त्रिवेन्द्रम:
त्रिवेन्द्रम के एरिस्टो चौक पर केरल की राजनीति का अक्स दिखता है। जवाहर लाल नेहरू को जैसे नरेंद्र मोदी और उनके साथी ललकार रहे हैं। एक ओर नेहरू का स्टैच्यू और उसके सामने लगे हैं भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के पोस्टर।
पिछ्ले 65 साल में केरल विधानसभा में दक्षिणपंथी दखल नहीं था। इस बार बीजेपी की गंभीर कोशिशें नेहरूवादी सोच को टक्कर देती दिखती हैं।
त्रिवेन्द्रम में टैक्सी चलाने वाले 52 साल के उन्नीकृष्णन भारतीय मजदूर संघ से जुड़े हैं। वह इस बात से खुश हैं कि केरल में अब एलडीएफ और यूडीएफ के अलावा तीसरा कोण तैयार हो रहा है। उन्नीकृष्णन कहते हैं, ''हम 60 साल से थक गये हैं.. अब हमें नया विकल्प चाहिये।''
लेकिन उन्नीकृष्णन के उद्गार पूरे केरल की सोच नहीं है। यहां अब भी लड़ाई यूडीएफ और एलडीएफ के बीच ही है। बीजेपी फैक्टर केरल में कितना असर करेगा ये पता नहीं लेकिन उसकी बढ़ती ताकत से केरल में राजनीति पहले जैसी नहीं रही।
2011 में हुये पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को केरल में 6 प्रतिशत वोट मिला लेकिन लोकसभा चुनावों में बीजेपी की ताकत 10 प्रतिशत वोटों तक पहुंच गई। अब केंद्र में मोदी की जीत के बाद बीजेपी को राज्य में संभावना बढ़ती दिखती है। कुछ महीने पहले हुये पंचायत चुनावों में पार्टी ने करीब 13 प्रतिशत वोट हासिल किया। बीजेपी के नेता इस बार विधानसभा में करीब 6 से 8 सीटें हासिल करने की उम्मीद लगाये हैं।
हालांकि बीजेपी के विरोधी उसकी बढ़ती ताकत को नहीं स्वीकार रहे। गृहमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रमेश चेन्निथला कहते हैं, ''बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिलेगी।" लेकिन चेन्निथला का ये बयान कांग्रेस का डर भी दिखा रहा है क्योंकि बीजेपी का बढ़ता वोट बैंक कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार रॉय मैथ्यू कहते हैं, "बीजेपी ने इन चुनावों में इस बार संगठन और पैसे की पूरी ताकत झोंक दी है। वो पूरी गंभीरता से लड़ रहे हैं। हमने देखा कि जहां कांग्रेस और सीपीएम के कार्यकर्ता एक या दो बार ही लोगों के घरों में वोट मांगने आये, बीजेपी के लोग कम से कम 6-7 बार हर घर में गये हैं।"
बीजेपी की ये गंभीरता नरेंद्र मोदी की दक्षिण भारत में पकड़ बनाने और “कांग्रेस मुक्त भारत" बनाने की मुहिम का हिस्सा दिखती है लेकिन खुद मोदी ने प्रचार में केरल की तुलना सोमालिया से करके एक रणनीतिक भूल कर दी है। इसने कांग्रेस और सीपीएम को बीजेपी पर हमला करने का मौका दिया। इसके बाद कई बीजेपी नेता राज्य में डैमेज कंट्रोल में लगे रहे।
इसके बावजूद बीजेपी को प्रतिशत के हिसाब से ठीकठाक कामयाबी मिलने की संभावना है। भारतीय धर्म जन सेना जैसे दलों का साथ उसे इड़वा समुदाय के कुछ वोट दिला सकता है जिसपर अमूमन सीपीएम का कब्जा रहा है। इसके अलावा नायर वोट के बंटने की पूरी संभावना है। युवा वोटर बीजेपी का साथ दे सकते हैं हालांकि वोटों के इस बंटवारे से यूडीएफ और एलडीएफ में किसको नफा नुकसान अधिक होगा कहना मुश्किल है।
