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माइक टायसन की वापसी यही कहती है - उम्र महज़ एक आंकड़ा है

Amaresh Saurabh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 24, 2024 18:17 pm IST
    • Published On अगस्त 21, 2024 16:53 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 24, 2024 18:17 pm IST

विख्यात बॉक्सर माइक टायसन ने रिंग में वापसी का ऐलान कर अपने प्रशंसकों को भी हैरत में डाल दिया है. 58 साल के टायसन नवंबर में 27 साल के जेक पॉल से भिड़ने को तैयार हैं. इस मुकाबले का नतीजा चाहे जो हो, लेकिन एक बात पहले से तय है. टायसन ने दुनिया के सामने इस बात का एक और उदाहरण पेश कर दिया है कि उम्र कुछ और नहीं, महज़ एक आंकड़ा है!

सुर्खियों में हैवीवेट चैम्पियन

हैवीवेट बॉक्सिंग चैम्पियन रह चुके माइक टायसन साल 2005 से ही किसी भी प्रोफ़ेशनल मुकाबले में नहीं उतरे हैं. ऐसे में उनका हालिया ऐलान काफ़ी दिलचस्प है. पहले यह मुकाबला 20 जुलाई को होने वाला था, लेकिन टायसन को अल्सर की समस्या होने की वजह से इसे टाल दिया गया. अब सबकी निगाहें 15 नवंबर को अमेरिका के टेक्सास में होने वाली भिड़ंत पर टिकी हैं.

नतीजा कौन पूछता है?

एक समय बॉक्सिंग की दुनिया में माइक टायसन की तूती बोलती थी. वह 1987 से 1990 तक निर्विवाद रूप से हैवीवेट चैम्पियन रहे. अब लंबे अरसे बाद जब वह रिंग में उतरेंगे, तो मुकाबले का नतीजा कौन पूछेगा? टायसन ने इस उम्र में 'चित भी मेरी, पट भी मेरी' वाला दांव खेल दिया है. अगर जीत गए, तो हर ओर वाहवाही! अगर हार गए, तो भी कोई बात नहीं. सब जेक पॉल से ही पूछेंगे कि अपने से दोगुने, अधेड़ उम्र के खिलाड़ी को हराकर कौन-सा तीर मार लिया?

इन दोनों ही संभावनाओं के बीच एक बात देखने लायक है. ढलती उम्र में टायसन ने जिस दिलेरी का परिचय दिया है, वह अद्भुत है. बॉक्सिंग एक ऐसी चीज़ है, जिसमें ताकत से भी कहीं ज़्यादा चुस्ती-फुर्ती मायने रखती है. 58 की उम्र में भी टायसन के भीतर कितनी चुस्ती-फुर्ती बरकरार है, यह तो देखा जाना बाकी है, लेकिन उन्होंने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में जिस तरह अपने प्रतिद्वंद्वी को ललकारा, वह हैरान करने वाला है.

मैं ही मैं हूं...

जब टायसन से पूछा गया कि वह जेक पॉल से मुकाबला क्यों करना चाहते हैं, तो उन्होंने बेबाकी से जवाब दिया, "क्योंकि मैं ऐसा कर सकता हूं... क्या मेरे अलावा कोई और है, जो ऐसा कर सकता है...? इस मुकाबले में मेरे अलावा और कौन लड़ेगा...?" मुमकिन है, टायसन 58 की उम्र को महज़ एक आंकड़ा साबित कर दें. अगर टायसन के जीवन के कुछ काले पन्नों को दरकिनार कर दें, तो वह अपने ताज़ा फ़ैसले पर तारीफ़ के हकदार नज़र आते हैं.

साहस से बड़ा क्या?

माइक टायसन के दिमाग में क्या चल रहा है, यह तो वही जानें. लेकिन अमेरिका के शिकागो की रहने वाली डोरोथी हॉफनर ने अपने मज़बूत इरादे दुनिया के सामने ज़ाहिर कर दिए थे. उन्होंने पिछले साल जो कारनामा किया था, वह हर किसी में साहस भरने वाला है. उनकी रीयल स्टोरी बेहद दिलचस्प है.

