नीतीश कुमार और लालू यादव (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: नीतीश कुमार का शपथ ग्रहण एक तरह से शक्ति प्रदर्शन भी था और देश को यह जतलाने की कोशिश भी कि महागठबंधन के पास भी ताकत है और वह भी दिखावा कर सकता है। शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ,जेडीएस नेता देवेगौड़ा, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, सीपीआई के डी राजा जैसे लोग थे तो सिक्किम, मणिपुर, असम, अरुणाचल प्रदेश सहित 9 राज्यों के मुख्यमंत्री भी आए थे।
देश में राजनीति का दूसरा विकल्प दिखा
इस शपथ ग्रहण समारोह से आपको भारत की राजनीति का दूसरा विकल्प दिखा। यहां कांग्रेस भी है तो ममता बनर्जी और सीता राम येचुरी भी। यहां गोगई हैं तो बदरुद्दीन अजमल भी...असम गण परिषद के प्रफुल्ल महंत भी, सुखबीर बादल भी हैं यहां, शरद पवार हैं तो शिव सेना के रामदास कदम और प्रकाश आंबेडकर भी, हरियाणा के अभय चौटाला हैं तो झारखंड के बाबूलाल मरांडी... हेमंत सोरेन भी, तमिलनाडु से डीएम के स्टालिन भी थे, उत्तर प्रदेश सेअजित सिंह भी हैं यहां। कसर रह गई मुलायम और मायावती की...।
मायावती-मुलायम को लेकर संशय
पूरे देश के मानचित्र पर यदि इस महागठबंधन को दिखाएं तो कुछ यह तस्वीर बनती है...शुरुआत करते हैं जम्मू-कश्मीर से फारुख अब्दुल्ला, दिल्ली से केजरीवाल, कांग्रेस शासित राज्य जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, कर्नाटक और केरल। इसके अलावा सिक्किम,पश्चिम बंगाल, झारखंड, महाराष्ट्र और तमिलनाडु से किसी न किसी खास तौर पर विपक्षी दल जरूर मौजूद दिखा। यह सभी राज्य काफी महत्वपूर्ण हैं। राज्य सभा में संख्या के लिए जहां सरकार पहले से ही अल्पमत में हैं लेकिन इस महागठबंधन में मायावती और मुलायम को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है कि वे किधर जाएंगे। आज के शपथ ग्रहण समारोह के लिए अखिलेश यादव को न्यौता था मगर वे किसी कारणवश पहुंच नहीं पाए। मायावती का भी कोई प्रतिनिधि नहीं दिखा। मगर इतना तो तय है कि इस महागठबंधन का हिस्सा मायावती या मुलायम में से एक जरूर होगा। राज्य सभा में मुलायम की समाजवादी पार्टी के साथ संख्या 130 बनती है और मायावती के साथ 125, जबकि एनडीए के पास 63 सीट हैं।
तृणमूल और वामपंथियों का साथ मुमकिन नहीं
दरअसल दिल्ली और अब बिहार में बीजेपी की हार के बाद अब विपक्ष को अपनी एकता का अहसास हो रहा है। अगला विधानसभा चुनाव असम, बंगाल,केरल समेत पांच राज्यों में होने वाला है, जहां असली राजनैतिक लड़ाई होनी है। यहां कांग्रेस ,बदरुद्दीन अजमल, टीएमसी और बोडो पार्टियों को साथ आना होगा। इसी तरह बंगाल में उत्तर प्रदेश जैसे हालात हैं जहां मायावती और मुलायम का मिलना मुश्किल लगता तो बंगाल में वामपंथियों और तृणमूल का साथ आना। ऐसे में कांग्रेस की भूमिका अहम होगी कि वो किधर जाकर महागठबंधन बनाना चाहती है। इन राज्यों के चुनाव में इन नेताओं के अहं की भी परीक्षा होगी कि वे महागठबंधन के सफल फार्मूले को अपनाते हैं या फिर समाजवादियों की तरह मिलकर एक बार फिर बिछड़ जाते हैं।