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This Article is From Feb 07, 2017

UP elections 2017: दो 'शहजादों' के साथ इस 'युवराज' की प्रतिष्‍ठा दांव पर

UP elections 2017: दो 'शहजादों' के साथ इस 'युवराज' की प्रतिष्‍ठा दांव पर
जयंत चौधरी 2009 लोकसभा के दौरान मथुरा से सांसद चुने गए.
नई दिल्‍ली: सपा और कांग्रेस में गठबंधन होने के बाद यूपी की सियासत में नई किस्‍म की राजनीति की शुरुआत कर अखिलेश यादव और राहुल गांधी पिछले दिनों सर्वाधिक सुर्खियों का सबब बने हैं. यह इसलिए भी महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि दोनों दलों में एक तरह से पीढ़ीगत बदलाव भी इसके जरिये दिखता है. यानी कि सोनिया गांधी और मुलायम सिंह के बजाय इनकी अगली पीढ़ी ने यह गठबंधन किया है. पीएम नरेंद्र मोदी ने इनकी आलोचना करते हुए कहा है कि दोनों 'शहजादों' ने अपने राजनीतिक भविष्‍य को बचाने के लिए गठबंधन किया है. इसी कड़ी में पश्चिमी यूपी से ताल्‍लुक रखने वाले महत्‍वपूर्ण राजनीतिक घराने के सियासी वारिस के भविष्‍य का दारोमदार भी काफी हद तक इस बार के चुनावों पर टिका है.

जी हां, बात हो रही है, राष्‍ट्रीय लोकदल(रालोद) के नेता अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी की. वह इस वक्‍त रालोद के जनरल सेक्रेट्री हैं और अपनी पार्टी का चेहरा हैं. इस बार पार्टी की कमान पूरी तरह से उनके हाथों में हैं. जाट बाहुल्‍य क्षेत्र में शुरुआती दो चरणों में 11 फरवरी और 15 फरवरी को मतदान होने जा रहा है और इसी अंचल के 26 जिलों में जाटों की अहम भूमिका है. पिछले विधानसभा चुनावों में रालोद ने 46 सीटों पर प्रत्‍याशी खड़े किए थे और उनमें से नौ सीटें जीती थीं. लेकिन 2014 के आम चुनावों में पार्टी अपना खाता खोलने में नाकाम रही.

जयंत चौधरी की चुनौती
1998 में अजित सिंह ने रालोद का गठन किया था. पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम समुदाय इनका प्रमुख वोटबैंक था. 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद ये वोटबैंक रालोद से छिटक गया. 2014 के आम चुनावों में जाटों ने बीजेपी का दामन थाम लिया. तब से ही इस 'गन्‍ना बेल्‍ट' में रालोद की सियासी जमीन दरक गई है. जयंत चौधरी अबकी बार उसी खाई को पाटने की कोशिशों में लगे हैं.

वोटों का गणित
हालांकि पश्चिमी यूपी के इस इलाके में परंपरागत रूप से मायावती का प्रदर्शन भी बेहतर रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र में बसपा को 29 सीटें मिली थीं. इस लिहाज से इस भी इस इलाके में रालोद का मुख्‍य रूप से मुकाबला बीएसपी से ही होगा. मायावती दलित-मुस्लिम फॉर्मूले के साथ इस बार मैदान में हैं और यहां 26 प्रतिशत मुस्लिम और 21 प्रतिशत दलित आबादी है.    

इसके अलावा इलाके की आबादी का 17 हिस्‍सा जाटों का है और यदि जाट फिर से अपने रालोद की तरफ लौटते हैं तो यह बीजेपी के लिए बड़ी चिंता का सबब होगा. 2014 के लोकसभा में पश्चिमी यूपी की सभी 10 सीटों पर बीजेपी विजयी हुई थी. उस दौरान बड़े पैमाने पर जाटों ने मोदी लहर के चलते अजित सिंह का साथ छोड़कर बीजेपी को वोट दिया था. उस वोटबैंक पर पकड़ बनाए रखना बीजेपी के लिए अबकी बार बहुत आसान नहीं होगा.

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