
- कल्याणपुर सीट पर महागठबंधन ने सीपीआई (एमएल) को टिकट दी है, जबकि एनडीए में ये सीट जदयू के खाते में गई है
- कल्याणपुर पर अब तक कोई भी विधायक लगातार दो बार जीतने में सफल नहीं हो पाया है और चुनाव परिणाम बदलते रहे हैं
- 2020 में कुल मतदाताओं की संख्या 2.56 लाख थी जिसमें अनुसूचित जाति वोटर्स की हिस्सेदारी करीब 16 प्रतिशत थी
महागठबंधन में कल्याणपुर (अनुसूचित जाति) सीट सीपीआई (एमएल) के खाते में आई है, जिसने रंजीत कुमार राम को टिकट दी है. एनडीए में यह सीट जदयू को मिली है. जदयू ने यहां से महेश्वर हजारी को उम्मीदवार बनाया है. जदयू अगर यहां से चुनाव जीतती है, तो वह पहली ऐसी पार्टी होगी, जिसे दोबारा यहां के वोटर्स मौका देंगे. वहीं, अगर इस बार सीपीआई (एमएल) जीत दर्ज करती है, तो सीट पर 2008 से चला आ रहा ट्रेंड जारी रहेगा. दरअसल, पूर्वी चंपारण जिले की कल्याणपुर विधानसभा सीट बिहार की उन सीटों में से है, जहां हर चुनाव में मतदाता अलग फैसला सुनाते आए हैं. यह सीट 2008 में परिसीमन के बाद बनी और अब तक तीन बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, लेकिन अब तक किसी भी विधायक को लगातार जीत का मौका नहीं मिला.
कल्याणपुर सीट से कब कौन जीता
कल्याणपुर विधानसभा सीट से 2010 के पहले चुनाव में जदयू प्रत्याशी रजिया खातून ने राजद के मनोज कुमार यादव को मात दी थी. पांच साल बाद यानी 2015 में तस्वीर बदल गई. उस समय जदयू महागठबंधन में चली गई थी और भाजपा उम्मीदवार सचिन्द्र प्रसाद सिंह ने रजिया खातून को हराकर सीट पर कब्जा किया. 2020 में मुकाबला बेहद कड़ा रहा और राजद के मनोज कुमार यादव ने भाजपा के सचिन्द्र प्रसाद सिंह को केवल 1,193 वोटों से हराया. हालांकि, विधानसभा चुनाव में भाजपा पिछड़ गई थी, लेकिन लोकसभा स्तर पर उसका वर्चस्व बना रहा. 2014 और 2019 दोनों ही आम चुनावों में भाजपा को यहां भारी बढ़त मिली थी, जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को 14,014 वोटों की बढ़त हासिल हुई, भले ही यह पिछली बढ़तों से कम रही हो.
अनुसूचित जाति के वोटर्स निर्णायक... जानें वोटों का गणित
2020 में इस सीट पर 2.56 लाख से अधिक मतदाता पंजीकृत थे, जिनमें करीब 16 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 14 प्रतिशत मुस्लिम वोटर शामिल थे. यह इलाका पूरी तरह ग्रामीण है और मतदाता संख्या में वृद्धि भी बेहद धीमी रही है. 2024 तक कुल मतदाता बढ़कर 2.63 लाख हुए, जो इस बात का संकेत है कि पलायन यहां अपेक्षाकृत कम है.
कल्याणपुर का ऐतिहासिक महत्व
कल्याणपुर की पहचान ऐतिहासिक रूप से भी खास है. यह वही क्षेत्र है जहां महात्मा गांधी ने 1917 में नील आंदोलन के जरिए स्वतंत्रता संग्राम की नई राह खोली थी. भौगोलिक रूप से यह उपजाऊ क्षेत्र है और गंडक नदी यहां की कृषि के लिए वरदान भी है और बाढ़ का खतरा भी. मुख्य फसलें धान, गेहूं और दलहन हैं, लेकिन सिंचाई की कमी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमजोर स्थिति आज भी यहां की प्रमुख चुनौतियां हैं. रोजगार के अवसर सीमित होने के कारण बड़ी संख्या में लोग दिल्ली, सूरत और कोलकाता जैसे शहरों की ओर पलायन करते हैं.
राजनीतिक दृष्टि से यह सीट हर बार नया समीकरण गढ़ती है. लोकसभा में भाजपा का दबदबा है, मगर विधानसभा में मतदाता अक्सर अलग रुख दिखाते रहे हैं. 2025 का चुनाव इसलिए खास होगा कि अब तक कोई भी उम्मीदवार इस सीट से दोबारा नहीं जीत पाया है. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि इस बार कल्याणपुर की जनता किसे मौका देती है.
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