I have not given chair/table in Staff room bcse of my Chamar Caste,still facing discrimination in 21st century.
— ARUN KUMAR (@ChoudhriAk) May 19, 2015
मैं @ChoudhriAk नाम से बने हैंडल को स्क्रोल करते हुए हर ट्वीट को ध्यान से पढ़ने लगा। पता चला कि अरुण कुमार चौधरी ने प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, पंजाब के मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता और तमाम अख़बारों और चैनलों को ट्वीट किया है। अपने ट्वीट के साथ अनुसूचित जाति आयोग से लेकर मानवाधिकार आयोग तक की गई शिकायतों की चिट्ठी जोड़ी है। 
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भटिंडा के अरुण कुमार से फोन पर बातचीत हुई और उनके अनुसार जो कहानी है वो इस तरह से है।
पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला का भटिंडा में एक रीजनल सेंटर है। वहां की लौ फैकल्टी में 6 पद हैं। सहायक प्रोफेसर का एक पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। 2011 में पहली बार कांट्रेक्ट पर हुआ। जब भी इंटरव्यू हुआ अरुण के अलावा कोई पहुंचा ही नहीं लिहाज़ा विश्वविद्यालय को उन्हें 2012 में भी बहाल करना पड़ा। स्थायी पद की वैकेंसी होने के बावजूद अरुण कुमार चौधरी कांट्रेक्ट पर रखे जाते रहे। अरुण कुमार ने इसी रीजनल सेंटर से पढ़ाई भी की है। जब अरुण कुमार चौधरी ने आवाज़ उठानी शुरू कि तो उन्हें लेकर विभाग के पुराने शिक्षकों को परेशानी होने लगी। ''टीचरों के काम के बंटवारे के लिए होने वाली बैठक में मुझे नहीं बुलाया जाता था। मुझे टीचिंग से अलग काम दिया जाता था कि आप दोपहर दो बजे क्लास ख़त्म होने के बाद शाम पांच बजे तक कॉलेज में रुको। जबकि सारे टीचर घर चले जाते थे। मुझे छुट्टी के दिन भी सेंटर में बुलाया जाता था'', फोन पर बात करते हुए अरुण कुमार न तो भावुक थे न उत्तेजित। बेहद संयमित और तार्किक तरीके से अपनी बात बता रहे थे।
@HRDMinistryhelp me,I m facing discrimination bcse of my Chamar caste....arun kumar, asst.professor, Law deptt., Punjabi university,bathinda
— ARUN KUMAR (@ChoudhriAk) June 1, 2015
उन्होंने कहा कि मेरे ख़िलाफ़ उनकी नाराज़गी तब और बढ़ गई जब पंजाबी विश्वविद्यालय ने रीजनल सेंटर से राष्ट्रीय स्तर का सेमिनार कराने के लिए कहा। विभाग के प्रोफसरान नहीं चाहते थे इसलिए टालने के लिए यह जिम्मा मुझे दे दिया। मैंने उस सेमिनार को कामयाब बना दिया। तब से उन्हें लगा कि अरुण तो दबने वाला नहीं है। मैं छात्रों को लगन से पढ़ा भी रहा था। तभी अचानक मुझे पता चलता है कि सेंटर के 35 लोगों ने मेरे ख़िलाफ़ लिखित शिकायत की है। दो महीने के कार्यकाल में मैंने इनमें से कई लोगों का चेहरा तक नहीं देखा था। मेरे विभाग की एक महिला टीचर ने आरोप लगाया कि मैंने उन्हें फोन कर अपशब्दों का प्रयोग किया। बाद में चपरासी से लेकर क्लर्क तक ने उस मेमोरेंडम पर दस्तख़त किये कि मैं अनुशासन तोड़ता हूं और व्यवहार ठीक नहीं है। विश्वविद्यालय ने इसकी जांच के लिए तीन सदस्यों की एक कमेटी बनाई जिसके सभी सदस्य रीजनल सेंटर के ही थे और उनमें से एक तो शिकायतकर्ता भी था। मेरा सामाजिक बहिष्कार भी किया गया।