एक जैसे है रंगभेद और जातिवाद...

हम जातिवाद पर, जाति के नाम पर किए अत्याचार पर शर्मसार नहीं होते. हम उसे छिपा लेते हैं या उसे सही करार देते हैं- सीधे या घुमा फिरा कर. यहीं एक लोकतंत्र, एक समाज के तौर पर हम फेल हो जाते हैं.

एक जैसे है रंगभेद और जातिवाद...

मेरी आंखें बार-बार भर आ रही थीं. उन पुरानी तस्वीरों, अखबार की कतरनों को देख-पढ़ कर सिहर जा रही थी. ये अमेरिकी इतिहास का सबसे डरावना और शर्मनाक पन्ना है. अमेरिका के अलबामा राज्य के मौंटगोमरी शहर में 26 अप्रैल, 2018 को खोला गया लेगेसी म्यूज़ियम ठीक उस जगह पर बना है जहां एक गोदाम में अफ्रीकी-अमेरिकी गुलामों को रखा जाता था. मौंटगोमरी के Equal Justice Initiative ने इसे लिंचिंग से मारे गए अफ्रीकी अमेरिकियों की याद में बनाया है और इनकी संख्या हज़ारों में रही. इस म्यूज़ियम से कुछ ही कदमों की दूरी पर गुलामों की नीलामी के लिए बना चौराहा हुआ करता था और यहां से बह रही अलाबामा नदी उनको लाने ले जाने का ज़रिया.

1860 में मौंटगोमरी गुलामों की सबसे बड़ी मंडी हुआ करता था. इस म्यूज़ियम में रखे उस वक्त अखबारों में गुलामों को बेचने के लिए निकले विज्ञापन बताते हैं कि कैसे इंसानों को जानवरों की तरह बेचा जाता था. कैसे उन पर अत्याचार होते थे. जिन जगहों पर पीड़ितों की लिंचिंग हुई वहां की ज़मीन की मिट्टी उनके अपने यहां लाए और ये मिट्टी मर्तबानों में रखी गई है, नाम के साथ. शोध, तस्वीरें और तकनीक इसे एक ना भूलने वाला अनुभव बना देती हैं.

ये अनुभव आज के अमेरिका में रंगभेद को एक संदर्भ भी देता है. लेकिन ये म्यूज़ियम एक और चीज़ बताता है कि कैसे आज के अमेरिका में इतनी परिपक्वता और खुलापन है कि वो इस बारे में बात करता है, अपने सबसे शर्मनाक पहलू को छिपाता नहीं. अपने नेताओं के बयानों और कदमों पर सवाल उठाता है. मीडिया घुटने नहीं टेक देता. सोचिए, मैं इस जगह अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक कार्यक्रम के तहत ही गई.

उनका रंगभेद हमारा जातिवाद है. लेकिन फर्क है. हम जातिवाद पर, जाति के नाम पर किए अत्याचार पर शर्मसार नहीं होते. हम उसे छिपा लेते हैं या उसे सही करार देते हैं- सीधे या घुमा फिरा कर. यहीं एक लोकतंत्र, एक समाज के तौर पर हम फेल हो जाते हैं. हम अत्याचार के इतिहास को नकारते हैं. दलितों के खिलाफ आज भी हो रहे अत्याचारों को नकार देते हैं. प्रशासन आम तौर पर तभी कार्यवाई करता है जब किसी प्रकार का दबाव हो. हम अब भी भेद-भाव को सहज तौर पर लेते हैं. क्या सिर्फ हत्या बलात्कार ही अपराध हैं? कोई सिर्फ इसलिए हैंडपंप या कुएं से पानी नहीं निकाल सकता क्योंकि वो नीची जाति का है, क्या ये अपराध नहीं? किसी को जाति या धर्म के कारण अगर आप नीचा महसूस करा रहे हैं तो क्या वो अपराध नहीं?

उदाहरण इतने हैं कि मैं यहां लिखना भी जरूरी नहीं समझती. और सबसे डरावना यही है कि इसे अब भी अपने देश का शर्मनाक पहलू मान कर पूरे मन से सही करने को हम तैयार नहीं. तभी तो देश के राष्ट्रपति के साथ एक मंदिर में दुर्व्यवहार हो जाता है और हम देखते रह जाते हैं. शायद हमें भी ऐसा ही लेगेसी म्यूज़ियम बनाना चाहिए ताकि अपनी अंदर की गंदगी देखें, समझें और बीते कल की स्याह छाया को आज खत्म कर सकें. पर उससे पहले ये माहौल तो बनाना होगा कि उसके सामने, उसके खिलाफ किसी तथाकथित ऊंची जाति की सेना प्रदर्शन ना शुरू कर दे, उसे आग न लगा दे.

(कादंबिनी शर्मा एनडीटीवी इंडिया में एंकर और एडिटर फॉरेन अफेयर्स हैं)

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