ईज़ इक्वल टू वो थ्योरी है जिसके तहत अगर ये साबित हो जाए कि अगर आपके राज में घोटाला हुआ है तो उनके राज में भी घोटाला हुआ था. अदालत से भले न साबित हो मगर इनके घोटाले के सामने उनके घोटाले के आरोपों को रख दिए जाएं तो दोनों घोटाले का असर समाप्त हो जाता है. कम से कम टीवी की बहस के लिए एंकरों को ठीक ठाक सामग्री मिल जाती है. मंगलवार को भारतीय न्यूज़ जगत में अचानक एक ख़बर आने लगी कि दुबई की अदालत ने ब्रिटिश नागरिक और अगुस्ता वेस्टलैंड मामले में रिश्वत के लेन देन की व्यवस्था करने वाले आरोपी क्रिश्चियन मिशेल को भारत ले जाने के आदेश दिए हैं. इस आदेश को बड़ी कामयाबी के रूप में बताया गया और राजनीति गरमाने लगी. अभी फिलहाल के लिए इस खबर में काफी कुछ भंडोल हो गया है. निधि राज़दान और नीता शर्मा ने बुधवार शाम को ख़बर दी कि दुबई की अदालत ने क्रिश्चियन मिशेल को भारत ले जाने का कोई आदेश नहीं दिया है. अदालत ने यूं ही टिप्पणी की थी जिसका संबंध खासतौर से मिशेल से भी नहीं था. लेकिन मंगलवार को कई पत्रकारों ने सूत्रों के हवाले से इस खबर को ब्रेक किया. चैनलों पर चर्चाएं शुरू होने लगीं और अखबारों में भी सुबह-सुबह मोटे मोटे फॉन्ट में छप गईं. फिर ये कंफ्यूज़न कैसे हो गया.
तो क्या एजेंसियों ने किसी और इरादे से भारतीय पत्रकारों को यह ख़बर दी थी ताकि ध्यान हट जाए. ट्विटर पर कई पत्रकार लिख भी रहे थे कि यह मामला इस लिए सामने लाया गया है ताकि राफेल विवाद को लेकर इज़ इक्वल टू हो सके. तभी बुधवार दोपहर हमारी सहयोगी सुनेत्रा चौधरी ने एक खबर ब्रेक कर दी कि मिशेल तो लापता हो गया है. उसका कुछ पता नहीं चल रहा है. इस साल जुलाई में मिशेल के वकील के हवाले से खबर छपी थी कि भारतीय एजेंसिया मिशेल पर दबाव डाल रही हैं कि वह सोनिया गांधी का नाम ले ले. सीबीआई ने इस बात से इनकार किया था.
फिलहाल मंगलवार को जो न्यूज़ ब्रेक हुई थी वो बुधवार आते आते ब्रोकन हो चुकी है. लगता है कि इस खबर में काफी कुछ बदलेगा. हमने कई मंत्रियों के ट्विटर हैंडल को चेक किया. अगर यह खबर इतनी बड़ी है तो गृह मंत्रालय, गृह मंत्री और गृह राज्य मंत्री में से कोई तो ट्वीट करता. किसी ने नहीं किया. जबकि अखबारों में छपा था कि भारत सरकार ने अगुस्ता मामले में तेज़ी लाने में जुट गई है. कानून मंत्री गृह मंत्रालय से चेक कर लेते कि तथ्य क्या हैं. फिर मीडिया में बयान देते.
अगुस्ता वेस्टलैंड हेलिकाफ्टर ख़रीद का मामला 2012 से चल रहा है. इटली से शुरू हुआ था और भारत जब पहुंचा तो हंगामा मच गया. इटली में कहां है यह मामला और भारत में कहां है यह भी जान लेना चाहिए.
इटली की एक कंपनी है फिनमेकानिका जो रक्षा सामान बनाती है. इसी की एक सहायक कंपनी है अगुस्ता वेस्टलैंड जिससे 12 वीवीआईपी हेलिकाप्टर ख़रीदने के लिए भारत सरकार ने 2010 में करार किया था. 2012 में यह मामला इटली के प्रेस में ही सामने आता है कि 3600 करोड़ के इस सौदे में कथित रूप से 360 से 450 करोड़ की दलाली दी गई है. इटली के अटारनी जनरल जांच शुरू करते हैं. इटली के प्रेस में आरोप उछलता है कि बिचौलिया गुइडो राल्फ़ हाश्के ने अगुस्ता वेस्टलैंड से दलाली ली थी ताकि वह यह डील करा सके. हाश्के भी गिरफ्तार हुआ. इटली में फिनमेकानिका के पूर्व प्रेसिडेंट जी ओरसी और अगुस्ता वेस्टलैंड के पूर्व सीईओ ब्रूनो स्पागनोलिनी भी गिरफ्तार हुए. उनके खिलाफ मामला चला. इटली की निचली अदालत में इन्हें सज़ा भी हुई मगर दिसंबर 2016 सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपील ट्रायल चले. 8 जनवरी 2018 को पीटीआई पर ख़बर आती है कि अपील की अदालत ने दोनों ही आरोपियों को बरी कर दिया है. यानी जिन पर रिश्वत देने का आरोप था, वो बरी हो गए. इटली की अदालत के अनुसार ओरसी और ब्रूनो ने रिश्वत ही नहीं दी.
