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बिहार चुनाव 2025: मुंगेर में भगवा करेगा विस्तार या फिर राजद लेगी 2020 में मिली मामूली हार का बदला

इस सीट पर 2020 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार प्रणव कुमार यादव ने राजद प्रत्याशी अविनाश कुमार विद्यार्थी को मामूली अंतर से हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया था. मुंगेर सीट बनने के बाद यह दूसरा मौका था, जब यहां भगवा लहराया था.

बिहार चुनाव 2025: मुंगेर में भगवा करेगा विस्तार या फिर राजद लेगी 2020 में मिली मामूली हार का बदला
  • मुंगेर विधानसभा क्षेत्र 1957 में स्थापित हुआ और यह सामान्य श्रेणी की सीट के रूप में जाना जाता है
  • मुंगेर में अब तक कांग्रेस, राजद और जदयू ने तीन-तीन बार जबकि जनता दल ने दो बार चुनाव जीता है
  • 2020 के चुनाव में भाजपा ने राजद को हराकर जीत हासिल की थी
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मुंगेर:

पूर्वी बिहार में गंगा के किनारे बसा मुंगेर राज्य के सबसे प्रमुख शहरों में से एक है. राजनीतिक दृष्टिकोण से अगर देखा जाए तो 1957 में स्थापित मुंगेर विधानसभा क्षेत्र एक सामान्य श्रेणी की सीट है. इस क्षेत्र में अक्सर समाजवादी विचारधारा वाले नेताओं को प्राथमिकता दी जाती रही है, लेकिन कोई भी पार्टी इसे अपना गढ़ नहीं कह सकती.  अब तक हुए 17 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल-यूनाइटेड (जदयू) ने तीन-तीन बार यह सीट जीती है, जबकि जनता दल ने दो बार जीत हासिल की है. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी और जनता पार्टी (सेक्युलर) ने एक-एक बार यह सीट हासिल की है. इस सीट पर मुकाबला अबकी बार बीजेपी के प्रणय कुमार यादव और राजद के मुकेश यादव के बीच है.

इस सीट पर 2020 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार प्रणव कुमार यादव ने राजद प्रत्याशी अविनाश कुमार विद्यार्थी को मामूली अंतर से हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया था. मुंगेर सीट बनने के बाद यह दूसरा मौका था, जब यहां भगवा लहराया था. इससे पहले 1969 में भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी रवीश चंद्र वर्मा ने चुनाव जीतकर विधायक बने थे. पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को 45.74 फीसदी, जबकि उसके निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 44.99 फीसदी वोट मिले थे. इस बार देखना होगा कि राजद पिछली बार की हार का बदला ले पाती है या फिर भाजपा अपने विजयी रथ को आगे बढ़ाती है.

मुगल और ब्रिटिश काल के दौरान अविभाजित बंगाल में पूर्वी प्रवेशद्वार के रूप में अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण एक प्रमुख शहरी केंद्र रहा मुंगेर आज भी एक महत्वपूर्ण राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और वाणिज्यिक केंद्र बना हुआ है. बिहार के गौरवशाली अतीत और सांस्कृतिक एकीकरण के सही मूल्य का पता करना हो तो इसके लिए मुंगेर की धरती का दर्शन करना जरूरी है, जिसमें भविष्य की आशा है. यह जिला अपनी ऐतिहासिक महत्व और अद्भुत संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है. कई क्षेत्रों में इसके सांस्कृतिक मूल्यों के महान स्तरों का पता लगाया जा सकता है. प्राचीन काल से मध्ययुगीन और आधुनिक युग के आगमन तक, मुंगेर ने विभिन्न क्षेत्रों में बहुत अधिक उन्नति की है.

इस शहर का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है, जो चौथी शताब्दी ईस्वी में गुप्त काल से सत्ता का केंद्र रहा है. इतिहास के प्रिज्म के माध्यम से देखा जाए तो मुंगेर क्षेत्र मध्य देश की पहली आर्य जनसंख्या के 'मिडलैंड' के रूप में उभरा. महाभारत में इसे 'मॉड-गिरि' या 'मोदगिरि' के रूप में वर्णित किया गया है. यह स्थान एक समय वेंगा और तामलिप्त के पास एक राज्य की राजधानी था. सभा पर्व में भीम की ओर से अंगराज कर्ण को पराजित कर 'मोदगिरि' में युद्ध का उल्लेख मिलता है. यह स्थान बुद्ध के अनुयायी मौदगल्य से भी जुड़ा हुआ है, जिन्होंने यहां के व्यापारियों को बौद्ध धर्म में परिवर्तित किया.

शाहजहां के बेटे शाह शुजा ने मुंगेर को अपनी सैन्य तैयारियों का केंद्र बनाया. मुंगेर किला एक प्रमुख सैन्य ठिकाना बना. इसके बाद 1762 में मीर कासिम ने मुंगेर को राजधानी बनाया और यहां शस्त्रागार की स्थापना की. मुंगेर तब आग्नेयास्त्र निर्माण का प्रमुख केंद्र बना. मीर कासिम ने प्रशासनिक और न्यायिक सुधार किए और जनता के बीच लोकप्रियता पाई. फिलहाल, यहां की समृद्धि अतीत और आधुनिक संस्कृति का एक स्थान है. मुंगेर ने अब भी सामाजिक और सांस्कृतिक समृद्धि का अत्यंत कायाकल्प संस्कृति देखी है. लोग उत्सुकता के साथ अपने धार्मिक और सामाजिक त्योहार मनाते हैं. यहां हिंदू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध और अन्य धर्मों के लोग एक दूसरे के त्योहारों में भाग लेते हैं.

इस जिले के हर हिस्से की अपनी एक कहानी सुनाई पड़ती है. बिहार के इस हिस्से में प्राचीन मंदिरों से लेकर भव्य मस्जिदों और चर्च तक आपको मिलेंगे. गंगा नदी के किनारे होने की वजह से यह स्थान धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है.

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