चुनाव से भी पहले चुन लिया गया था योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री

चुनाव से भी पहले चुन लिया गया था योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री

योगी को मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपने का फैसला गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ में बहुत पहले हो चुका था...

खास बातें

  • बताया गया, योगी को कमान सौंपने का फैसला गोरक्षपीठ में पहले ही हो चुका था
  • फैसले पर RSS व संत समाज की मुहर भी लग गई थी, पर खुलासा नहीं किया गया था
  • कहा जाता है, शीर्ष नेतृत्व ने योगी को सामने लाकर एक तीर से कई निशाने साधे
नई दिल्ली:

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उत्तर प्रदेश में हिन्दुत्व के राजनीति के 'टाइगर' कहे जाने वाले योगी आदित्यनाथ को राज्य का मुख्यमंत्री बनाकर सभी अटकलों पर विराम लगा दिया, और अब योगी ने अपने दो सहयोगियों केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा सहित 47-मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के साथ शपथ ले ली है.

बीजेपी के लिए यह मौका बेहद उत्साहवर्द्धक रहा, क्योंकि राज्य में पार्टी 14 साल के वनवास के बाद सत्ता में लौटी है. बीजेपी में मुख्यमंत्री पद को लेकर काफी मंथन चला, और आखिरकार पार्टी ने राज्य की कमान हिन्दुत्व छवि के प्रतीक योगी आदित्यनाथ को सौंपी. एक फकीर (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) और दूसरा योगी - उम्मीद की जानी चाहिए कि यह जोड़ी राज्य को विकास के नए शिखर तक ले जाएगी.

योगी को मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपने का फैसला गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ में बहुत पहले हो चुका था, और इस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और संत समाज ने अपनी मुहर लगाई थी, लेकिन चूंकि चुनाव मुख्यमंत्री के चेहरे के बिना लड़ा गया था, लिहाज़ा इस बात का खुलासा नहीं किया गया.

शीर्ष नेतृत्व ने योगी को सामने लाकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं. यानी 'किलिंग टू बर्ड्स विद वन स्टोन' का फॉर्मूला अपनाया है. योगी को राज्य की सत्ता सौंप पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के अलावा आरएसएस ने अपना मंतव्य साफ कर दिया है - राज्य में पार्टी की निगाह वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा मिशन पर टिकी हैं.

योगी को काम का पूरा वक्त दिए बिना सिर्फ उनकी उग्र हिन्दुत्ववादी छवि पर सवाल उठाना भी नाइंसाफी होगी. जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद का दायित्व संभाला था, तो उस दौरान भी यह बात उठी थी, लेकिन आज स्थितियां कितनी बदल गई हैं.

पूरे देश में नरेंद्र मोदी के नाम की आंधी चल रही है, और कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो चला है. बीजेपी ने पूर्वोत्तर जैसे राज्यों में भी अपना पांव जमा लिया है. देश की 58 फीसदी आबादी पर बीजेपी का कब्जा हो चला है. दलित, मुस्लिम वर्गों में भी बीजेपी, प्रधानमंत्री मोदी और उनकी नीतियों का जलवा सिर चढ़कर बोल रहा है, क्योंकि अगर ऐसा न होता तो उत्तर प्रदेश के दलित और मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में बीजेपी को बड़ी जीत नहीं मिलती. प्रतिपक्ष को दिमाग खोलकर यह बात समझनी चाहिए. वक्त के साथ जो बदलना जानता है, वही असली खिलाड़ी होता है.
 


उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है. यहां की चुनौतियां भी बड़ी हैं, जिन्हें संभालना योगी के लिए चुनौती होगा. विकास, कानून एवं व्यवस्था और महिला सुरक्षा के साथ-साथ किसानों, युवाओं की समस्याएं तथा रोज़गार भी बड़ी चुनौतियां होंगी. साथ ही पूर्व सरकार की चालू योजनाओं को मंज़िल तक पहुंचाना भी अहम होगा.

चुनाव के दौरान पार्टी की तरफ से किए लोकलुभावन नारों और घोषणाओं पर अमल करना और उन्हें लागू करना भी एक नया चैलेंज होगा. 14 साल के वनवास के बाद बीजेपी राज्य की सत्ता में लौट रही है, और बीजेपी और पीएम मोदी में सभी जाति-धर्म के लोगों ने विश्वास जताया है, सो, उनके विश्वास की रक्षा करना भी उनकी ज़िम्मेदारी होगी.

किसानों की कर्ज़ माफी, अपराध नियंत्रण और सरकारी नियुक्तियों में पारदर्शिता, युवाओं को रोज़गार उपलब्ध कराना जैसी समस्याएं सामने होंगी. इसके अलावा बीजेपी को बड़ी जीत दिलाने वाले 'पोलराइज़ेशन' का भी ख्याल रखना होगा.

