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This Article is From Sep 08, 2015

अभिषेक शर्मा का ब्लॉग : सीरिया जैसे हालात तो किसानों के भी हैं!

Abhishek Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 08, 2015 17:47 pm IST
    • Published On सितंबर 08, 2015 17:04 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 08, 2015 17:47 pm IST
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा से हमने एक कहानी दिखाई। कलेजा मुंह को आ गया। एक घर में पांच बच्चों की मां ने खुद को जला लिया, क्योंकि उसके घर में सिर्फ दो रोटियां बची थीं। एक मां की हालत हम शायद ही समझ पाएं कि जब संतानें उससे रोटी मांगती हों और देने के लिए कुछ ना हो, तो वो असहाय मां क्या करे?

कहानी देखने और पढ़ने के बाद मैंने अपने साथी को फिर फोन लगाया, पूछा कि कहीं कुछ हम बढ़ा चढ़ाकर तो नहीं दिखा रहे। मेरे साथी तेजस ने कहा, नहीं घर के सारे बर्तन खाली हैं। उनसे भी भूखे बच्चों के हालात देखे ना गए। कुछ मदद करके ही आगे बढ़े हैं। हमने मिलकर कुछ मदद की योजना भी बनाई। लेकिन मन में सवाल उठते रहे कि एक घर में तो हम पहुंच गए, लेकिन बाकी का क्या? सिर्फ एक घर की भूख मिटा कर क्या होगा, जब पूरा इलाका ही चपेट में है।

दिन भर ये कहानी परेशान करती रही। शाम होते मेरा ये विचार पक्का हो गया कि महाराष्ट्र में किसानों का कत्ल बड़े सोचे समझे तरीके से हुआ है... और हो रहा है। सरकारों को तो पहले से मालूम है कि मराठवाड़ा कैसे बंजर इलाके की शक्ल ले रहा है।

बीते साल इंडियन साइंस क्रांग्रेस हुई तो हम भी शिरकत करने पहुंचे। मौसम विज्ञानियों से हमने पूछा था कि क्या मराठवाड़ा और विदर्भ की प्यास बुझ पाएगी। तब वैज्ञानिकों ने कहा था कि ये मुमकिन नहीं है। एक किस्म के छाया क्षेत्र और बदलते मौसम की मार ये इलाका झेल रहा है। तब हमने सवाल पूछा था कि क्या सरकारें जानती हैं ये सब? तब पता चला कि हुक्मरानों को तो अरसे से पता है कि मराठवाड़ा में क्या होने जा रहा है? तो सवाल उठता है कि जब सत्ताधारियों को मालूम है कि सूखा तो होगा ही, फिर बीते 20 साल में कोई कदम क्यों नहीं उठाया? जवाब नेता ना देना चाहें। लेकिन सच यही है कि महाराष्ट्र के नेताओं ने ऐसा होने दिया है। सोचे समझे ढंग से किसानों का कत्ल हुआ है अब इसमें कोई शक नहीं है।

20 साल में जितनी भी सिंचाई की योजनाएं बनी उनमें से ज्यादातर पश्चिम महाराष्ट्र की ओर मोड़ दी गईं। जो बची हुई योजनाएं विदर्भ और मराठवाड़ा को मिलीं उनमें इतना भ्रष्टाचार हुआ कि नहर और बांध कागज पर ही बनते बिगड़ते रहे। पिछले एक दशक में जिन नेताओं ने सिंचाई विभाग संभाला वो पश्चिम महाराष्ट्र के ही थे। उन्होंने पानी के बंटवारे के सारे प्लान पहले अपने इलाके के लिए बनाए।

मराठवाड़ा के कुछ अति पिछड़े इलाकों के लोग अपनी बेबसी के दिनों में पलायन करते हैं और मज़दूरी करते हैं। ये मज़दूर पश्चिम महाराष्ट्र में खपाए जाते हैं। क्या ऐसे में कोई शक बचता है कि महाराष्ट्र के एक इलाके के बड़े नेता दूसरे इलाके के लोगों को गरीब क्यों रखना चाहते हैं? क्या असंतुलित विकास जानबूझकर नहीं किया जा रहा?

मराठवाड़ा में हर महीने 69 किसान खुदकुशी कर रहे हैं... और ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि असंतुलित विकास करके एक किस्म की अराजकता राज्य ने पैदा की है। जहां मौसम की मेहरबानी पर फसल निर्भर हो, नेताओं के रहमोकरम पर सिंचाई का पानी और बाकी का विकास चंद लोगों के हाथ में हो, क्या आम किसान बेबस और लाचार महसूस नहीं करता? क्या यही लाचारी उसे ज़हर पीने के लिए मज़बूर नहीं करती? क्या ऐसे ही हालात उन लोगों के नहीं हैं जो मौत से बचने के लिए सीरिया से भागते हैं, जानते हैं कि दोनों तरफ मौत का खतरा है। तो क्या पीड़ित किसानों के हालात और युद्ध में फंसे मासूमों के हालात में कोई फर्क है?

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