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न्यायिक आदेशों की अवहेलना में गर्व महसूस करते हैं अधिकारी... इलाहाबाद हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी

कोर्ट ने कहा कि यह अच्छी तरह से स्थापित है कि न्यायिक आदेश का उल्लंघन करके की गई कोई भी कार्रवाई चाहे वह किसी भी तरह की हो अमान्य है. कोर्ट ने बागपत जिले के कलेक्टर, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) और तहसीलदार को न्यायिक आदेशों की खुलेआम अवहेलना करने के लिए कड़ी फटकार भी लगाई है. ये टिप्पणी जस्टिस जेजे मुनीर की सिंगल बेंच ने श्रीमती छमा की याचिका पर सुनवाई करते हुए की है

न्यायिक आदेशों की अवहेलना में गर्व महसूस करते हैं अधिकारी... इलाहाबाद हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बागपत की एक महिला के घर को हाईकोर्ट द्वारा अंतरिम रोक लगाने के बावजूद उसके घर को ध्वस्त करने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की है. कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि ऐसा लगता है कि राज्य के कार्यकारी अधिकारियों, खास तौर पर पुलिस और सिविल एडमिनिस्ट्रेशन के अधिकारियों के बीच न्यायिक आदेशों का उल्लंघन करने में एक तरह का गर्व महसूस करने की संस्कृति बन गई है. ऐसा लगता है कि इससे उन्हें अपराधी होने का अपराधबोध महसूस होने के बजाए उपलब्धि का अहसास होता है. इस मामले को हल्के में नहीं लिया जा सकता.

कोर्ट ने कहा कि यह अच्छी तरह से स्थापित है कि न्यायिक आदेश का उल्लंघन करके की गई कोई भी कार्रवाई चाहे वह किसी भी तरह की हो अमान्य है. कोर्ट ने बागपत जिले के कलेक्टर, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) और तहसीलदार को न्यायिक आदेशों की खुलेआम अवहेलना करने के लिए कड़ी फटकार भी लगाई है. ये टिप्पणी जस्टिस जेजे मुनीर की सिंगल बेंच ने श्रीमती छमा की याचिका पर सुनवाई करते हुए की है.

मामले के अनुसार याचिकाकर्ता श्रीमती छमा ने 15 मई 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट से अंतरिम निषेधाज्ञा प्राप्त की थी, जिसमें उनके खिलाफ चल रही बेदखली और ध्वस्तीकरण की कार्यवाई पर हाईकोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई थी. कोर्ट ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया था कि याचिकाकर्ता के निर्माण को ध्वस्त नहीं किया जाएगा. लेकिन अगले ही दिन 16 मई 2025 को एसडीएम और तहसीलदार के नेतृत्व में राजस्व अधिकारियों की एक टीम ने कोर्ट के आदेश की भौतिक प्रति दिखाए जाने के बावजूद घर को ध्वस्त कर दिया. कोर्ट ने इसपर कड़ी नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य में अधिकारियों को न्यायिक निर्देशों का उल्लंघन करने में उपलब्धि की भावना महसूस होती है. महिला के घर को ध्वस्त करने की कार्यवाई को अंजाम दिया गया जबकि उसपर हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगा रखी थी.

कोर्ट ने अधिकारियों के इस कृत्य को न्यायपालिका के प्रति अनादर करार दिया है. कोर्ट ने कहा कि अधिकारी ध्वस्तीकरण के दौरान आदेश पढ़ रहे थे इसके बाद भी उन्होंने ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की. हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया माना कि यह ध्वस्तीकरण की कार्यवाई हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश का उल्लंघन था. कोर्ट ने बागपत के कलेक्टर, बागपत के सदर तहसील के एसडीएम और बागपत के तहसील सदर के तहसीलदार को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है. कोर्ट ने सभी से 7 जुलाई को या उससे पहले अपना हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है. कोर्ट ने कहा कि 15 मई 2025 के अंतरिम आदेश के उल्लंघन में ध्वस्त की गई इमारत को सरकारी लागत पर पुनर्निर्माण और उसके मूल आकार में बहाल करने का आदेश क्यों न दिया जाए. इस मामले की अगली सुनवाई 7 जुलाई को दोपहर 2 बजे होगी.

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