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This Article is From Sep 26, 2018

एससी/एसटी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, बीजेपी के लिए राहत या नया सिरदर्द?

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 26, 2018 21:37 pm IST
    • Published On सितंबर 26, 2018 21:37 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 26, 2018 21:37 pm IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकारी नौकरियां कर रहे अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के कर्मचारियों के लिए प्रमोशन में आरक्षण मिलेगा. इसका फैसला केंद्र और राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है. इसके लिए सरकारों को काडर के हिसाब से ये आंकड़े जमा करने होंगे कि इस समुदाय को नौकरी में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिला है या नहीं. महत्वपूर्ण चुनावों से पहले आया यह फैसला बीजेपी के लिए बड़ी राहत है.

बीजेपी एससीएसटी वर्ग को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है. इसी रणनीति के तहत खुद केंद्र सरकार ने ही सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वे अपने उस पुराने फैसले को विचार के लिए बड़ी बेंच में भेजें जिसमें कहा गया था कि प्रमोशन में आरक्षण नहीं होगा. यही वजह है कि एटॉर्नी जनरल ने एससी-एसटी वर्ग पर क्रीमी लेयर का नियम लागू करने और उनके पिछड़ेपन के आंकड़े तय करने का विरोध किया था.

पूरा मामला समझने की कोशिश करते हैं. दरअसल, 2006 में नागराज बनाम भारत संघ के मामले में पांच जजों की संविधान बेंच ने इस मुद्दे पर निष्कर्ष निकाला कि राज्य नौकरी में पदोन्नति के मामले में अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण करने के लिए बाध्य नहीं है. हालांकि अगर वे अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करना चाहते हैं और इस तरह का प्रावधान करना चाहते हैं तो राज्य को वर्ग के पिछड़ेपन और सार्वजनिक रोजगार में उस वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता दिखाने वाला मात्रात्मक डेटा एकत्र करना होगा.

इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इसे सात जजों की बेंच में भेजने की मांग की गई थी. इस पर आज मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच जजों की पीठ ने फैसला सुनाया. फैसले में कहा गया है कि पिछड़ापन मापने के लिए किसी डेटा की जरूरत नहीं है. पर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक क्षमता मांपने का काम सरकार पर छोड़ा जाना चाहिए. लेकिन किसी कॉडर में SC/ST को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए डेटा जरूरी है. सरकार को ये दिखाना होगा कि समुदाय को किसी नौकरी में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. SC/ST पर भी क्रीमी लेयर का नियम लागू किया जा सकता है ताकि जो लोग इसका लाभ उठाकर पिछड़ेपन से दूर हो चुके हैं, ताकि वे पिछड़े लोगों के साथ आरक्षण के दायरे से बाहर हो सकें. लेकिन ये संसद का काम है कि वो SC/ST में क्रीमी लेयर को शामिल करे या हटाए. 2006 के नागराज फैसले पर पुनर्विचार के लिए सात जजों के पीठ को भेजने की जरूरत नहीं है.

केंद्र सरकार ने इस फैसले का स्वागत किया है. आला सरकारी सूत्रों ने एनडीटीवी से कहा कि हम इसका स्वागत करते हैं क्योंकि हम यही चाहते थे. अनुसूचित जाति तथा जनजाति वर्ग के पिछड़ेपन का पैमाना दूसरे समुदायों के पिछड़ेपन को मापने जैसा नहीं हो सकता. इस वर्ग के लोग हज़ारों साल से दमन और शोषण का शिकार रहे हैं. इन पर क्रीमी लेयर का नियम भी लागू नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले के बाद काडर में इस वर्ग की नुमाइंदगी के आंकड़े इकट्ठे किए जाएंगे.

सरकार के सहयोगी दलों ने भी कहा कि अब इसे लागू करना होगा. इस मुद्दे को लंबे समय से उठाती आ रहीं बीएसपी प्रमुख मायावती ने भी फैसले का स्वागत किया है. मायावती को इस मुद्दे की गंभीरता का भी एहसास है. यही वजह है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही अपनी प्रतिक्रिया दे दी. वे जानती हैं कि बीजेपी किस तरह से दलित वर्ग को अपने साथ लाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रही है. बीजेपी इस मुद्दे पर दोहरी चुनौती से जूझ रही थी. मार्च 2018 में एससी-एसटी उत्पीड़न कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस वर्ग की नाराजगी को भी पार्टी को झेलना पड़ा था. हालांकि बाद में सरकार ने फैसले को पलटने के लिए संसद से संशोधन कानून पारित करवा लिया. लेकिन अब चुनावी राज्यों खासतौर से मध्य प्रदेश में उसे सवर्णों और पिछड़े वर्ग की नाराजगी झेलनी पड़ रही है. लेकिन सरकार पर दलितों के प्रति अपनी चिंता की गंभीरता को जताने के लिए प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर भी कोई ठोस कदम उठाने का दबाव था.   

इस मुद्दे पर मंत्रियों का एक समूह भी बनाया गया था. जिसमें केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान भी शामिल थे. उन्होंने साफ कर दिया था कि अगर जरूरत पड़ी तो प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए सरकार अध्यादेश लाने से भी नहीं चूकेगी. मंत्रियों के इसी समूह ने दोनों ही मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया था. पासवान का कहना था कि वैसे तो सुप्रीम कोर्ट प्रमोशन में आरक्षण की बात कर रहा था लेकिन इसके लिए इतनी कड़ी शर्तें लगा दी गईं थीं कि इनका पालन करना बेहद मुश्किल था.

आज के फैसले से बीजेपी को बड़ी राहत तो मिली है. लेकिन सवाल यह भी है कि क्या एससी एसटी उत्पीड़न कानून पर जिस तरह से बीजेपी को अपने सवर्ण और पिछड़े मतदाताओं की नाराजगी झेलनी पड़ रही है क्या वैसा ही इस पर भी तो नहीं होगा. सवाल यह भी है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले के बाद अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रमोशन में आरक्षण मिलना आसान हो जाएगा? क्या काडर में उनके प्रतिनिधित्व के बारे में आंकड़े जुटाने का काम कहीं इतना जटिल और लंबा तो नहीं हो जाएगा कि इस पर अमल करना ही मुश्किल हो जाए.


(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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