
बसपा प्रमुख मायावती.
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2013 की गलती कांग्रेस ने फिर दोहराई?
एमपी में 230 सीटों पर 28 नवंबर को मतदान होंगे
11 दिसंबर को परिणामों का एलान किया जाएगा
मध्य प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव में उतरी हैं. पहले दोनों के साथ आने की काफी संभावना जताई जा रही थी, लेकिन दोनों में गठबंधन नहीं हो पाया. एनडीटीवी के प्रणव रॉय के चुनावी विश्लेषण के मुताबिक अगर दोनों पार्टियां साथ आ जाती तो चुनाव के परिणामों पर इसका असर देखने को मिलता. कांग्रेस ने साल 2013 के विधानसभा चुनाव में भी बसपा से हाथ नहीं मिलाने की गलती की थी. विश्लेषण में बताया गया है कि अगर साल 2013 के विधानसभा चुनाव में बसपा और कांग्रेस एक साथ आ जाती तो उन्हें 41 सीटें और मिल सकती थीं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस वहीं पुरानी गलती फिर दोहरा रही है?
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आंकड़ों के मुताबिक बसपा को पिछले करीब 20 साल से एमपी में 6 से 9 फीसद के बीच ही वोट मिल रहे हैं. स्विंग फैक्टर कांग्रेस की मदद कर सकता है. साल 2013 के चुनाव के आंकड़ें देखें तो कांग्रेस केवल 5 फीसदी वोट स्विंग की मदद से विधानसभा चुनाव जीत सकती थी. कांग्रेस को साल 2013 में 230 सीटों में से 58 सीटें मिली थी. अगर वह बसपा के साथ चुनाव लड़ती तो बसपा का वोट शेयर भी कांग्रेस के हिस्से में आ जाता. कांग्रेस को पांच फीसद वोट और मिलते तो उसके हिस्से में 117 सीटें जा सकती थीं और भाजपा 108 सीटों पर सिमट जातीं. वहीं यह पांच फीसद वोट भाजपा की तरफ चले जाते तो वह 204 सीटें हासिल कर सकती थीं, ऐसे में कांग्रेस केवल 22 सीटें ही जीतने में कामयाब रहती.
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मायावती ने क्यों छोड़ा साथ?
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदारों में शुमार और पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ ने चुनाव प्रचार के दौरान एनडीटीवी से बातचीत में बताया कि बसपा के साथ एक तो सीटों की संख्या और दूसरे विशेष सीटों की मांग पर मतभेद रहे. बसपा की ओर से जो सीटें मांगीं जा रहीं थीं, उन पर जीत की न कोई उम्मीद दिख रही थी, न कोई फार्मूला. ऐसी सीटें बसपा मुखिया मायावती ने मांग लीं, जहां हजार वोट से ज्यादा उन्हें नहीं मिल पाते. कांग्रेस ने बहुजन समाज पार्टी को 25 सीटें ऑफर कीं थीं. मगर मायावती 50 सीटों से कम पर समझौते को तैयार ही नहीं थीं. उन्होंने कहा कि बसपा मुखिया मायावती एक सीट छिंदवाड़ा और एक सीट इंदौर में चाहती थीं. छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र से कमलनाथ नौ बार से सांसद चुने जाते रहे हैं. कमलनाथ के मुताबिक यहां वे एक हजार से ज्यादा वोट नहीं पा सकतीं थीं.
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