Freedom at Midnight Review: पूरी दुनिया को 'आंख के बदले आंख पूरे विश्व को अंधा बना देगी' विचार देने वाले महात्मा गांधी का भारत की आजादी में योगदान सब जानते हैं, उसी योगदान को स्क्रीन पर फिर से दोहराने का काम सोनी लिव ऐप पर आई वेब सीरीज 'फ्रीडम ऐट मिडनाइट' ने किया है. लैरी कॉलिन्स और डोमिनिक लैपियर की किताब 'फ्रीडम ऐट मिडनाइट' से यह वेब सीरीज सीरीज प्रेरित है . कल हो न हो फिल्म के लिए मशहूर निर्देशक निखिल आडवाणी अपनी इस वेब सीरीज के जरिए स्क्रीन पर इतिहास को सही तरीके से दोहराने में कामयाब भी हुए हैं. साल 1920 में पूर्ण स्वराज की मांग करने से लेकर साल 1947 में मिली आजादी तक के सफ़र को अलग अलग हिस्सों में बांटकर निर्देशक इस किताब को एक बेहतरीन वेब सीरीज का रूप देने में कामयाब रहे हैं.
विभाजन की कहानी को सामने रखती 'फ्रीडम ऐट मिडनाइट'
इस सीरीज की कहानी सन 1946 के कोलकाता सेशन से शुरू होती है, जहां देश के बंटवारे के सवाल पर महात्मा गांधी कहते हैं कि 'देश के टुकड़े होने से पहले मेरे टुकड़े होंगे'. वेब सीरीज की कहानी सिर्फ अंग्रेजों की हुकूमत और भारतीयों की गुलामी की कहानी नहीं है, इसमें देश के अंदर चल रही अंदरूनी राजनीतिक उथल पुथल को भी दिखाया गया है.
सीरीज में हम देखते हैं कि कैसे महात्मा गांधी के स्वराज के सपने को पूरा करने के लिए एकजुट हुए लोग राजनीतिक जिम्मेदारियों में इतना घिर गये कि आजादी का समय आते आते गांधी के रास्ते से ही अलग हो गये और विभाजन को भी नही रोक पाए.
मुस्लिमों के एकतरफा मसीहा के रूप में उभरे मुहम्मद अली जिन्ना ने खुद को गांधी से बेहतर दिखाने की होड़ में किस तरह पंजाब और बंगाल के हालात बद से बदतर करवा दिए ये भी दर्शकों को बार बार देखने को मिलेगा.
कहानी के साथ न्याय करते हुए जान पड़ते संवाद और कुछ दृश्य दर्शकों को हिला देते हैं
सरदार पटेल का डायलॉग 'अगर एक उंगली को काटने से पूरा हाथ बच सकता है तो उंगली को अलग करना ही बेहतर है' वेब सीरीज में दिखाई गई कहानी के साथ न्याय करता है. वेब सीरीज़ में इस तरह के ही अन्य कई डायलॉग हैं जो कहानी के साथ न्याय करते हैं.
वेब सीरीज के एक दृश्य में पंजाब के दंगों में एक शख़्स को पेट्रोल डालकर जिंदा जलाया गया है, एक और दृश्य में बहुत सी महिलाएं एक साथ आग में कूदकर अपनी जान दे देती हैं, ऐसे बहुत से दृश्य वेब सीरीज़ में दिखाए गए हैं जो किसी भी इंसान को अंदर से तोड़ सकते हैं. जवाहर लाल नेहरू का बंटवारे की घोषणा किए जाने वाला दृश्य उस समय देश के बंटवारे से मिला भारतीयों को मिला दर्द फिर ताजा कर देगा.
परफेक्ट कास्टिंग और उस पर मुहर लगाता कलाकारों का शानदार अभिनय
वेब सीरीज़ के हर कलाकार का चयन काफी सोच समझकर किया गया लगता है. महात्मा गांधी का किरदार निभाने वाले चिराग वोहरा ने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है और महात्मा गांधी की समाज में जैसी छवि है, वह उसी के दर्पण दिखाई देते हैं. पंडित जवाहर लाल नेहरू बने सिद्धांत गुप्ता की संवाद अदायगी शानदार है लेकिन उनके लुक पर की गई मेहनत में कमी लगती है, निर्देशक को इस ओर ध्यान देने की जरूरत थी.
राजेंद्र चावला ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका निभाई है, वह एक मंझे हुए कलाकार हैं और ये उनके किरदार से झलकता भी है. एक अच्छे, समझदार नेता, पार्टी के मुख्य कार्यकर्ता एवं मुख्य सलाहकार के रूप में फिल्म में उन्होंने जान डालने की कोशिश की है और कुल मिलाकर उसमे वो कामयाब भी हुए हैं. आरिफ जकारिया इस फिल्म की खोज कही जा सकती हैं, स्क्रीन पर उनके आते ही दर्शक वेब सीरीज में और भी रोचकता महसूस करने लगते हैं.
तकनीकी रूप से मजबूत है वेब सीरीज और यह बेहतरीन स्क्रिप्ट के लिए याद की जाएगी
इतिहास पर बनी वेब सीरीज के लिए स्क्रीन पर ऐसा दिखना जरूरी होता है जिससे वह दर्शकों को वेब सीरीज की कहानी के समय जैसा ही महसूस करा सके. निर्देशक ने इस तकनीकी पक्ष को बेहतरी से समझ कर वेब सीरीज बनाई है, कलाकारों द्वारा पहने गए कॉस्ट्यूम को देखकर ही अनुमान लगा सकते हैं कि वेब सीरीज़ को बेहतरीन बनाने के लिए कितनी मेहनत की गई है.
सीरीज में कई जगह वास्तविक तस्वीरों का प्रयोग का प्रयोग गया है, कई जगह डिम लाइट्स हैं, टाईपराइटर, प्रिंटिंग की मशीने, पुरानी कारें, संचार के पुराने माध्यम, यह सब देखकर दर्शक खुद को इतिहास से जुड़ा पाते हैं. वेब सीरीज की स्क्रिप्ट इन सब पहलुओं को अपने साथ लेकर लिखी गई है, कहानी में इन सब का प्रयोग होते देखना अद्भुत है और बेहतरीन निर्देशन के साथ बेहतरीन स्क्रिप्ट राइटिंग के लिए भी इस वेब सीरीज को याद रखा जाएगा.
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