विज्ञापन
This Article is From Jan 26, 2018

क्या 'पद्मावत' ने नीतीश कुमार के सुशासन के दावे की पोल खोल दी!

Manish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 26, 2018 18:53 pm IST
    • Published On जनवरी 26, 2018 17:49 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 26, 2018 18:53 pm IST
अगर आज आपसे कोई यह पूछे कि एक बिहार के आम नागरिक, उनके पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश और झारखंड के निवासी में क्या अंतर है तो आपका जवाब यही होना चाहिए कि जहां भाजपा के मुख्यमंत्री हैं उन सरकारों ने फिल्म में रुचि रखने वाले निवासियों के लिए अपनी पुलिस की मौजूदगी में इतना सुनिश्चित किया कि वे फिल्म पद्मावत देख सकें. लेकिन भाजपा के समर्थन और राज्य में कानून के राज का दावा करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूरे बिहार की तो छोड़िए राजधानी पटना में भी इस फिल्म को रिलीज़ नहीं करवा पाए.

निश्चित रूप से नीतीश कुमार गाहे बगाहे ही कोई फ़िल्म देखते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो कभी फ़िल्म देखने नहीं गए होंगे. लेकिन सवाल है कि क्या कारण है कि भाजपा के मुख्यमंत्री अपनी पुलिस की तैनाती करवाकर करणी सेना के अति उत्साहित लोगों की हिंसा रोकने में कामयाब रहे, लेकिन बिहार की पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. बिहार में फिल्म का रिलीज़ न हो पाना निश्चित रूप से नीतीश सरकार के ऊपर एक काला धब्बा है, क्योंकि गृह मंत्री भी नीतीश कुमार हैं और राज्य की पुलिस उनके अधीन आती है. बिहार में सहयोगी भाजपा के किसी मंत्री ने हाल के दिनों में पद्मावत को रिलीज़ न होने देने पर कभी कुछ सार्वजनिक रूप से नहीं कहा, लेकिन सवाल है कि जब सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को नीतीश लागू नहीं करवा पाए तब क्या उन्होंने ख़ुद से अपने इच्छाशक्ति के अभाव में अपने क़ानून के राज के दावों का खुद ही मखौल नहीं उड़ाया है?

निश्चित तौर पर बिहार सरकार ने पद्मावत फ़िल्म पर प्रतिबंध कभी नहीं लगाया और न ही किसी कोर्ट में गई कि इस सिनेमा के रिलीज़ करने पर उनके राज्य में कोई विधि व्यवस्था की समस्या होती. लेकिन सवाल है कि इस अघोषित प्रतिबंध लगाने के पीछे नीतीश कुमार की क्या मजबूरी हैं? पिछले 24 घंटे में वह चाहे योगी सरकार हो या रघुबर दास की सरकार या पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार, सबने दिखा दिया कि अगर आपके पास इच्छाशक्ति हो तो सब 'निजी सेनाएं' सरकार के सामने बौनी हैं.

हालांकि बिहार सरकार ने बयान दिया था कि सिनेमा मालिकों पर इस फ़िल्म को दिखाने पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा. राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक के भी बयान आए लेकिन सिनेमा मालिकों का रोना था कि जब सुरक्षा की बात आई तो सरकार और प्रशासन के गोलमोल रवैये से उन्हें साफ़ संकेत मिल गया कि सरकार इस फ़िल्म के प्रदर्शन के बाद कोई बखेड़ा मोल नहीं लेना चाहती. सिनेमा हाल के मालिक कोई प्रदर्शन या तोड़फोड़ का जोखिम नहीं लेना चाहते थे. उनका कहना था कि रांची और लखनऊ में सरकार ने प्रदर्शन के पहले सुरक्षा मुहैया करा दी थी. ये बात अलग है कि राज्य में इस फ़िल्म का विरोध करने वाली करणी सेना का ना कोई जनधार है और ना ही कोई क़द्दावर नेता. हालांकि भाजपा और जनता दल यूनाईटेड के कुछ विधायक और एक-दो मंत्रियों ने कोर्ट के फ़ैसले के पूर्व प्रतिबंध लगाने की मांग की थी लेकिन हाल के दिनों में वे भी मौन धारण किए हुए थे. तब सवाल है कि आख़िर सरकार निष्क्रिय क्यों रही और क्या नीतीश कुमार राजपूत वोटर नाराज़ ना हों, इसके लिए अपने राज्य में ‘क़ानून का राज’ है, पर भी दांव पर लगाने से नहीं चूके.

