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This Article is From Feb 17, 2015

मनीष कुमार की कलम से : ...ये क्या हो रहा है बिहार की राजनीति में?

Manish Kumar, Praveen Prasad Singh
  • Blogs,
  • Updated:
    फ़रवरी 17, 2015 19:54 pm IST
    • Published On फ़रवरी 17, 2015 19:18 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 17, 2015 19:54 pm IST

दिल्‍ली विधानसभा चुनावों के बाद इन दिनों पूरे देश में सबसे ज्यादा लोगों खासकर राजनीति में रुचि रखने वालों की दिलचस्पी इस बात को लेकर है कि बिहार में क्या हो रहा है और बिहार में क्या होगा।

बिहार की राजनीति में बहुत कुछ हो रहा है और जो सबसे बड़ी घटना होगी वो 20 फरवरी को बिहार विधानसभा में होगी जहां राज्यपाल के अभिभाषण के बाद उनके आदेशानुसार मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी विश्वासमत लेंगे।

आखि‍र इस विश्वासमत की जरूरत क्यों पड़ी?
नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, कांग्रेस और सीपीआई के नेताओं को महसूस होने लगा कि मांझी मुख्यमंत्री के रूप में गठबंधन की नैया पार करने की जगह अपने बयानों से, अपने निर्णय से, अपने सलाहकारों के कारण और उससे ज्यादा अपने आसपास के चाटुकारों की वजह से राजनीतिक ऐसेट की जगह बोझ बनते जा रहे हैं।

मात्र महादलित वोटरों को ध्यान में रख कर उन्होंने इस मुद्दे पर आंखें बंद रखीं और किसी भी कर्रवाई से बचते रहे तो चुनाव में उनकी नैया को डूबने से कोई नहीं बचा सकता। इसलिए सबसे पहले जेडीयू विधयक दल ने मांझी की जगह नीतीश कुमार को नेता चुना। लेकिन मांझी ने इस्‍त्‍ीफा देने से साफ़ इनकार कर दिया और पार्टी के 12 विधयाकों और बीजेपी के प्रत्याशित समर्थन के आधार पर नीतीश-लालू-शरद सबको खुली चुनौती दे डाली। नीतीश अपने 130 विधयाकों के साथ राज्यपाल से मिले और जल्द शक्ति परीक्षण की गुहार लगाई।

राज्यपाल ने अपना निर्णय सुनाने में समय लिया, तब तक नीतीश अपने विधयाकों के साथ राष्ट्रपति भवन में शक्ति परीक्षण के लिए दिल्‍ली पहुंच गए।  नीतीश ने इस बीच आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए मीडिया में जमकर इंटरव्यू देना शुरू किया और यहां से बीजेपी की परेशानी शुरू हुई। दरअसल नीतीश के दिल्‍ली जाने से पहले जीतन राम मांझी दिल्‍ली पहुंचे थे और वहां उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री से हुई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिनके बारे में मांझी हमेशा शिकायत करते रहते थे कि उन्हें मुलाकात का समय नहीं दिया जा रहा। नी‍तीश ने इस मुलाकात को मुद्दा नहीं बनाया बल्कि इस मुलाकात के फोटो जारी क्यों नहीं हुए या इस बैठक में किन मुद्दों पर विचार विमर्श हुआ उसके बारे में कोई विज्ञप्‍ति‍ क्यों नहीं जारी की गई। नीतीश ने इसे लेकर सीधे प्रधानमंत्री और बीजेपी पर मांझी के समर्थन में साजिश करने का आरोप लगाया।


बीजेपी के नेता इन आरोपों का जवाब नहीं दे पा रहे थे, वहीं मोदी से मिलने के बाद मांझी ने एक संवादाता सम्मलेन में कूछ बातें बोली जिसमें 20 फरवरी को विस्वास मत लेने और गोपनीय मतदान करने की मांग की गई। राज्यपाल ने जो फैसला सुनाया उसमें एक संयोग कहिए कि विस्वासमत की तारीख 20 फरवरी मुकर्रर की और वोटिंग के लिए पहले लॉबी वोटिंग या गुप्त मतदान का आदेश दिया। अब मनो जेडीयू के लिए बीजेपी और प्रधानमंत्री के ऊपर साजिश का आरोप लगाने के लिए इससे अच्‍छा सबूत नहीं हो सकता था। बिहार बीजेपी के नेता सार्वजनिक रूप से नहीं लेकिन निजी बातचित में स्वीकार करते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी का मांझी से मिलना एक भूल थी जिसे टाला जा सकता था। मांझी को मदद करने के कई और जरिए थे और प्रधानमंत्री को सीधे मैदान में पहले राउंड में कूदने से अपने को रोकना चाहिए था।

लेकिन बीजेपी का अपना आकलन है कि नीतीश कुमार के कदम से महादलित वोटर उनसे गुस्से में हैं और ये वोट सीधे बीजेपी की झोली में जाएगा।  इसलिए पार्टी को नीतीश कुमार की जमकर आलोचना करनी चाहिए। लेकिन यहां पार्टी की दिक्कत है कि इनके हर नेता खासकर बिहार के दो वरिष्ठ नेता सुशील मोदी और नन्दकिशोर यादव हर दिन पानी पी पी कर मांझी सरकार को कोसते थे और हर पत्रकार उनसे उन्हीं के द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब मांग रहा था। इसलिए मोदी अब मीडिया को निशाने पर रख रहे हैं।

लेकिन बीजेपी को जहां महादलित वोटों का फायदा हो रहा है, वहीं मांझी सरकार द्वारा लिए गए फैसले पर जब लोग उनकी राय मांगते हैं तो वो प्रतिक्रिया देने से बचते हैं। जैसे पिछले दीनों मांझी ने एक इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम पूर्व मुख्यमंत्री और चारा घोटले में दोषी करार दिए गए डॉ. जगन्‍नाथ मिश्रा के नाम से कर दिया। सामान्य दिनों में बीजेपी इस मुद्दे पर किसी भी सरकार को पानी पिला देती लेकिन बात वोटों की है इसलिए वो अब शांत रहती है। वहीं मांझी के समर्थकों की जो मंडली है उसमें आरजेडी के सांसद पप्पू यादव हैं, तो पूर्व सांसद साधु यादव भी, डॉ. जगनाथ मिश्रा तो शिवानंद तिवारी भी। ये सब ऐसे नेता हैं जिनसे बीजेपी दूर रहना पसंद करेगी।

लेकिन सवाल है कि 20 तारीख को क्या होगा। इसमें कोई शक नहीं कि जो भी होगा वो शांतिपूर्वक नहीं होगा, हंगामेदार होगा। मांझी कैंप भी मान रहा है कि भले बीजेपी मांझी के समर्थन में वोटिंग कर देगी तब भी मांझी की नैया बचना मुश्‍कि‍ल नहीं ...लेकिन हां नीतीश कुमार, लालू यादव, मांझी से मुक्ति पा लेंगे। लेकिन आने वाले दिनों में बीजेपी को महादलित समुदाय में से मांझी वोटरों का समर्थन मिलना निश्चित है। देखना ये दिलचस्प होगा कि जिस मांझी को नीतीश और लालू संभाल नहीं पाए, उस जीतन राम मांझी की महत्वकांक्षा को बीजेपी कैसे हैंडल करती है।

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