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This Article is From Aug 25, 2014

तिब्बत में एनडीटीवी इंडिया : दलाई लामा का वह पुराना महल

Kadambini Sharma, Umashankar Singh
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  • Updated:
    August 25, 2014 19:12 IST
    • Published On August 25, 2014 19:24 IST
    • Last Updated On August 25, 2014 19:24 IST

आज हमें ल्हासा में उस महल को देखने का मौक़ा मिला, जिसमें चौदवें दलाई लामा ने 1956 से 1959 तक की तीन गर्मियां बिताई थीं। ये महल नार्बुलिंका में बना है। नार्बुलिंका का मतलब ट्रेजर गार्डन या ट्रेजर पार्क है, जिसे 18वीं सदी के मध्य में सातवें दलाई लामा केल्सांग गयत्सो (kelsang Gyatso) ने बनवाया था। इस पार्क को 20वीं सदी तक बड़ा और बेहतर किया जाता रहा।

36 हेक्टेयर में फैले इस पार्क में अलग-अलग तरह के 400 कमरे हैं। हरे भरे और फूलों से लदे इसी पार्क में 1952 में चौदहवें दलाई लामा के लिए महल बनाने का काम शुरू हुआ जो 1956 में पूरा हुआ। इसे दलाई लामा के समर पैलेस के तौर पर भी जाना जाता है। इससे पहले पोटाला पैलेस दलाई लामा का निवास हुआ करता था। कुछ जानकार बताते हैं कि चीन की सरकार से अनबन के चलते ही दलाई लामा को नए और अपेक्षाकृत छोटे महल में शिफ़्ट किया गया। लेकिन कुछ इस थ्योरी को ग़लत बताते हैं।

1959 में ही तिब्बत में चीन के 'डेमोक्रेटिक रिफॉर्म' के विरोध में दलाई लामा ने तिब्बत छोड़ दिया और फिर भारत में निर्वासित जीवन व्यतीत करने लगे। तब से ये महल ख़ाली पड़ा है। हालांकि वे तिब्बती जो चीन पर तिब्बत को क़ब्ज़ाने का आरोप लगाते हैं उनका कहना रहा है कि चीन की दख़ल की वजह से ही दलाई लामा को तिब्बत छोड़ भारत में शरण लेनी पड़ी।

इसके बाद चीनी सरकार ने इसे आम सैलानियों के लिए खोल दिया है। यहां बड़ी तादाद में दलाई लामा के अनुयायी भी आते हैं। अच्छी बात ये है कि यहां दलाई लामा से जुड़ी हर चीज़ रखी हुई है, सिवाए उनकी किसी तस्वीर के। तीर्थयात्री दलाई लामा के सिंहासन से लेकर उनके बैठने के कमरे तक में जाकर माथा टेकते हैं। यहीं हमारी मुलाक़ात माथा टेकती एक ऐसी तिब्बती महिला से हुई जो हिन्दी जानती थी। उसने हमें देखते ही इंडिया बोला। हमने उनसे दलाई लामा के बारे में पूछा तो उसने सिर्फ इतना कहा, वे जहां भी रहें ठीक रहें।

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