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राहत की राजनीति या बदले की रणनीति... क्या चुनाव में 'विभीषण' की भूमिका निभाएंगे तेज प्रताप?

राघोपुर में बाढ़ के समय जब सरकारी अधिकारियों और नेताओं का भी जाना मुश्किल होता है, तेज प्रताप का नाव से पहुंचना और लोगों को राहत सामग्री बांटना सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगता है.

राहत की राजनीति या बदले की रणनीति... क्या चुनाव में 'विभीषण' की भूमिका निभाएंगे तेज प्रताप?
  • राघोपुर में तेज प्रताप यादव ने बाढ़ पीड़ितों की मदद कर सक्रियता दिखाई है, हालांकि चुनाव लड़ने से इनकार किया है
  • तेज प्रताप का राघोपुर में कदम छोटे भाई तेजस्वी और एनडीए दोनों को निशाने पर लेने की रणनीति माना जा रहा है
  • राघोपुर में चिराग पासवान का झोला और तेज प्रताप का बोरा एनडीए के लिए ‘सोने पर सुहागा’ जैसा साबित हो सकता है.
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बिहार की राजनीति में राघोपुर विधानसभा सीट इस बार सिर्फ एक हॉट सीट नहीं, बल्कि पारिवारिक संग्राम का सियासी अखाड़ा बनती दिख रही है. इस सीट पर एक तरफ एनडीए और आरजेडी के बीच वर्चस्व की जंग है तो दूसरी तरफ अब परिवार के अंदर भी लड़ाई छिड़ती दिख रही है. सवाल उठ रहा है कि क्या तेज प्रताप यादव आने वाले चुनाव में ‘विभीषण' की भूमिका निभाएंगे?

तेजस्वी के गढ़ में तेज प्रताप का दौरा

पार्टी और परिवार से निकाले जाने के बाद लालू के बड़े लाल तेज प्रताप जिस तरीके से बिहार में घूम रहे हैं, बयान दे रहे हैं, वह पहले से सुर्खियों में है. अब तेजस्वी यादव के विधानसभा क्षेत्र राघोपुर में बड़े भाई और पूर्व मंत्री तेज प्रताप यादव के बाढ़ पीड़ितों के बीच पहुंचने ने नई हलचल पैदा कर दी है. तेज प्रताप हालांकि कह रहे हैं कि वो सिर्फ बाढ़ पीड़ितों की मदद करने आए थे और उनका यहां चुनाव लड़ने का कोई इरादा नहीं है. लेकिन उनका यह कदम कई लोगों को रामायण के 'विभीषण' की कहानी याद दिला रहा है.

राहत यात्रा या राजनीतिक दस्तक?

राघोपुर में भीषण बाढ़ के समय जब सरकारी अधिकारियों और नेताओं का भी इलाके में जाना मुश्किल होता है, तेज प्रताप का नाव से वहां पहुंचना और लोगों को राहत सामग्री बांटना एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगता है. तेज प्रताप के निशाने पर NDA सरकार तो है ही, मगर असल निशाना छोटे भाई तेजस्वी यादव के ऊपर लग रहा है. वह राघोपुर की जनता को साफ बता रहे हैं कि उनके क्षेत्र में सरकार तो फेल है ही, आपका विधायक यानी तेजस्वी यादव भी फेल है, नाचने-गाने में लगा हुआ है. 

चुनाव लड़ने की मंशा नहीं, पर...

तेज प्रताप की टीम ने सैकड़ों बाढ़ पीड़ितों के बीच पहुंचकर खाद्य सामग्री और अन्य सामान का वितरण किया. जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि राघोपुर विधानसभा से तेज प्रताप टीम से क्या कोई उम्मीदवार उतरेगा? तेज प्रताप ने सवाल को टालते हुए कहा कि ऐसी कोई मंशा उनकी नहीं है, वो सिर्फ पीड़ितों से मिलने आए हैं. हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि तेज प्रताप का लगभग पांच घंटे से अधिक समय तक तेजस्वी के क्षेत्र में इस तरह से रहने के मायने अलग हैं. यह छोटे भाई के इलाके में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश है. 

NDA के लिए ‘सोने पर सुहागा'

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय पहले ही ताल ठोक कर बैठे हैं कि 2025 के चुनाव में तेजस्वी यादव को हराना उनका एकमात्र मकसद है. इसके लिए उन्होंने अपने भतीजे अरविंद राय को दो साल पहले से राघोपुर में सक्रिय कर दिया है, जो लगातार जनता के बीच रहकर उनकी समस्याओं को सुलझा रहे हैं. ऐसे में चिराग का झोला और तेज प्रताप का बोरा एनडीए के लिए ‘सोने पर सुहागा' जैसा साबित हो सकता है.

जनसुराज की नजरें भी राघोपुर पर

लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान भी अपने 'झोले' के साथ इस क्षेत्र में सक्रिय हैं. वहीं बिहार में तेजी से बढ़ रही जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर भी राघोपुर पर नजर बनाए हुए हैं. उन्होंने गाहे-बगाहे संकेत दिए हैं कि वो इस सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. ऐसे में चिराग पासवान, तेज प्रताप यादव और जनसुराज की मौजूदगी राघोपुर को त्रिकोणीय नहीं बल्कि बहुकोणीय मुकाबले में बदल सकती है.

जातीय समीकरण और वोट बैंक की लड़ाई

राघोपुर विधानसभा में लगभग 3.37 लाख मतदाता हैं. इनमें सबसे ज्यादा लगभग 95 हज़ार यादव समुदाय के हैं. दूसरे नंबर पर राजपूत समुदाय के लगभग 85 हज़ार मतदाता हैं. यहां पर वोटर रिवीजन (SIR) के बाद 35 हजार मतदाताओं के नाम काटे गए हैं. ऐसे में एनडीए की यादव वोटों में सेंधमारी की कोशिश, तेज प्रताप का दौरा, जनसुराज की नजर विपक्ष के नेता तेजस्वी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं. अगर तेजस्वी इस सीट से हारते हैं तो तेज प्रताप के लिए यह छोटे भाई और पार्टी से 'बदला' पूरा होने जैसा होगा.

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