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This Article is From Feb 28, 2015

जेटली के बजट के हैं कई सियासी मायने

Akhilesh Sharma, Rajeev Mishra
  • Blogs,
  • Updated:
    फ़रवरी 28, 2015 20:24 pm IST
    • Published On फ़रवरी 28, 2015 18:54 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 28, 2015 20:24 pm IST

वित्तमंत्री अरुण जेटली के बजट ने सरकार को अपनी छवि सुधारने का एक बड़ा मौक़ा दे दिया है। इससे सरकार को न सिर्फ आर्थिक सुधारों की रफ़्तार तेज़ करने में मदद मिलेगी बल्कि आम आदमी की सामाजिक सुरक्षा और मध्य वर्ग के हाथों में ज़्यादा पैसे दिलवाने का मक़सद भी पूरा होगा।

वित्तमंत्री अरुण जेटली के इस बजट ने आने वाले चार साल के लिए सरकार के चाल, चरित्र और चेहरे को तय कर दिया है। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर किसान विरोधी होने का आरोप झेल रही सरकार ने ग़रीबों, मज़दूरों और किसानों के लिए एक के बाद एक योजनाओं की झड़ी लगा दी।

इनमें इलाज, पेंशन और मृत्यु बीमे की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के अलावा देहात में मज़दूरी बढ़ाने के लिए मनरेगा की रक़म बढ़ाना शामिल है। शुक्रवार को ही मनरेगा को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधा था।

दूसरा बड़ा क़दम स्वरोज़गार में लगे पांच करोड़ लोगों को काम में मदद के बीस हज़ार करोड़ रुपये का विशेष फ़ंड मुद्रा बनाना है। सब्सिडी की रक़म सीधे बैंक खातों में पहुंचे इसके लिए नगद मुक्त भारत की बात भी की गई है।

लेकिन, मध्य वर्ग को आय कर की दरों में कोई परिवर्तन नहीं कर कोई राहत नहीं दी गई है। शायद अगले चुनाव से पहले उनमें बदलाव किया जाए ताकि उसका तब चुनावी फायदा उठाया जा सके। बजट पेश करने के बाद पत्रकारों से बातचीत में जब वित्तमंत्री से पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया क्योंकि अगर वो आय कर की दरों तबदीली करते तो शायद अखबारों में ज़्यादा अच्छी हेडलाइन बनती। इस पर जेटली का कहना था कि उनका मकसद हेडलाइन बनाना नहीं है।

स्वास्थ्य बीमे और राष्ट्रीय पेंशन योजना में निवेश पर छूट बढ़ा कर और यातायात ख़र्च पर छूट दोगुना कर करदाताओं के हाथों में ज़्यादा पैसा दिया गया है। सरकार का मानना है कि करदाताओं के हाथों में अधिक पैसे आने का फायदा उत्पादन क्षेत्र को भी मिलता है।

हालांकि कारपोरेट टैक्स को पांच फ़ीसदी घटा कर सरकार ने आलोचनाओं को आमंत्रित किया। पर उसकी दलील है कि दूसरी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के मुक़ाबले ये ज़रूरी है। छूट के साथ अभी वो 23 फ़ीसदी टैक्स ही देते हैं।

सर्विस टैक्स बढ़ाना भी एक बड़ा मुद्दा है मगर सरकार का कहना है कि जीएसटी के लिए ये ज़रूरी है। विपक्ष के मुताबिक़ इससे साबित होता है कि सरकार सिर्फ कारपोरेट के लिए काम कर रही है।

काले धन के ख़िलाफ़ नए क़ानून लाने का एलान कर सरकार ने अपने एक बड़े चुनावी वादे को पूरा करने की दिशा में क़दम बढ़ाया है। वहीं, बंगाल और बिहार को ज़्यादा रियायतें देकर वहां आने वाले चुनावों के लिए इरादे साफ़ कर दिए गए हैं।

कुल मिला कर सरकार ने इस बजट ये संकेत दिया है कि वो आर्थिक सुधारों की रफ़्तार तो तेज़ करेगी पर इसके राजनीतिक नफ़े नुक़सान को ध्यान में रख कर ही।

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