
यूपी में समाजवादी पार्टी-कांग्रेस महागठबंधन की राह में सीटों का पेंच फंसा हुआ है.
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में बीजेपी और बसपा की चुनौती से निपटने के लिए समाजवादी पार्टी का कांग्रेस से गठबंधन तो करीब तय है लेकिन राष्ट्रीय लोकदल के भी महागठबंधन में शामिल होने को लेकर फिलहाल स्थिति स्पष्ट नहीं है. इस गठबंधन में विधानसभा सीटों को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है. समाजवादी पार्टी 403 में से 300 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है और शेष बची सीटें ही सहयोगी दलों को देना चाहती है जबकि कांग्रेस 110 सीटों की मांग कर रही है. उधर रालोद 35 सीटें चाह रही है.
सीटों के बंटवारे पर फिलहाल सहमति नहीं बन पाई है. हालांकि अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि महागठबंधन में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के अलावा कौन से दल होंगे. सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरणमय नंदा के मुताबिक गठबंधन के लिए सिर्फ कांग्रेस से बातचीत चल रही है. उनका कहना है कि रालोद से कोई बात नहीं हो रही है. जदयू, राजद और तृणमूल जैसे दल समाजवादी पार्टी के चुनाव प्रचार में ही भाग लेंगे, चुनाव नहीं लड़ेंगे. नंदा का कहना है कि कांग्रेस के साथ सीटों का बंटवारा वर्ष 2012 के चुनाव परिणामों के आधार पर किया जाएगा.
सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव महागठबंधन का स्वरूप तय कर रहे हैं. वे कांग्रेस को 90 सीटें देने के लिए तैयार हैं, पर वह सौ से अधिक सीटें चाह रही है. यदि रालोद को भी गठबंधन में शामिल किया जाता है तो उसे कम से कम 20 सीटें देनी होंगी. इसके अलावा कुछ अन्य छोटे दलों को भी पांच से सात सीटें देनी होंगी. यदि इन दलों की मांग के मुताबिक सीटें दी जाती हैं तो समाजवादी पार्टी को अपने हिस्से की तय तीन सौ में से करीब 25 सीटें देनी होंगी.
वास्तव में यूपी में कांग्रेस और सपा दोनों को ही गठबंधन करने की जरूरत है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर दंगा और अखलाक हत्याकांड के कारण समाजवादी पार्टी को नुकसान होता दिख रहा है. सपा को अपने पारंपरिक अल्पसंख्यक वोट खिसकते हुए दिख रहे हैं. दूसरी तरफ बसपा की नजर इन वोटों पर है. इन हालात में सपा को इस वोट बैंक को अपने हक में करने के लिए कांग्रेस और इस जैसे धर्मनिरपेक्ष दलों से गठबंधन करने की आवश्यकता है.
गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने 73 सीटों पर जीत हासिल की. इन परिणामों ने साफ कर दिया कि यूपी में सपा और कांग्रेस का जनाधार घट गया है. विकास के मुद्दे पर अखिलेश मजबूत हैं. यूपी का विकास उन्हें फायदा पहुंचाएगा लेकिन यह कठिन चुनावी वैतरणी पार करने के लिए उन्हें अन्य दलों के सहारे की जरूरत तो पड़ेगी ही. सहयोगियों के लिए कुछ सीटों की कुरबानी भी देनी पड़ सकती है.
सीटों के बंटवारे पर फिलहाल सहमति नहीं बन पाई है. हालांकि अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि महागठबंधन में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के अलावा कौन से दल होंगे. सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरणमय नंदा के मुताबिक गठबंधन के लिए सिर्फ कांग्रेस से बातचीत चल रही है. उनका कहना है कि रालोद से कोई बात नहीं हो रही है. जदयू, राजद और तृणमूल जैसे दल समाजवादी पार्टी के चुनाव प्रचार में ही भाग लेंगे, चुनाव नहीं लड़ेंगे. नंदा का कहना है कि कांग्रेस के साथ सीटों का बंटवारा वर्ष 2012 के चुनाव परिणामों के आधार पर किया जाएगा.
सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव महागठबंधन का स्वरूप तय कर रहे हैं. वे कांग्रेस को 90 सीटें देने के लिए तैयार हैं, पर वह सौ से अधिक सीटें चाह रही है. यदि रालोद को भी गठबंधन में शामिल किया जाता है तो उसे कम से कम 20 सीटें देनी होंगी. इसके अलावा कुछ अन्य छोटे दलों को भी पांच से सात सीटें देनी होंगी. यदि इन दलों की मांग के मुताबिक सीटें दी जाती हैं तो समाजवादी पार्टी को अपने हिस्से की तय तीन सौ में से करीब 25 सीटें देनी होंगी.
वास्तव में यूपी में कांग्रेस और सपा दोनों को ही गठबंधन करने की जरूरत है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर दंगा और अखलाक हत्याकांड के कारण समाजवादी पार्टी को नुकसान होता दिख रहा है. सपा को अपने पारंपरिक अल्पसंख्यक वोट खिसकते हुए दिख रहे हैं. दूसरी तरफ बसपा की नजर इन वोटों पर है. इन हालात में सपा को इस वोट बैंक को अपने हक में करने के लिए कांग्रेस और इस जैसे धर्मनिरपेक्ष दलों से गठबंधन करने की आवश्यकता है.
गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने 73 सीटों पर जीत हासिल की. इन परिणामों ने साफ कर दिया कि यूपी में सपा और कांग्रेस का जनाधार घट गया है. विकास के मुद्दे पर अखिलेश मजबूत हैं. यूपी का विकास उन्हें फायदा पहुंचाएगा लेकिन यह कठिन चुनावी वैतरणी पार करने के लिए उन्हें अन्य दलों के सहारे की जरूरत तो पड़ेगी ही. सहयोगियों के लिए कुछ सीटों की कुरबानी भी देनी पड़ सकती है.
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