पासवान नीतीश कुमार के साथ मिलकर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे या नहीं ? आज अहम बैठक

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान, अपनी पार्टी के नेताओं से चर्चा करेंगे कि क्या उन्हें आगामी चुनावों में नीतीश कुमार की पार्टी के साथ जाना चाहिए या उनके खिलाफ चुनाव लड़ना चाहिए.

पासवान नीतीश कुमार के साथ मिलकर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे या नहीं ? आज अहम बैठक

रामविलास पासवान के साथ चिराग पासवान (फाइल फोटो).

पटना:

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी के साथ अपने गठबंधन को लेकर अनिश्चितताओं के बीच सोमवार को राज्य विधानसभा चुनाव के लिए अपने अभियान की शुरुआत करेंगे. ठीक इसी दिन, चिराग पासवान के पिता, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान, अपनी पार्टी के नेताओं से चर्चा करेंगे कि क्या उन्हें आगामी चुनावों में नीतीश कु्मार की पार्टी के साथ जाना चाहिए या उनके खिलाफ चुनाव लड़ना चाहिए.

दोनों दल पिछले कुछ महीनों से कई मुद्दों पर आमने-सामने रहे हैं, जिसमें कोरोनोवायरस महामारी से निपटने और हाल ही में आई बाढ़ के दौरान बने हालात शामिल हैं. जुलाई में, लोजपा ने विपक्ष की ही तरह नीतीश सरकार पर आरोप लगाया कि राज्य के एक "होनहार युवक" सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच के लिए मुख्यमंत्री की ओर से कोई पहल नहीं की गई. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के NDA में शामिल होने से नीतीश कुमार के लोजपा के साथ रिश्ते खराब हो गए हैं. बैठक से एक दिन पहले, चिराग पासवान ने कहा कि नीतीश कुमार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के सदस्यों को दी जाने वाली मुफ्त जमीन का वादा पूरा नहीं किया है.

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चिराग पासवान, जो नीतीश कुमार पर कई मुद्दों पर हमलावर रहे हैं ने नीतीश कुमार से एससी / एसटी समुदायों के उन सभी लोगों के परिजनों को नौकरी देने की मांग की, जिनकी बीते 15 साल के दौरान मृत्यु हुई. रविवार को मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में, चिराग पासवान ने नीतीश कुमार द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों से किए गए निशुल्क भूमि के वादे पर भी सवाल उठाया, यह सवाल किया कि यह अभी तक क्यों नहीं मिला?

पासवान पिता-पुत्र ने, हालांकि, भाजपा पर सीधे हमला नहीं किया है, जो कह रही है कि आगामी चुनाव जेडीयू प्रमुख के नेतृत्व में और सभी मौजूदा सहयोगियों के साथ लड़ा जाएगा. खबरों के मुताबिक, बैठक में पासवान अपने नेताओं के साथ एक व्यवस्था की व्यवहार्यता पर चर्चा कर सकते हैं, जिसमें पार्टी एनडीए में रहेगी और केवल जदयू के खिलाफ चुनाव लड़ेगी, भाजपा के खिलाफ नहीं.

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2005 में एलजेपी के लिए इसी तरह की चुनावी रणनीति ने काम किया था, जब पार्टी ने लालू यादव की आरजेडी को सरकार में एक और कार्यकाल जीतने से रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उस समय कांग्रेस-राजद की सहयोगी रही लोजपा ने केवल लालू यादव की पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ा था, जिसके परिणामस्वरूप त्रिशंकु विधानसभा बनी. बाद के चुनावों में, नीतीश कुमार को अपनी पहली सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें मिलीं थीं.

यदि एलजेपी - जो पासवान समुदाय और अन्य अनुसूचित जाति समुदायों के बीच उल्लेखनीय समर्थन रखती है, जेडीयू-भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला करती है, तो विपक्ष को फायदा हो सकता है. चुनाव आयोग द्वारा इस महीने चुनाव की घोषणा किए जाने की संभावना है.

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