सरकार में सहयोगी भाजपा के नेताओं का कहना है कि उनकी तरफ़ से कोई दबाव नहीं था.राजपूत वोट बिहार में इसलिए नाराज़ हो जाएगा कि सरकार ने सिनेमा हाल को सुरक्षा दी, तो ये सोचना बेवकूफी है. वोट के समय कई मुद्दे होते हैं और बिहार में एक ही मुद्दा होगा लोकसभा में कि लोग नरेंद्र मोदी को चाहते हैं और विधानसभा के चुनावों में वे नीतीश को मौका देंगे या लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव को. भाजपा का मानना है कि दोनों हालत में बिहार का राजपूत राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन का साथ नहीं छोड़ने वाला. भाजपा का दावा है कि लालू के साथ गठबंधन खत्म होने के बाद भाजपा के सहयोग से जब सरकार बनी तब शुरू के कुछ दिनों में गौरक्षा के नाम पर कई हमले हुए लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ़ से साफ़ संदेश था कि ऐसे तत्वों से सख़्ती से निपटा जाए. लेकिन ये भाजपा के नेताओं के समझ से परे था कि नीतीश कुमार ने करणी सेना के एक संभावित हमले से निपटने में अपनी पुलिस को क्या अक्षम मान लिया था.

हालांकि नीतीश समर्थक मानते हैं कि सरकार दबाव देकर किसी सिनेमाघर के मालिक से कोई फ़िल्म दिखाने को नहीं कह सकती. सरकार ने सार्वजनिक रूप से फ़िल्म दिखाने का आग्रह किया था लेकिन अगर कोई दिखाना नहीं चाहता तो उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं की जा सकती. जनता दल यूनाईटेड के नेताओं का मानना है कि हो सकता है कि फिल्म दिखाने वाले जैसी सरकार से सुरक्षा की उम्मीद कर रहे हों वैसी स्थानीय पुलिस ने प्रतिक्रिया नहीं दी हो. लेकिन इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को घसीटना अपनी कल्पना को उड़ान देने के समान है. इन लोगों का कहना है कि किसी जाति या निजी सेना के सामने झुकने का सवाल नहीं और याद रखना चाहिए कि पिछले कुछ वर्षों में नीतीश कुमार की ही देन है कि समाज से जातीय तनाव कम ही नहीं बल्कि ख़त्म भी हुआ.

लेकिन पद्मावत ने राज्य के लोगों को लालू यादव के उस युग की जरूर याद दिला दी जब गंगाजल नाम की फ़िल्म में खलनायक का नाम साधु यादव होने के कारण उसे कुछ समय के लिए रिलीज़ नहीं होने दिया था. बाद में झा लालू यादव से मिले. साधु यादव के कुछ चेलों ने उस सिनेमा को देखा और कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाने पर फ़िल्म को रिलीज़ होने दिया. बाद में नीतीश कुमार के हाथों में सत्ता आई तो प्रकाश झा का अपहरण और आरक्षण जैसी विवादास्पद फ़िल्में आईं, कभी बिहार में बवाल नहीं हुआ.

लेकिन पद्मावत फ़िल्म के समय वही प्रकाश झा, जिनका मल्टीप्लेक्स राजधानी पटना में है और झा जनता दल यूनाइटेड के सदस्य हैं, ने फ़िल्म ना दिखाना बेहतर समझा. शायद उनका भी विश्वास नीतीश कुमार और राज्य की पुलिस पर अब नहीं रहा. ये शायद एक बहुत छोटी घटना हो लेकिन नीतीश कुमार की छवि पर ना केवल प्रतिकूल असर डालती है बल्कि उन्हें योगी आदित्यनाथ और रघुबर दास के सामने कमज़ोर साबित करती है.


मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायीनहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com