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ओवैसी ने बिहार में खेला कौन सा 'खेल'? नीतीश सरकार को सशर्त समर्थन के मायने क्या

सीमांचल की कुल 24 विधानसभा सीटों में से जोकिहाट, बहादुरगंज, कोचाधामन, अमौर और बायसी सीटें जीतने वाले ओवैसी ने बिहार की राजनीति में बड़ी लकीर खींचने की शुरूआत कर दी है.

ओवैसी ने बिहार में खेला कौन सा 'खेल'? नीतीश सरकार को सशर्त समर्थन के मायने क्या
  • ओवैसी ने सीमांचल के विकास और सांप्रदायिकता मुक्त शासन के लिए सरकार के साथ सहयोग का आश्वासन दिया.
  • एआईएमआईएम ने सीमांचल की पांच विधानसभा सीटें जीतकर बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
  • ओवैसी ने अपने विधायकों को विकास कार्यों में सहयोग दिलाने के लिए नीतीश सरकार से संवाद स्थापित किया है.
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'हम पटना में बनी नई सरकार को शुभकामनाएं देते हैं. हम पूरा सहयोग देने का वादा भी कर सकते हैं, बशर्ते वह सीमांचल क्षेत्र के साथ न्याय करे और सांप्रदायिकता को भी दूर रखे. एआईएमआईएम सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि सीमांचल में रहने वाले सभी लोगों के लिए लड़ती रही है, जहां दलितों और आदिवासियों की भी अच्छी आबादी है. हम उम्मीद करते हैं कि नई सरकार इस उपेक्षित क्षेत्र पर ध्यान देगी और पटना और राजगीर तक ही सीमित नहीं रहेगी.' ये बयान 23 नवंबर को एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल के अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान दिया.

ओवैसी ने क्यों किया ऐसा 

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सीमांचल से ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के पांच उम्मीदवारों ने हाल के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की है. ये बयान चौंकाने वाला था तो हलचल मचनी भी तय थी और मची भी. आखिर ओवैसी की पूरी राजनीति तो बीजेपी के विरोध पर टिकी है. तो वो कैसे बीजेपी समर्थित नीतीश सरकार का बिहार में समर्थन करने का खुलेआम कर सकते हैं?

क्या है ओवैसी की मजबूरी

ओवैसी ने दरअसल, ये बयान देकर अपनी राजनीति साध ली है. सीमांचल बिहार का पिछड़ा इलाका है. लोगों ने महागठबंधन और एनडीए को छोड़कर ओवैसी को लगातार दूसरी बार वोट देकर जिताया है. 2020 विधानसभा चुनाव में जीते ओवैसी के विधायकों ने पाला बदल लिया और तेजस्वी यादव की आरजेडी में शामिल हो गए. ऐसे में ओवैसी ने इस बार सबसे तगड़ा हमला तेजस्वी यादव पर ही किया. उन्होंने जनता से अपील की थी कि उनके पिछले विधायकों को हराकर और नये उम्मीदवारों को जिताकर ये संदेश दें कि सीमांचल के लोग ये सब बर्दाश्त नहीं करेंगे. ओवैसी की अपील रंग लाई और पांच सीटें उनकी झोली में आ गई.

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ऐसे में ओवैसी अब अपनी जीती हुई सीटों पर विकास कार्यों को आगे बढ़ाना चाहते हैं. उन्हें पता है कि नीतीश सरकार को उनके समर्थन की कोई जरूरत नहीं है. मगर फिर भी उन्होंने ये बयान देकर दो काम कर लिए. पहला सांप्रदायिकता वाली शर्त रखकर अपने वोटर्स को खुश कर दिया कि वो अपनी बात और विचारधारा से कोई समझौता नहीं करने वाले. दूसरा उन्होंने सरकार के साथ एक संवाद भी स्थापित कर लिया. खासकर नीतीश कुमार से. इससे उनके विधायकों को विकास कार्य कराने में सरकार का सहयोग मिल सकेगा.

ओवैसी ने खेला कौन सा 'खेल

ओवैसी ने ये बयान देकर 2030 की भी अपनी राजनीति साध ली है. इसके जरिए उन्होंने संकेत दिए हैं कि वो तीसरे प्लेयर की तरह बिहार में मौजूद हैं और अगर नंबर गेम थोड़ा भी इधर-उधर हुआ तो वो किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं. उन्होंने अपने वोटर्स को भी संकेत कर दिया है कि वो सिर्फ विरोध के लिए विरोध नहीं करेंगे बल्कि जनता के काम कराने के लिए चतुराई से काम करेंगे. जाहिर है अगर सीमांचल में ओवैसी ने सरकार के सहयोग से विकास तेज गति में करा दिए तो महागठबंधन के लिए मुश्किल और भी बढ़ जाएगी. सीमांचल की कुल 24 विधानसभा सीटों में से जोकिहाट, बहादुरगंज, कोचाधामन, अमौर और बायसी सीटें जीतने वाले ओवैसी ने बिहार की राजनीति में बड़ी लकीर खींचने की शुरूआत कर दी है. अब 2030 में ओवैसी इन पांच सीटों के जरिए सीमांचल की 24 सीटों पर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं. साथ ही यूपी में भी इस बार ओवैसी चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर चुके हैं. इस तरह से धीरे-धीरे ही सही वो अपनी पार्टी को बढ़ाने में लगे हुए हैं.

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