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This Article is From Nov 30, 2018

क्या बदल सकती है राजस्थान की हवा?

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 30, 2018 20:04 pm IST
    • Published On नवंबर 30, 2018 20:03 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 30, 2018 20:04 pm IST
अब तक हर ओपीनियन पोल, हर राजनीतिक विश्लेषक यही कह रहा है कि राजस्थान हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा को कायम रखते हुए कांग्रेस को सत्ता सौंपने जा रहा है. लेकिन क्या राजस्थान में हवा का रुख बदल सकता है? यह सवाल इसलिए क्योंकि कांग्रेस के भीतर टिकटों के गलत बंटवारे और प्रदेश नेतृत्व में तीखे मतभेदों को देखते हुए बीजेपी ने अब पूरी ताकत झोंकने का फैसला किया है. बीजेपी को अब अपनी संभावनाएं नजर आने लगी हैं. अब तक प्रधानमंत्री मोदी छह सभाएं कर चुके हैं. वे नागौर, भरतपुर, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, कोटा और अलवर जा चुके हैं. उनकी सभाओं में आई भीड़ और लोगों के उत्साह को देखते हुए बीजेपी ने अब उनकी और ज्यादा सभाएं कराने का फैसला किया है. वे पांच से छह और सभाएं कर सकते हैं. इनमें जोधपुर, हनुमानगढ़ सीकर और जयपुर पहले से ही तय है.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव तक राजस्थान में ही डेरा डालने का फैसला किया है. राजस्थान बीजेपी में पीएम मोदी और वसुंधरा राजे के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सबसे ज्यादा मांग हो रही है, लिहाजा पार्टी उनकी सभाओं की संख्या भी बढ़ाने जा रही है. वे लगातार तीन दिनों तक प्रचार कर चुके हैं और उनकी सभाओं के असर को देखते हुए अब अन्य इलाकों में भी उनकी मांग हो रही है. बीकानेर, बाड़मेर और जालौर जिलों में उनके नाथ संप्रदाय के अनुयाइयों की बड़ी संख्या है. योगी आदित्यनाथ की सभाएं मुस्लिम बहुल इलाकों और नाथ संप्रदाय के असर वाले इलाकों में कराई जा रही हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों को युद्धस्तर पर प्रचार में उतरने के लिए कह दिया गया है. बीजेपी इस चुनाव में तुरुप का इक्का केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों को मान रही है. बीजेपी के मुताबिक राज्य में ऐसे करीब एक करोड़ लोग हैं, जिन्हें इन योजनाओं का सीधा फायदा पहुंचा है. आज शाम से बीजेपी ने कमल दीया अभियान शुरू किया है,जिसमें बीजेपी कार्यकर्ता इन लाभार्थियों के घर दीये जलाएंगे और उनसे बीजेपी को वोट देने की अपील करेंगे. बीजेपी चुनाव के आखिरी दिनों में पूरी ताकत लगाने यानी स्लॉग ओवर में खुल कर खेलने के लिए जानी जाती है और राजस्थान में यही देखने को मिल रहा है, लेकिन राजपूतों की नाराजगी और वसुंधरा के रवैये से खफा कार्यकर्ता बीजेपी के लिए अब भी चुनौती है.

उधर, बीजेपी की रणनीति में बदलाव को देखते हुए कांग्रेस सतर्क हो गई है. अब उसकी पूरी कोशिश किसानों की कर्ज माफी के वादे और वसुंधरा सरकार की नाकामियों को हवा देने की है. अब राहुल गांधी भी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ से निपटने के बाद राजस्थान पर अपनी ताकत लगा रहे हैं. राहुल गांधी एक दिसंबर को फिर राजस्थान जा रहे हैं. वे उदयपुर, भीलवाड़ा, चित्तौडगढ़ और हनुमानगढ़ में जनसभाएं करेंगे. राहुल ने इस महीने सिर्फ तीन ही सभाएं जैसलमेर, जालौर और जोधपुर में की हैं. पार्टी की दिक्कत यह है कि उसके राज्य के अधिकांश शीर्ष नेता अपने-अपने चुनाव क्षेत्रों में फंसे हुए हैं. अशोक गहलोत और सचिन पायलट ही अपने चुनाव क्षेत्रों के अलावा दूसरी सीटों पर प्रचार कर रहे हैं. दोनों अभी तक चौरासी सभाएं कर चुके हैं. लेकिन मुख्यमंत्री पद के लिए कोई चेहरा न होना भी कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर रहा है. गहलोत का यह बयान कि राजस्थान में पार्टी के पास सात से अधिक मुख्यमंत्री उम्मीदवार हैं, पार्टी के खिलाफ गया है.

टिकटों के बंटवारे से उपजी नाराजगी से बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही परेशान हैं. लेकिन कांग्रेस में यह विरोध ज्यादा है क्योंकि हर दावेदार यह मान कर चल रहा था कि पार्टी की सत्ता में वापसी तय है. मुख्यमंत्री पद के अधिक दावेदार होने की वजह से भी कांग्रेस में भितरघात का डर है. हालांकि कांग्रेसी नेताओं का दावा है कि वसुंधरा सरकार इतनी अधिक अलोकप्रिय है कि जनता के पास सिवाए कांग्रेस को वोट देने के, कोई और चारा ही नहीं है. बीजेपी इसी दावे को झुठलाने के लिए अब अपनी पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर आई है. 


(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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