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This Article is From Nov 12, 2018

कैंसर की चुनौती से निपटने की तैयारी कितनी?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 12, 2018 23:27 pm IST
    • Published On नवंबर 12, 2018 23:27 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 12, 2018 23:27 pm IST
भारत कैंसर से लड़ने के लिए कितना तैयार है? महानगरों को छोड़ राज्यों की राजधानियों और कस्बों में कैंसर से लड़ाई की हमारी तैयारी क्या है? गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर कैंसर से जूझ रहे हैं. विदेशों में भी इलाज के लिए गए और फिर वापस आकर एम्स में भी इलाज करवाया. मनोहर पर्रिकर तो लड़ रहे हैं. जब हम कहते हैं कि फलां कैंसर से लड़ रहे हैं तो हमारा क्या मतलब होता है, क्या हम यह मानकर चलते हैं कि कैंसर से लड़ना मरीज़ की ज़िम्मेदारी है या फिर हमारी संस्थाओं को इस लड़ाई के लिए तैयार रहना चाहिए.

बेंगलुरू दक्षिण से भाजपा के 6 बार सांसद रहे अनंत कुमार का निधन हो गया. अनंत कुमार को कैंसर था. 59 साल की ज़िंदगी में अनंत कुमार ने लंबी राजनीतिक यात्रा तय की. 1996 में 37 साल की उम्र में पहली बार सांसद बने और तब से इस सीट पर उन्हें कोई नहीं हरा सका. आंत का कैंसर एक मुश्किल बीमारी है भी. इलाज को लेकर अटकलें लगाना बिल्कुल उचित नहीं होगा, लेकिन क्या हम अनंत कुमार के बहाने ही सही, कैंसर से लड़ने की अपनी तैयारी और प्रतिबद्धता पर बात कर सकते हैं. अगर हमारे लिए यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है तो फिर हमें सोचना चाहिए कि अनंत कुमार का निधन क्या सामान्य बात है. केंदीय मंत्री रहे हैं. बीजेपी के संगठन में महत्वपूर्ण नेता रहे हैं. ज़ाहिर है इलाज में कोई कसर नहीं रही होगी. प्रधानमंत्री और अमित शाह ने उनके निधन पर गहरा दुख जताया है. अन्य दलों के नेता राहुल गांधी से लेकर नीतीश कुमार तक ने दुख जताया है.

कैंसर पर पहले भी प्राइम टाइम पर बात करता रहा हूं लेकिन आज फिर से करना चाहता हूं कि हम कहां तक पहुंचे हैं. भारत में तीन लाख मरीज़ कैंसर से मर जाते हैं. दुनिया कैंसर को जीत लेना चाहती है, जीत भी रही है मगर इसकी लागत बहुत ज़्यादा है. कैंसर के मरीज़ दोहरे सदमे से गुज़रते हैं. ख़र्चे के और ज़िंदगी के. लाखों लोग कैंसर से बच भी जाते हैं.

ओबामा जब राष्ट्रपति थे जब उनके उप राष्ट्रपति जो बिडेन के बेटे का ब्रेन कैंसर से निधन हो गया. बिडेन ने इस्तीफा देकर कैंसर से लड़ने का प्रण कर लिया. अमरीका भर में घूमे. कैंसर पर रिसर्च करने वालों से मुलाकात की, डॉक्टरों से बात की और एक नेटवर्क बनाया. बहुत कम समय में बिडेन ने एक प्लान बनाकर ओबामा को दे दिया जिसे व्हाइट हाउस मूनशॉट कहते हैं. बिडेन ने इसके लिए एक कानून भी पास करवाया जिसे 21st century cancer act कहते हैं. क्या भारत में कुछ ऐसा हो रहा है, जिससे लगे कि हम भी इस ज़िद पर हैं कि कैंसर को काबू में किया जा सकता है. अच्छे डॉक्टर हैं मगर क्या सभी के लिए ये डॉक्टर उपलब्ध हैं. इस सवाल पर डॉ. अभिषेक ने बताया कि ब्रिटेन में दस लाख की आबादी पर 3 से 4 रेडिएशन थेरेपी मशीन है. भारत में एक है. प्राइवेट और सरकारी मिलाकर 650 से ज़्यादा मशीनें नहीं हैं. डॉ. अभिषेक के अनुसार भारत को 1300 ऐसी मशीनों की ज़रूरत है. एक मशीन 7-8 करोड़ की आती है. ये तो एक उदाहरण है. सरकारी अस्तपालों में कहीं मशीन है तो डॉक्टर नहीं, डॉक्टर है तो मशीन नहीं.

कई लोग तो इसी सवाल से आगे नहीं बढ़ पाते हैं कि न शराब, न सिगरेट न उल्टा सीधा भोजन फिर कैंसर कैसे हो गया. वैसे सिगरेट तंबाकू वालों को कैंसर होने के ज़्यादा ख़तरे होते ही हैं. कैंसर के कई रूप होते हैं. कई कारण होते हैं. भारत में इसे अमीरों की बीमारी के रूप में देखा गया मगर इस बीमारी से अब कोई नहीं बचा है. सरकार के कार्यक्रम चलते रहते हैं. बहुत सारी संस्थाएं कैंसर को लेकर अच्छा काम कर रही हैं मगर ये सब मदद के स्तर पर हैं. रिसर्च के स्तर पर हमारी क्या प्रगति है. दुनिया ने कैंसर के मामले में क्या प्रगति की है. इस पर बात करनी चाहिए, जितनी भी बात करें वह कम ही है.

एक अनुमान के मुताबिक 2020 में दुनिया की आबादी 7.5 अरब हो जाएगी और इनमें से क़रीब डेढ़ करोड़ कैंसर के नए मरीज़ों की पहचान होगी. एक करोड़ 20 लाख लोगों की मौत कैंसर से होगी. 2020 तक भारत में 25 लाख कैंसर के मरीज़ होंगे और इससे होने वाली मौत की संख्या 3 लाख से बढ़कर साढ़े पांच लाख हो जाएगी. भारत में सबसे ज़्यादा मामले पेट के कैंसर के होते हैं जिसे स्टमक कैंसर कहते हैं. कैंसर के कुल मामले में से 9% स्टमक कैंसर, 8.2% ब्रेस्ट कैंसर, 7.5% लंग कैंसर, मुंह का कैंसर 7.2%, फैरिंक्स का कैंसर 6.8%, कोलन और रैक्टम का कैंसर 5.8%, ब्लड कैंसर 5.2%, सर्वाइकल कैंसर 5.2% है.

अगर प्रति लाख लोगों पर कैंसर की बात करें तो भारत इस मामले में काफ़ी पीछे है. Institute of Health Metrics and Evaluation, Washington University की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रति एक लाख लोगों पर कैंसर के 106.6 नए केस थे. इस मामले में दुनिया के टॉप दस देशों में ऑस्ट्रेलिया 743.8 के साथ पहले स्थान पर था. इसके बाद प्रति लाख पर 542.8 नए केस के साथ न्यूज़ीलैंड दूसरे और 532.9 के साथ अमेरिका तीसरे स्थान पर था. ये सब हमें रिसर्च में मिला है.

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