आमतौर पर माना जा रहा था कि बीजेपी योगी आदित्यनाथ पर दांव नहीं खेलेगी, क्योंकि यूपी प्रशासनिक लिहाज़ से बड़ा राज्य है. राज्य के सत्ता संचालन के लिए किसी अनुभवी मुख्यमंत्री का नाम प्रस्तावित किया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और पार्टी ने राजनाथ सिंह पर दांव लगाने के बजाय मंथन के बाद योगी पर पांसा खेला.

योगी आदित्यनाथ भी पीएम के करीबी और चहेते माने जाते हैं. दूसरी बात, लव-जेहाद की बात उठाकर उन्होंने पार्टी को अलग पहचान दिलाई. पूर्वांचल में उनकी हिन्दुत्व वाहिनी सेना अलग पहचान रखती है. दक्षिण भारत में शिवसेना हिन्दुत्व का झंडा बुलंद करती है. कभी बालासाहब ठाकरे को 'हिन्दुत्व का शेर' के नाम से जाना जाता था, और अब वही स्थिति उत्तर भारत में योगी आदित्यनाथ और उनकी हिन्दुत्व वाहिनी सेना का है.

योगी भी शेर के साथ खेलते दिखते हैं. हालांकि पार्टी में जिन लोगों को सत्ता की कमान सौंपी गई है, वे सभी नए चेहरे हैं. राज्य संचालन का अनुभव नहीं है. दूसरी बात, कई के पास राज्य विधानमंडल दल की सदस्यता भी नहीं है, और छह माह में उन्हें सदस्यता लेनी होगी. योगी और केशव प्रसाद मौर्य को संसद की सदस्यता से त्यागपत्र देना होगा. योगी गोरखपुर से और मौर्य फूलपुर संसदीय सीट से सांसद हैं, जबकि दिनेश शर्मा लखनऊ के मेयर हैं.

राज्य की चुनौतियों और वर्ष 2019 को देखते हुए पार्टी ने जातियों का भी विशेष ख्याल रखा है. योगी मंत्रिमंडल में सभी जातियों को तवज्जो दी गई है. योगी आदित्यनाथ मूलत: उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से आते हैं. उनका असली नाम अजय सिंह नेगी है, लेकिन अब उनकी पहचान गोरखपुर से है. हिन्दू विचारधारा की जो छवि नागपुर की है, अब वही यूपी में गोरखपुर की उभर रही है, और गोरखपुर मिनी नागपुर बनता दिख रहा है.

यूपी का पूर्वांचल अब देश की राजनीति का 'पॉवर सेंटर' बनता दिख रहा है. यह हिन्दुत्व के गढ़ के रूप में भी उभर रहा है. योगी उग्र हिन्दुत्व छवि के ब्रांड एम्बैसेडर के रूप में उभरे हैं. गुजरात में होने वाले चुनाव के लिए भी यह स्थिति सुखद होगी.

योगी गोरखपुर से पांच बार सांसद चुने जा चुके हैं. योगी को सामने रख जहां हिन्दुत्व कार्ड खेला गया है, वहीं क्षत्रिय बिरादरी को भी रिझाने का पांसा डाला गया है. केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी से आते हैं, क्योंकि राज्य विधानसभा चुनाव में बीजेपी का जीत दिलाने में पिछड़ी जातियों ने खास भूमिका निभाई है. वहीं दिनेश शर्मा ब्राह्मण जाति से हैं. लिहाजा, डिप्टी सीएम बनाकर 11 फीसदी ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की गई है. योगी मंत्रिमंडल में सभी जातियों और समुदाय के साथ क्षेत्रों को अहमियत दी गई है. पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी यूपी और बुंदेलखंड को तवज्जों दी गई है.

राजनीतिक लिहाज़ से पूर्वांचल बीजेपी के लिए अहम है. यहां की 141 सीटों में 111 पर बीजेपी का परचम लहराया, जबकि एसपी 14 और बीएसपी सिर्फ 12 सीटें जीतने में कामयाब रहीं. कांग्रेस पूरे पूर्वांचल में केवल कुशीनगर की सीट जीत पाई. पूर्वांचल से 11 सीटें बीजेपी की झोली में गई हैं, और 15 साल बाद पूर्वांचल का कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा है.

वर्ष 2002 में राजनाथ सिंह पूर्वांचल से अंतिम मुख्यमंत्री माने जाते थे. ऐसी स्थिति में योगी का उभरना क्षेत्र के लिए सुखद है. योगी को काम करने का पूरा मौका मिलना चाहिए. जिम्मेदारी और दायित्व मिलने के बाद व्यक्ति अनुभवी हो जाता है. राज्य में जाति-धर्म का तिलिस्म टूटा है. एक नई विचारधारा का प्रतिस्फुटन हुआ है. सो, उम्मीद की जानी चाहिए कि योगी सबको साथ लेकर चलेंगे और बीजेपी सबका विकास करेगी.

(यह आलेख आईएएनएस के लिए स्वतंत्र पत्रकार प्रभुनाथ शुक्ल ने लिखा है. ये उनके निजी विचार हैं...)

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