पिछ्ले 65 साल में केरल विधानसभा में दक्षिणपंथी दखल नहीं था। इस बार बीजेपी की गंभीर कोशिशें नेहरूवादी सोच को टक्कर देती दिखती हैं।
त्रिवेन्द्रम में टैक्सी चलाने वाले 52 साल के उन्नीकृष्णन भारतीय मजदूर संघ से जुड़े हैं। वह इस बात से खुश हैं कि केरल में अब एलडीएफ और यूडीएफ के अलावा तीसरा कोण तैयार हो रहा है। उन्नीकृष्णन कहते हैं, ''हम 60 साल से थक गये हैं.. अब हमें नया विकल्प चाहिये।''
लेकिन उन्नीकृष्णन के उद्गार पूरे केरल की सोच नहीं है। यहां अब भी लड़ाई यूडीएफ और एलडीएफ के बीच ही है। बीजेपी फैक्टर केरल में कितना असर करेगा ये पता नहीं लेकिन उसकी बढ़ती ताकत से केरल में राजनीति पहले जैसी नहीं रही।
2011 में हुये पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को केरल में 6 प्रतिशत वोट मिला लेकिन लोकसभा चुनावों में बीजेपी की ताकत 10 प्रतिशत वोटों तक पहुंच गई। अब केंद्र में मोदी की जीत के बाद बीजेपी को राज्य में संभावना बढ़ती दिखती है। कुछ महीने पहले हुये पंचायत चुनावों में पार्टी ने करीब 13 प्रतिशत वोट हासिल किया। बीजेपी के नेता इस बार विधानसभा में करीब 6 से 8 सीटें हासिल करने की उम्मीद लगाये हैं।
हालांकि बीजेपी के विरोधी उसकी बढ़ती ताकत को नहीं स्वीकार रहे। गृहमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रमेश चेन्निथला कहते हैं, ''बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिलेगी।" लेकिन चेन्निथला का ये बयान कांग्रेस का डर भी दिखा रहा है क्योंकि बीजेपी का बढ़ता वोट बैंक कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार रॉय मैथ्यू कहते हैं, "बीजेपी ने इन चुनावों में इस बार संगठन और पैसे की पूरी ताकत झोंक दी है। वो पूरी गंभीरता से लड़ रहे हैं। हमने देखा कि जहां कांग्रेस और सीपीएम के कार्यकर्ता एक या दो बार ही लोगों के घरों में वोट मांगने आये, बीजेपी के लोग कम से कम 6-7 बार हर घर में गये हैं।"
बीजेपी की ये गंभीरता नरेंद्र मोदी की दक्षिण भारत में पकड़ बनाने और “कांग्रेस मुक्त भारत" बनाने की मुहिम का हिस्सा दिखती है लेकिन खुद मोदी ने प्रचार में केरल की तुलना सोमालिया से करके एक रणनीतिक भूल कर दी है। इसने कांग्रेस और सीपीएम को बीजेपी पर हमला करने का मौका दिया। इसके बाद कई बीजेपी नेता राज्य में डैमेज कंट्रोल में लगे रहे।
इसके बावजूद बीजेपी को प्रतिशत के हिसाब से ठीकठाक कामयाबी मिलने की संभावना है। भारतीय धर्म जन सेना जैसे दलों का साथ उसे इड़वा समुदाय के कुछ वोट दिला सकता है जिसपर अमूमन सीपीएम का कब्जा रहा है। इसके अलावा नायर वोट के बंटने की पूरी संभावना है। युवा वोटर बीजेपी का साथ दे सकते हैं हालांकि वोटों के इस बंटवारे से यूडीएफ और एलडीएफ में किसको नफा नुकसान अधिक होगा कहना मुश्किल है।
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