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This Article is From Apr 25, 2018

महज एक साल में ही योगी डगमगाते नजर आ रहे हैं...

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 26, 2018 18:56 pm IST
    • Published On अप्रैल 25, 2018 20:16 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 26, 2018 18:56 pm IST
उत्तर प्रदेश में बहुत धूमधाम से बीजेपी की सरकार बनी. जनता ने छप्पर फाड़ कर वोट दिए. बीजेपी को सहयोगियों के साथ सवा तीन सौ भी से ज़्यादा सीटें मिलीं. बीजेपी ने एक हफ्ते के इंतजार के बाद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया. यह सोच कर कि उनकी दबंग छवि देश के सबसे बड़े राज्य को चलाने में मददगार होगी. लेकिन अभी सिर्फ एक साल हुआ है. योगी डगमगाते हुए नज़र आते हैं. शुरुआत तो उनके अपने ही गढ़ गोरखपुर में बीजेपी की हार से हो गई थी. वे अपनी ही सीट नहीं बचा सके. अब उन पर पराए तो पराए, अपने भी वार करने लगे हैं.

एक दलित सांसद छोटेलाल ने सीधे पीएम को पत्र लिख कर उनकी शिकायत कर दी. छोटेलाल ने लिखा था कि जब वे योगी से मिलने गए तो उन्हें डांट कर भगा दिया गया. इसके बाद कुछ और दलित सांसदों ने आवाज़ उठाई तो पीएम ने योगी को दिल्ली बुला कर समझाया. लेकिन इसके बावजूद योगी और सरकार के कामकाज के खिलाफ शिकायतों का अंबार लगा है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह लखनऊ गए तो अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल बोल आईं कि सरकार में ऊपर से नीचे तक पोस्टिंग में एक ही जाति का वर्चस्व दिखता है जो ठीक नहीं.

इतना ही काफी नहीं था तो आज योगी आदित्यनाथ के नंबर टू यानी उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के एक ट्वीट ने हंगामा कर दिया. मौर्य लिखते हैं कि पार्टी के कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों ने दिन-रात कठोर परिश्रम करके सरकार बनाई है. सत्ता का सुख भोगने के लिए ईमानदारी के साथ जन सेवा करने के लिए बनाई है. कुछ अधिकारी पद का दुरुपयोग करके उन्हीं कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित कर रहे हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण है. उचित होगा कि सुधार लाएं. यानी मौर्य कहना चाह रहे हैं कि उन्हीं की सरकार में अब उनकी नहीं चल रही है. अधिकारियों के हौंसले इतने बुलंद हो गए हैं कि वे उपमुख्यमंत्री तक की नहीं सुन रहे. मौर्य का इशारा यह भी है कि अफसरों पर लगाम कसने में शायद मुख्यमंत्री योगी कामयाब नहीं हो पा रहे या फिर यह भी कि अफसरों को मुख्यमंत्री की शह है. जो भी हो, लेकिन घर का यह झगड़ा तब सामने आया है जब पीएम ने दो दिन पहले ही पार्टी के सांसदों और विधायकों को राष्ट्र के नाम संदेश देने से बचने को कहा है. अगर इतना ही काफी नहीं था तो खबर यह भी है कि ताकतवर नेता और यूपी के प्रभारी ओम माथुर भी योगी सरकार से नाराज़ हैं. वे चाहते हैं कि उन्हें प्रभारी पद से हटा दिया जाए.

पिछले छह महीने से वे पार्टी के किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए हैं. यहां तक कि लोक सभा उपचुनाव, राज्य सभा और विधान परिषद के उम्मीदवार तय करने की बैठक में भी वे नहीं पहुंचे. नाराजगी का यह आलम है कि वे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के 11 अप्रैल के लखनऊ दौरे और 20 अप्रैल के रायबरेली और लखनऊ दौरे के समय भी पार्टी के कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए. अब अमित शाह ने फिलहाल उन्हें कर्नाटक चुनाव में तटीय इलाकों का जिम्मा दे दिया है. उधर विधायक भी नाराज हैं. बदायूं के विधायक महेश गुप्ता ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर कह दिया कि बदायूं में काम कराइए नहीं तो 2019 में सपा जीत जाएगी. उन्होंने इस सीट पर अखिलेश यादव के सांसद भाई धर्मेंद्र यादव के प्रभाव का हवाला दिया है और कहा कि अगर यहां काम नहीं हुए तो धर्मेंद जीत जाएंगे.

आवाज उठाने वाले गुप्ता अकेले नहीं हैं. बदायूं के विधायक राधा कृष्ण शर्मा, विधायक बब्बू सिंह और एमएलसी जयपाल सिंह व्यस्त ने भी इस पर दस्तखत कर दिए हैं. तो ऐसा क्यों हो रहा है कि योगी के खिलाफ एक के बाद एक नाराजगी के सुर बुलंद होते जा रहे हैं. क्या योगी सरकार और संगठन से अपना नियंत्रण खो रहे हैं या फिर ऐसा है कि उनके कठोर कार्यशैली और फैसले लेने का ढंग पार्टी में कुछ लोगों को रास नहीं आ रहा. जानकार मानते हैं कि अगर समय रहते यूपी बीजेपी में चीजों को नहीं संभाला गया तो बीजेपी के मिशन 2019 में बहुत दिक्कत आ सकती है. खासतौर से इसलिए क्योंकि सपा और बसपा के हाथ मिलाने से अब बीजेपी के लिए यह मिशन बहुत चुनौतीपूर्ण हो गया है. 

(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं।)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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