सियासी संकट टालने औऱ अपने नेतृत्व को बचाने के लिए चिराग पासवान खुद दिल्ली में अपने चाचा के घर नया प्रस्ताव लेकर पहुंचे थे. लेकिन उनका स्वागत गर्मजोशी से नहीं हुआ. उन्हें करीब दो घंटे तक इंतजार कराया गया और फिर कह दिया गया कि पशुपति पारस (Pashupati Paras) उपलब्ध नहीं हैं. चिराग ने अपनी मां रीना देवी को पार्टी का अध्यक्ष बनाने का दांव भी चला था और उसी के आधार पर आगे रणनीति करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन विरोधी खेमे ने इसे भाव नहीं दिया. यह चिराग पासवान के परिवार के सदस्यों और पार्टी नेताओं द्वारा उन पर लगाई गई सख्त लगाम है, जिनको उन्होंने कथित तौर पर हाशिए पर डाल दिया था.
चिराग ने खुद को बिहार की राजनीति (Bihar politics) के जटिल और प्रायः छल-कपट से भरे क्षेत्र में खुद को एक सियासी रणनीतिकार के तौर स्थापित करने की कोशिश की थी. जब पिछले साल बिहार का चुनाव हुआ तो चिराग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति तो अपना समर्थन खुले तौर पर जाहिर किया, लेकिन नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पार्टी JDU का समर्थन उन्होंने नहीं किया. चिराग पासवान ने कहा था कि वह राज्य में जेडीयू के खिलाफ हर सीट पर उम्मीदवार उतारेंगे. यह पीएम मोदी और बीजेपी के लिए इसका मतलब एक ही राज्य में दो धुर विरोधी सहयोगियों के साथ समन्वय करना था. चिराग पासवान के रुख ने बीजेपी को दोतरफा मदद की.
इस कारण बीजेपी को नीतीश कुमार के साथ सियासी सौदेबाजी में ज्यादा बढ़त लेने में मदद की. इस कारण बीजेपी के जिन नेताओं को टिकट नहीं मिला था, उन्होंने एलजेपी के टिकट पर मैदान में ताल ठोकी. पूरे तौर पर देखें तो इस पूरे सियासी खेल में बीजेपी (BJP) को सबसे ज्यादा फायदा मिला. यह भी एक तथ्य है कि पीएम नरेंद्र मोदी या अमित शाह ने कभी सार्वजनिक तौर पर चिराग पासवान को फटकार नहीं लगाई और ऐसा प्रतीत हुआ कि यह नीतीश कुमार पर निशाना साधने की एक गोपनीय रणनीति थी. चिराग पासवान ने बिहार में एनडीए छोड़ने का ऐलान भी किया था.
बिहार चुनाव में पहली बार पिछले एक दशक में सबसे बड़े खिलाड़ी के तौर पर उभरी. नीतीश कुमार की पार्टी को बिहार में सीटों के मामले में तीसरे नंबर पर रही. हालांकि बीजेपी ने साफ कहा कि चुनावी नतीजों से इतर वो गठबंधन में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के अपने वादे से पीछे नहीं हटेगी. इतना होते हुए भी यह स्पष्ट हो गया है कि वो अब सर्वेसर्वा नहीं रह गए हैं. तमाम सारे विवादों के मामले में ऐसा प्रतीत हुआ कि वो बीजेपी के समर्थन में दिए गए अपने पहले के बयानों से अलग रुख में नजर आए. चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट जीती थी अगर वो उन्हें बीजेपी के छद्म रूप और नीतीश कुमार के वोट काटने की भूमिका को आंका जाए तो उन्हें इसका कोई इनाम नहीं मिला. उन सभी अटकलों को भी विराम लग गया कि मोदी सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है.
पशुपति पारस ने आज नीतीश कुमार की तारीफ करते वक्त किसी प्रकार की सकुचाहट महसूस नहीं की. पारस ने उन्हें अच्छा नेता और योग्य प्रशासक बताया. बिहार में सियासी जोखिम के बाद एलजेपी कथित तौर पर अपनी पकड़ दोबारा पकड़ बनाने की कवयाद में दिख रही है. ऐसे वक्त जब मोदी सरकार की कैबिनेट में फेरबदल की संभावना दिख रही है तो उसे स्थान मिलने की अटकलें भी हैं. पशुपति पारस (Pashupati Paras) को कैबिनेट में जगह मिल सकती है. अचानक ही जिस व्यक्ति का करियर व्यापक तौर पर उसके बड़े भाई की छाया में आगे बढ़ा था, उसने बड़ा फायदा हासिल किया है.
वर्ष 2019 में जब राम विलास पासवान अस्वस्थ थे तो तो उन्होंने हाजीपुर सीट अपने छोटे पशुपति पारस को दी थी. तब भी उनके समर्थकों ने कहा था कि राम विलास छोटे भाई पशुपति को पुत्र चिराग से ज्यादा व्यावहारिक और धैर्यवान समझते हैं. पशुपति पारस के समर्थकों का कहना है कि उन्हें चिराग पासवान का उनके क्षेत्र में अफसरों के साथ अहंकारी व्यवहार रास नहीं आया. दोनों पक्षों के बीच टकराव अक्टूबर 2020 में चरम पर पहुंच गया था, जब एक स्थानीय चैनल पर पशुपति पारस ने विकास कार्यों कोलेकर नीतीश कुमार की खुलकर तारीफ की. चिराग पासवान ने तब अपने चाचा को घर बुलाया था और आगाह भी किया था कि उनके निलंबन का पत्र कभी भी टाइप किया जा सकता है. कहा जाता है कि पशुपति ने कथित तौर पर उसी दिन कह दिया था कि तुम्हारा चाचा आज से तुम्हारे लिए मर गया है.
जब अक्टूबर 2019 में पशुपति पारस को बिहार एलजेपी अध्यक्ष से हटाया गया था तो प्रिंस राज को कमान दी गई थी, जो चिराग पासवान का चचेरा भाई है. यह कदम उस वक्त उठाया गया था, जब प्रिंस राज की मां, जिनकी बहन की शादी पशुपति पारस के साथ हुई है, उन्होंने कथित तौर पर शिकायत की थी कि उनके साथ बेहद खराब व्यवहार किया जा रहा है.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ पशुपति पारस ही आज खुलकर सामने आए हैं.
नीतीश कुमार- जिन पर चिराग पासवान ने बिहार चुनाव के दौरान हर रैली में हमले किए-उन्होंने अपना बदला ले लिया है.हमेशा की तरह बीजेपी ने भी एक बड़ी बढ़त हासिल की है. उसके नेताओं का कहना है कि चिराग का कद छोटा होने के साथ पार्टी ने बिहार में पासवान समुदाय की 6 फीसदी आबादी को सीधे अपने पाले में लाने की कवायद तेज कर दी है. ऐसे में लंबे वक्त में पार्टी को ऐसे किसी सहयोगी की दरकार नहीं होगी, जो उस समुदाय का वोट उसके लिए जुटाए.
(मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.