कमेटी की रिपोर्ट के बाद मुझे भटिंडा से ढाई सौ किलोमीटर दूर मांसा ज़िले के जुनीर कस्बे में भेज दिया गया। वहां कानून का कोई विभाग ही नहीं है। मुझे अंग्रेज़ी पढ़ाने के लिए बाध्य किया गया। ढाई साल तक मैंने वहां अंग्रेज़ी पढ़ाई जबकि मैं एलएलबी, एलएलएम हूं। मेरा तबादला नहीं हुआ, डेपुडेशन के नाम पर भेजा गया ताकि सवाल न उठे कि सौ लोग कांट्रेक्ट पर लिये गए हैं, उनमें से एक का तबादला क्यों हो रहा है। मैंने 20 मई 2015 को अप्रैल को वाइस चांसलर को ई-मेल किया कि मुझे प्रताड़ित किया जा रहा है और मैं तनाव में आकर आत्महत्या कर सकता हूं। आप इसके ज़िम्मेदार होंगे। उस समय मोगा बस कांड को लेकर हंगामा हो रहा था, वाइस चांसलर को लगा कि इसे लेकर कोई और बवाल न हो जाए इसलिए मेरा तबादला वापस रीजनल सेंटर में कर दिया गया। मुझ पर दबाव डाला जाने लगा कि मैं अनुसूचित जाति आयोग से अपनी शिकायतें वापस ले लूं।
@narendramodihelp me.I m Chamar by Caste and facing exploitation in hands of Punjabi University Patiala,otherwise they will ruined my Career
— ARUN KUMAR (@ChoudhriAk) May 31, 2015
''11 मई को मेरा तबादला हो गया। 13 मई को ज्वाइन करने के बाद से लेकर आज तक मुझे विभाग के स्टाफ रूम में बैठने के लिए कुर्सी मेज़ नहीं दी गई है जबकि डेपुटेशन पर जाने से पहले मैं उसी कमरे में दो साल तक बैठता रहा। वहां इस वक्त पांच मेज़ और पांच कुर्सियां हैं। हम छह लोग हैं। हममें से एक टीचर इंचार्ज होने के कारण अलग कमरे में बैठते हैं इसलिए एक मेज़ ख़ाली है। फिर भी मुझे इतने दिनों तक बैठने नहीं दिया गया। मैं लाइब्रेरी में बैठ रहा हूं।''
Feeling safe after tweeted to Hon'ble CM Punjab S.Parkash Singh Badal Ji, I hope I will get justice at door step of CM Punjab.
— ARUN KUMAR (@ChoudhriAk) May 30, 2015
अरुण कुमार चौधरी की दास्तान यहीं नहीं रुकती है। बताते हैं कि अनुसूचित जाति आयोग ने जब रजिस्ट्रार को लिखित नोटिस भेजा कि आप छात्रों और टीचर के साथ भेदभाव करते हैं, यह ठीक नहीं है तब जाकर मुझे जनवरी फरवरी की सैलरी मिली। आयोग ने अब दिलचस्पी लेनी छोड़ दी है तो मुझे मार्च से लेकर अब तक सैलरी भी नहीं दी जा रही है। यही नहीं विश्वविद्यालय ने अरुण कुमार चौधरी को नोटिस भेजा है कि आप कालेज से ग़ैर हाज़िर रहे हैं। अरुण कुमार का कहना है कि विश्वविद्यालय मे हाज़िरी लगाने की कोई प्रक्रिया ही नहीं है। मैंने क्लास लिया है और अब भी जब इम्तहान चल रहे हैं तो मुझे काम सौंपा गया है। मैं जब भी ड्यूटी होती है, सेंटर जाता हूं लेकिन हाज़िरी लगाने का कोई सिस्टम ही नहीं है।
ज़रूर विश्वविद्यालय का भी अपना पक्ष होगा। हम विश्वविद्यालय का पक्ष भी लेने की कोशिश कर रहे हैं। सारी बातें कितनी है और नहीं है इस पर दो राय हो सकती है मगर अरुण की कहानी की कई बातों से साफ हो जाता है कि उन्हें परेशान ही नहीं अपमानित भी किया गया है।
तमाम आयोगों के पीछे भागते रहने के बाद भी अरुण कुमार चौधरी की यातना कम नहीं हुई है। एक विश्वविद्यालय में यह सब हो रहा है। क्या वहां किसी टीचर को ही पहल कर इसका हल नहीं ढूंढना चाहिए था। आयोग को उन 35 लोगों के ख़िलाफ़ भी जांच करनी चाहिए जिन्होंने अरुण कुमार चौधरी के ख़िलाफ़ शिकायत किये हैं। उस कमेटी की रिपोर्ट भी निकालनी चाहिए जिसने अरुण कुमार को अंग्रेज़ी पढ़ाने के लिए ढाई सौ किलोमीटर दूर भेजा। किसी को ट्विटर पर आकर अपनी जाति का नाम लेकर कहना पड़े कि हमारी मदद कीजिए मुझे बैठने के लिए कुर्सी नहीं दी जा रही है, कम से कम हम सभी को शर्म तो आनी ही चाहिए।