इटली के सामने सवाल था कि क्या उनके यहां की कंपनी के सीईओ ने यह सौदा हासिल करने के लिए रिश्वत दी. वहां यह सवाल खारिज हो गया कि इन्होंने रिश्वत नहीं दी. यही लोग भारत में भी आरोपी हैं. इटली से जब यह विवाद भारत पहुंचा तब मनमोहन सिंह सरकार ने सीबीआई जांच के आदेश दे दिए. उनकी सरकार से संबंधित लोगों पर भी आरोप लगा मगर चार्जशीट में किसी नेता या पूर्व मंत्री का नाम नहीं है. सीबीआई ने भारतीय वायुसेना के पूर्व सेनाध्यक्ष एस पी त्यागी को गिरफ्तार किया था जो खुद को निर्दोष बताते हैं.
एस पी त्यागी के मामले में ताज़ा ख़बर यह है कि इन्हें इसी 12 सितंबर को बेल मिल गई. स्पेशल जज अरविंद कुमार ने 24 जुलाई को त्यागी सहित अगुस्ता वेस्टलैंड के सीईओ और फिनमेकानिका के निदेशक जी ओरसी को समन किया था. त्यागी हाज़िर हुए और ज़मानत मिल गई मगर अगुस्ता वेस्टलैंड और फिनमेकानिका के पूर्व सीईओ और प्रेसिडेंट नहीं आए. एक भी विदेशी नागरिक कोर्ट के सामने हाज़िर नहीं हुआ. जबकि अदालत ने चार्जशीट का संज्ञान लेते हुए माना था कि रिश्वत खाने के पर्याप्त सबूत हैं.
कई बार पुराना मामला जब दोबारा पब्लिक स्पेस में आता है तो कुछ याद नहीं रहता है. अगर आप ऐसे मामलों में छपी पुरानी ख़बरों को खंगालेंगे तो पता चलेगा कि इस मामले में जांच को लेकर कौन कितना गंभीर है.
अब आते हैं रफाल सौदे पर. कांग्रेस रफाल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग कर रही है. आज कांग्रेस के नेताओं ने इस मांग को लेकर दिल्ली स्थित (CAG) के दफ्तर तक मार्च किया.
कांग्रेस का आरोप है कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण रफाल सौदे से जुड़े तथ्यों को छुपा रही हैं. इसलिए ज़रूरी है कि सरकार यूपीए के समय 126 विमानों की कीमत और मोदी सरकार के समय 36 विमानों की कीमत को सामने लाए. ताकि जनता को पता चल जाए कि एक एयरक्राफ्ट का दाम किसके राज में कितना था. इस मार्च में अहमद पटेल, रणदीप सुरजेवाला, गुलाम नबीं आज़ाद, विवेक तन्खा, राजीव शुक्ला शामिल थे. कांग्रेस का कहना है कि वे केंद्रीय सतर्कता आयोग के पास भी जाएंगे और कहेंगे कि ये संस्थाएं अपना संवैधानिक दायित्व निभाएं. पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने सीएजी से मुलाकात भी की. अपनी तरफ से सभी तथ्यों और सबूतों को सौंपते हुए गुज़ारिश की 36 रफाल विमान सौदे के बारे में जल्दी जांच हो.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग में लिख ही दिया है कि यूपीए की तुलना में एनडीए के समय में रफाल लड़ाकू विमान 9 प्रतिशत कम दाम पर खरीदे गए हैं. जब प्रतिशत में दाम बता सकते हैं तो पूरा ही बता देने में क्या मुश्किल है.
This Article is From Sep 19, 2018
अगुस्ता वेस्टलैंड विवाद, एक आरोपी को लेकर भ्रम
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:सितंबर 19, 2018 22:41 pm IST
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Published On सितंबर 19, 2018 22:41 pm IST
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Last Updated On सितंबर 19, 2018 22:41 pm IST
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