
- मेरठ में शनिवार को यूपी विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने है
- मेरठ को मायावती के लिए एक अहम गढ़ के रूप में देखा जाता है
- यहां के युवा वोटरों का रुझान अपने अभिभावकों से थोड़ा अलग दिखता है
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कोमल कहती हैं 'मेरे माता-पिता हमेशा मायावती के समर्थक रहे हैं - जाहिर सी बात है क्योंकि यह जो आप घर देख रहे हैं ना, इसे मायावती ने ही बनवाया है.' गौरतलब है कि दलितों का प्रतिनिधित्व करने वाली और चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती ने शहरी गरीबों को सस्ते घर मुहैया करवाए थे.
कोमल के परिवार को इस घर में आए हुए पांच साल हो चुके हैं और मायावती को लेकर इनका समर्थन अभी भी ज्यों का त्यों है. लेकिन कोमल अपनी बात करते हुए कहती हैं कि 'पता नहीं, मैं उसी वक्त तय करूंगी. मुझे मोदी भी पसंद है और वो देश के लिए कुछ करना चाहते हैं, मुझे वह पसंद हैं.' तो क्या वह वही करेंगी जो उनके अभिभावक चाहेंगे, इस पर कोमल कहती हैं 'इस बारे में मुझे सोचना पड़ेगा.' वहीं कोमल के घर के बाहर मीडिया की मौजूदगी के बारे में जानते हुए कुछ युवा नारे लगा रहे हैं 'बीएसपी जिंदाबाद' 'इस बार मायावती की सरकार..'
यहां से 40 किलोमीटर दूर एक गांव में, एक दलित युवती जो अपने बाकी के रिश्तेदारों से ज्यादा पढ़ी लिखी है. रेखा ने सिर्फ 11वीं तक की पढ़ाई की है और 19 साल में उसका ब्याह हो गया. उसके पति दयानंद मजदूर हैं और न के बराबर पढ़ाई की है. रेखा और उसके पति दलित बस्ती में महज़ एक कमरे को किराए पर लेकर रह रहे हैं. वह अपने घर की तरफ जाती हुई अस्थाई सीढ़ियां और खुले नाले की तरफ हमारा ध्यान दिलाते हैं. वह कहते हैं कि 'हमारे परिवार ने हमेशा मायावती के लिए ही वोट किया है क्योंकि हम चमार हैं.' इस गांव में 'चमार' शब्द को बुरा नहीं माना जाता और यहां के रहने वाले छोटी जाति के लिए 'दलित' से ज्यादा इस्तेमाल इसी शब्द का करते हैं. रेखा कहती हैं 'लेकिन हमें मोदी पसंद है, वो हम लोगों के लिए कुछ करना चाहते हैं. देखिए न किस तरह उन्होंने नोटबंदी की है.' बता दें कि नोटबंदी की वजह से रेखा के पति को कई दिनों तक काम नहीं मिल पाया, इसके बावजूद वह कहती हैं 'मोदी जी के फैसले से अमीरों को कष्ट पहुंचा है. हमें भी थोड़ी बहुत तकलीफ से तो गुजरना ही पड़ेगा ना?'
दिल्ली से दो घंटे की दूरी पर मेरठ है जिसे मायावती के लिए अहम केंद्र माना जाता है क्योंकि यहां पर जाटव दलितों की संख्या बड़ी मात्रा में है. हालांकि 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सात में से चार सीटें जीतकर जाटवों का समर्थन हासिल की थी.
कोमल और रेखा की तरह पहली बार वोट करने वाले कुछ वोटरों ने इशारा किया है कि शनिवार को होने वाले मतदान में वह अपने परिवार से अलग हटकर फैसला ले सकते हैं. ज़ोया दलित नहीं है और वह ग्रेटर नोएडा के एक कॉलेज में पढ़ती है. उसे नेताओं से नहीं मुद्दों से मतलब है, खासतौर पर कानूनी अव्सवस्था और महिलाओं की सुरक्षा. वह कहती है 'अपराध को मायावती बहुत अच्छे से डील करती हैं. मुझे ऐसा लगता है.' बीएसपी के चुनावी अभियान में बार बार 'गुंडागर्दी मुक्त' उत्तरप्रदेश की बात कही जाती रही है.
ज़ोया के साथ पढ़ने वाले दानिश इमाम भी मायावती को ही अपना वोट देने की बात करते हैं इसलिए नहीं कि उन्होंने मुसलमान समुदाय से भारी तादाद में उम्मीदवार चुने हैं. दानिश अपनी वजह बताते हुए कहते हैं 'मैं पहली बार वोट कर रहा हूं और मुझे गर्व है कि मैं मायावती को वोट दूंगा क्योंकि वह जो वादे कर रही हैं, वह सबसे अच्छे हैं.' यूपी में राजनेता अभी तक जाति के आधार पर वोट मांगते आ रहे हैं, वहीं युवा वोटर नौकरी, शिक्षा और अवसर जैसे मुद्दों पर मतदान देना पसंद कर रहे हैं - ये ऐसे विषय हैं जिनकी इनके अभिभावकों ने शायद वोट देते वक्त कभी मांग ही नहीं की थी.
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