दरअसल, डोरोथी हॉफनर अक्टूबर, 2023 में 104 बरस की उम्र में विमान से छलांग लगाकर दुनिया की सबसे उम्रदराज़ स्काई-डाइवर बनी थीं. उन्होंने स्वीडन की लिनिया इंगेगार्ड लार्सन को पीछे छोड़ा था, जिन्होंने 103 साल की उम्र में यह कीर्तिमान बनाया था. नया रिकॉर्ड बनाने के कुछ दिन बाद सोते समय हॉफनर की मौत हो गई थी. हालांकि उन्होंने अपना मकसद पूरा कर लिया था. कैसा मकसद?

डोरोथी हॉफनर संदेश देना चाहती थीं कि ज़िन्दगी को ज़िन्दादिली से जीना चाहिए और इंसान को साहसिक गतिविधियों से जुड़े रहना चाहिए. लैंडिंग के कुछ पल बाद उन्होंने सबका हौसला बढ़ाते हुए कहा था, "उम्र सिर्फ़ एक संख्या है..."

करत-करत अभ्यास...

ऐसा नहीं कि केवल जान जोखिम में डालना ही साहस की परिभाषा में आता हो. रिटायर होने की उम्र में बोर्ड परीक्षा पास करने की दिलेरी दिखाने को भी कमतर नहीं आंका जा सकता. पंजाब में पिछले साल कुछ ऐसा ही हुआ था. दो दादियों को पढ़ाई-लिखाई छोड़े दशकों बीत चुके थे, लेकिन दोनों ने फिर कलम-कॉपी उठाने की ठानी और खुद को सही साबित कर दिखाया.

पंजाब के मोगा की रहने वाली बलजीत कौर ने 60 साल की उम्र में 10वीं बोर्ड की परीक्षा पास की. उनकी सहेली गुरमीत कौर ने 53 साल की उम्र में 12वीं बोर्ड की परीक्षा पास की. दोनों आशा वर्कर हैं. जिन शिक्षक ने इन दोनों को पढ़ाने में खास मदद की, उन्होंने उसी शाश्वत सच को दोहराया, जिसे सब जानते हैं - "जब कोई कुछ करने की ठान लेता है, तो उम्र मायने नहीं रखती..."

पापा कहते हैं...

इच्छाशक्ति के बूते क्या कुछ हो सकता है, इसे समझने के लिए प्रयागराज के एक डॉक्टर साहब की मिसाल दी जा सकती है. 49 साल के डॉक्टर ने अपनी बेटी को प्रेरित करने के लिए उसके साथ न केवल NEET का फ़ॉर्म भरा, बल्कि दोनों ने अच्छे रैंक के साथ यह कठिन परीक्षा पास भी की.

दरअसल, न्यूरोसर्जन डॉ प्रकाश खेतान की बेटी मिताली कोटा में NEET की तैयारी कर रही थीं. लेकिन कोरोना और लॉकडाउन के चलते पढ़ाई में लगातार अड़चन आ रही थी. ऐसी स्थिति में अपनी बेटी का हौसला बढ़ाने के लिए डॉ खेतान ने एक अनोखा फ़ैसला किया. वह बेटी के साथ-साथ किताब के पन्ने पलटने लगे. आखिरकार दोनों ने NEET (UG) 2023 में कामयाबी का परचम लहरा दिया.

डॉ खेतान कहते हैं कि पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती. उन्होंने युवा वर्ग से कहा कि कभी निराश और परेशान न हों. कोशिश करते रहें, सफलता ज़रूर मिलेगी.

चलते-चलते

ऐसा लगता है कि अपनी देह को किसी स्पर्धा में चोट-चपेट के लिए आगे कर देना कहीं ज़्यादा आसान है, लेकिन एक खास उम्र के बाद खुद को फिर से पढ़ाई-लिखाई के लिए तैयार कर पाना ज़्यादा मुश्किल. स्मरण शक्ति, किसी भी चीज़ पर ध्यान एकाग्र करने की शक्ति, ज़्यादा देर तक लिखने की क्षमता, पारिवारिक ज़िम्मेदारियां जैसे कई फ़ैक्टर सामने आ सकते हैं. यह बात भी सही है कि चुनौतियों से पार पाकर ही तो कोई इतिहास रच पाता है. दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन पाता है.

माइक टायसन जब अपने प्रतिद्वंद्वी से भिड़ने के बाद रिंग से बाहर आएंगे, तो उनसे एक सवाल ज़रूर पूछा जाना चाहिए. यही कि वह भारत के गांव-गांव, शहर-शहर की ख़बरों पर पैनी नज़र रखते हैं क्या? आखिर उनके दिमाग में इस उम्र में रिंग में उतरने का खयाल आया कहां से?

अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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