आतंकी हमले सबसे ज्यादा महाराष्ट्र ने झेले हैं इसलिए एक तरीके से मुंबई में रहने वाले पत्रकार भी छोटे-मोटे आतंक विश्लेषक बन जाते हैं। इसी कड़ी में अब यह विवेचना हो रही है कि क्या भारत में आतंक का तीसरा दौर आएगा? यह सवाल महाराष्ट्र के संदर्भ में इसलिए देखना होगा क्योंकि यह देश का वह राज्य है जहां आतंकियों का पैटर्न आने वाले वक्त में पूरे देश का मॉडल बन जाता है।
भाड़े के टट्टू थे 1993 के दौर के आतंकी
देश में सबसे पहले संगठित धमाके मुंबई में 1993 में हुए। तब पहली बार अपराधियों को बरगला कर देश के खिलाफ इस्तेमाल किया गया। तब मामला दो मुल्कों के बीच हो रहे छ्दम युद्ध का था, जिसमें आतंक एक हथियार था। 1993 के उस दौर से जल्द ही देश निकल गया। अपराधियों को आतंकवादी बनाने वाली फैक्ट्रियां एक तरीके से बंद हो गईं। उस दौर में यह आतंकी एक किस्म के भाड़े के टट्टू थे। उस दौर के आतंकियों की औसत उम्र 30 से 40 साल के बीच थी।
कथित नाइंसाफी के नाम पर आतंकवाद
इसके बाद एक दूसरा दौर आया जब महाराष्ट्र से सटे इलाकों में राज्य में एक दूसरा आतंकी तबका खड़ा हुआ। उसे यह लगता था कि कौम के स्तर पर उसके साथ नाइंसाफी हुई है, इसलिए उसे बदला लेने का हक़ है। इसी दौर में सिमी और इंडियन मुजाहिदीन जैसे संगठन खड़े हुए। इन संगठनों के खड़े होते ही पड़ोसी मुल्क से मदद मिलने लगी। यह संगठन बंटे हुए से थे। इनके पास कथित धर्म के नाम की मजबूत इबारत भी नहीं थी। इस दौर में थोड़े-बहुत पढ़े-लिखे आतंकी तैयार हुए।
वे पूरी दुनिया में आतंकी साज़िशों का हिस्सा बनने लगे
अब एक तीसरा दौर है। मुंबई से सटे कल्याण से सबसे पहले खबर आई कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले नौजवान इस्लामिक स्टेट की लड़ाई में गए हैं। यह खबर भारतीय आतंक के इतिहास में इसलिए नई थी क्योंकि पहली बार किसी दूसरे मुल्क में पेशेवर लड़ाके बनने के इरादे से लड़के गए। पहले के दो दौर में आतंकी देश में ही लड़ रहे थे। मकसद डराना या बदला था, लेकिन आतंक के इस तीसरे दौर में आतंकी ग्लोबल हो गए हैं। वे पूरी दुनिया में आतंकी साज़िशों का हिस्सा बन रहे हैं। जितने भी लड़के महाराष्ट्र से गए उनका प्रोफाइल बता रहा है कि आतंकी बनना उन्होंने खुद चुना है।
अब आतंकी तैयार करने के लिए एक कम्प्यूटर ही काफी
कथित धर्म की इस लड़ाई में उनका ग्लोबल होना इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि अब उनके मकसद बदल गए हैं। यह मकसद का बदलना ही आतंक के खिलाफ लड़ाई को और पेचीदा कर रहा है। पहले के दो दौर में आतंक की फैक्ट्रियों को ढूंढना थोड़ा आसान था लेकिन अब सिरदर्द ज्यादा है क्योंकि एक आतंकी तैयार करने के लिए सिर्फ एक कंप्यूटर ही काफी है।
This Article is From Nov 19, 2015
अभिषेक शर्मा का ब्लॉग : क्या भारत में आतंक का तीसरा दौर आएगा ?
Abhishek Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:नवंबर 20, 2015 13:54 pm IST
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Published On नवंबर 19, 2015 20:48 pm IST
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Last Updated On नवंबर 20, 2015 13:54 pm IST
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