ हो जाती है. इसी दौरान बहुत से समूह माता-पिता से लेकर बच्चों के तनाव को दूर करने के लिए तरह तरह के प्रयास करते रहते हैं.

बंगलुरू का एक बैंड है स्वरथमा. एक आंदोलन चला रहे हैं ये लोग प्रेशर रिलीज़ करो. नो मोर प्रेशरपंती, ओनली पागलपंती. महाराष्ट्र, बिहार, मध्यप्रदेश, गुजरात, भारत के सभी राज्यों के छात्रों से यही गुज़ारिश है कि इसी में थोड़ी मस्ती कर लीजिए. कोई आपका दोस्त आपसे एक नंबर से आगे हो जाएगा तो कुछ नहीं होने वाला है. तब भी भारत की जनता चुनावों में घटिया और झूठे भाषण देने वाले नेताओं को चुनती रहेगी. ऐसा कुछ भी नहीं बदलना है कि आपको जल्दी-जल्दी कुछ करना है. रिलैक्स. इस विषय पर मेरा कोई ख़ास ज्ञान नहीं है फिर भी मुझे लगता है कि जब तक भारतीय शिक्षा प्रणाली से इम्तहान ख़त्म नहीं हो जाते तब तक इम्तहानों के लिए ये जो सेंटर की व्यवस्था है उसे समाप्त किया जा सकता है. जिस स्कूल में आप पांच साल पढ़ते हैं वहां इम्तहान क्यों नहीं दे सकते हैं. बच्चों को दूसरे स्कूलों के सेंटर पर ऐसे ले जाया जाता है जैसे अपराधी एक जेल से दूसरी जेल में शिफ्ट किये जा रहे हों. दूसरे स्कूल की अनजान इमारत और घबराहट पैदा करती होगी. जो स्कूल साल भर अपने बच्चों का इम्तहान लेते रहते हैं, वो अपने ही बच्चों के बोर्ड के इम्तहान नहीं ले सकते हैं, ऐसा लगता है कि कोई हमें सुरंग में छोड़ गया है. हम वहां से कभी निकलेंगी ही नहीं.

आपको ऐसा न लगे कि इम्तहान कोई हल्का टॉपिक है तो सिर्फ तीन राज्यों के आंकड़े बता रहे हैं जिससे आपको पता चल सकता है कि किस तादाद में बच्चों को इम्तहान में झोंक दिया गया है. राज्यों के मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री शुभकामना संदेश छपवा रहे हैं. प्रधानमंत्री ने भी 'मन की बात' में ये बात कही है कि इम्तहान से घबराना नहीं है.
CBSE
12वीं बोर्ड - 11 लाख छात्र
10वीं बोर्ड - 16.68 लाख छात्र
यूपी बोर्ड
12वीं बोर्ड - 26.24 लाख छात्र
10वीं बोर्ड - 34.4 लाख छात्र
बिहार बोर्ड
12वीं बोर्ड - साढ़े 12 लाख से ज़्यादा छात्र
10वीं बोर्ड - 7 लाख से ज़्यादा छात्र

मध्य प्रदेश में भी 10 वीं और 12 वीं में बीस लाख बच्चे इम्तहान दे रहे हैं. जो बच्चे अवसाद के शिकार हैं, उन्हें मन नहीं लग रहा है वे ज़रा खुद को संभाले. राहु केतु का न तो प्रकोप होता है न कृपा. विषय को समझिये, तर्क से देखिये और लिख दीजिए. बाकी का लोड मत लीजिए. अक्षत छिड़कने से कुछ नहीं होने वाला है. क्लास में ध्यान से सुनिये और व्हाट्स अप छोड़ कर एकाग्र रहिए. इम्तहान वो जंग है जिसमें हर साल देश के लाखों बच्चे झोंक दिये जाते हैं. लगे कि जंग है इसके लिए व्यवस्था अवसरों की सीमित करती है. वेकैंसी कम करती है. अच्छे स्कूल कॉलेज कम बनाती है ताकि आपका तनाव बढ़ता रहे और आप लोन लेकर प्राइवेट कॉलेजों में दाखिला लेते रहे. आपके तनाव से सिस्टम दूसरों के लिए जो अवसर पैदा करता है, यह आप समझ लेंगे तो इसी कारण से आप तनाव में नहीं रहेंगे कि आपकी इस कमज़ोरी से दूसरों का धंधा चल रहा है. सो रिलैक्स रहिए. उस भूगोल को याद कर लीजिए जिसे कई पीढ़ियों से लोग याद कर रहे हैं. स्कूल के स्कूल में लाखों बच्चों को पूरी दुनिया में ग्लोब पढ़ाया जाता है. भूगोल पढ़ाया जाता है. इसके बाद भी हम और आप गूगल मैप लेकर अपने शहर में दूसरे का पता खोज रहे होते हैं. ये भूगोल की पढ़ाई की कामयाबी का नमूना. उम्मीद है आप मेरा इशारा समझ गए होंगे.

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