नई दिल्ली:
(18 अगस्त, 1945 को ताइवान में हुए कथित विमान हादसे, और उसमें नेताजी सुभाषचंद्र बोस की कथित मौत पर विशेष आलेख)
भारतीय स्वाधीनता संग्राम के 'महानायक' कहे जाने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बारे में छाए रहस्य से 67 साल बाद भी पर्दा नहीं उठ पाया है... वर्ष 1945 में 18 अगस्त को ताइवान में हुए कथित विमान हादसे में उनकी मौत के सच का पता लगाने के लिए तीन-तीन आयोग बनाए गए, लेकिन सच अब तक सामने नहीं आया...
देश के बहुत-से लोग आज भी यह मानते हैं कि नेताजी की मौत विमान हादसे में नहीं हुई थी और वह आज़ादी के बाद भी लम्बे समय तक जीवित रहे, लेकिन अपनी ज़िन्दगी गुमनामी में बिताई... नेताजी के बारे में ढेरों किस्से-कहानियां प्रचलित रहे... कई साधु-संतों ने खुद के नेताजी होने का दावा किया, जिससे यह रहस्य गहराता चला गया...
ताइवान सरकार ने अपना रिकॉर्ड देखकर खुलासा किया कि 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में कोई विमान हादसा हुआ ही नहीं था, जिससे नेताजी की मौत की कहानी को सच न मानने वालों का यह विश्वास और मजबूत हो गया कि आज़ादी का यह महानायक भारत की अंग्रजों से मुक्ति के बाद भी जीवित था...
सुभाषचंद्र बोस के रहस्य पर पुस्तकें लिख चुके 'मिशन नेताजी' के अनुज धर का दावा है कि भारत सरकार सब कुछ जानती है, लेकिन वह जान-बूझकर रहस्य से पर्दा उठाना नहीं चाहती... उन्होंने कहा कि इसीलिए सरकार ने सूचना के अधिकार के तहत दायर उनके आवेदन पर भी उन्हें नेताजी से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया...
वैसे नेताजी और उनकी मौत की कहानी की सच्चाई जानने के लिए जितनी भी जांच हुईं, उन सबमें कुछ न कुछ ऐसा सामने आया, जिससे यह कहानी और उलझती चली गई... ताइवान में कथित विमान हादसे के वक्त नेताजी के साथ रहे कर्नल हबीब-उर-रहमान ने आज़ाद हिन्द सरकार के सूचना मंत्री एसए नैयर, रूसी तथा अमेरिकी जासूसों और शाहनवाज समिति के समक्ष विरोधाभासी बयान दिए... रहमान ने कभी कहा कि उन्होंने नेताजी के जलते हुए कपड़े उनके बदन से अलग किए थे तो कभी अपने बारे में कहा कि वह तो विमान हादसे में खुद भी बेहोश हो गए थे, और जब आंख खुली तो खुद को ताइपेई के एक अस्पताल में पाया... कभी उन्होंने नेताजी के अंतिम संस्कार की तारीख 20 अगस्त, 1945 तो कभी 22 अगस्त बताई... आज़ाद हिन्द फौज (आईएनए) के बहुत-से सैनिकों और अधिकारियों ने भी यह कहा कि नेताजी की मौत कथित विमान हादसे में नहीं हुई थी...
रहस्य से पर्दा उठाने के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार द्वारा शाहनवाज खान के नेतृत्व में अप्रैल, 1956 में बनाई गई जांच समिति ने विमान हादसे की घटना को सच बताया था, लेकिन समिति में शामिल रहे नेताजी के बड़े भाई सुरेशचंद्र बोस ने इस रिपोर्ट को नकारते हुए कहा था कि कथित विमान हादसे को जान-बूझकर सच बताने की कोशिश की जा रही है... आज़ाद हिन्द फौज के वयोवृद्ध सेनानी रामसिंह का मानना है कि नेताजी आज़ादी के बाद भी बहुत दिनों तक जीवित रहे थे और देश की घटिया राजनीति ने उन्हें कभी सामने नहीं आने दिया...
इसके बाद जुलाई, 1970 में बनाए गए न्यायमूर्ति जीडी खोसला आयोग ने भी वही रिपोर्ट दी, जो शाहनवाज समिति ने दी थी... इसके बाद नेताजी की कथित मौत की जांच के लिए वर्ष 1999 में तीसरा आयोग गठित किया गया, जिसका नाम मुखर्जी आयोग था... इसने अपनी रिपोर्ट में विमान हादसे में नेताजी की मौत को खारिज कर दिया तथा कहा कि मामले में आगे और जांच की ज़रूरत है... मुखर्जी आयोग ने 8 नवम्बर, 2005 को अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी थी, जिसे 17 मई, 2006 को संसद में पेश किया गया, लेकिन सरकार ने रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया...
इस बीच, आज़ाद हिन्द फौज से जुड़े कई लोग यह दावा कर चुके हैं कि उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद में रहने वाले 'गुमनामी बाबा' ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे, और वह गुप्त रूप से नेताजी से मिला करते थे... अनुज धर ने भी अपनी किताब 'इंडिया'ज़ बिगेस्ट कवर-अप' में कई गोपनीय दस्तावेज़ों और तस्वीरों के हवाले से दावा किया है कि नेताजी वर्ष 1985 तक जीवित थे...
भारतीय स्वाधीनता संग्राम के 'महानायक' कहे जाने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बारे में छाए रहस्य से 67 साल बाद भी पर्दा नहीं उठ पाया है... वर्ष 1945 में 18 अगस्त को ताइवान में हुए कथित विमान हादसे में उनकी मौत के सच का पता लगाने के लिए तीन-तीन आयोग बनाए गए, लेकिन सच अब तक सामने नहीं आया...
देश के बहुत-से लोग आज भी यह मानते हैं कि नेताजी की मौत विमान हादसे में नहीं हुई थी और वह आज़ादी के बाद भी लम्बे समय तक जीवित रहे, लेकिन अपनी ज़िन्दगी गुमनामी में बिताई... नेताजी के बारे में ढेरों किस्से-कहानियां प्रचलित रहे... कई साधु-संतों ने खुद के नेताजी होने का दावा किया, जिससे यह रहस्य गहराता चला गया...
ताइवान सरकार ने अपना रिकॉर्ड देखकर खुलासा किया कि 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में कोई विमान हादसा हुआ ही नहीं था, जिससे नेताजी की मौत की कहानी को सच न मानने वालों का यह विश्वास और मजबूत हो गया कि आज़ादी का यह महानायक भारत की अंग्रजों से मुक्ति के बाद भी जीवित था...
सुभाषचंद्र बोस के रहस्य पर पुस्तकें लिख चुके 'मिशन नेताजी' के अनुज धर का दावा है कि भारत सरकार सब कुछ जानती है, लेकिन वह जान-बूझकर रहस्य से पर्दा उठाना नहीं चाहती... उन्होंने कहा कि इसीलिए सरकार ने सूचना के अधिकार के तहत दायर उनके आवेदन पर भी उन्हें नेताजी से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया...
वैसे नेताजी और उनकी मौत की कहानी की सच्चाई जानने के लिए जितनी भी जांच हुईं, उन सबमें कुछ न कुछ ऐसा सामने आया, जिससे यह कहानी और उलझती चली गई... ताइवान में कथित विमान हादसे के वक्त नेताजी के साथ रहे कर्नल हबीब-उर-रहमान ने आज़ाद हिन्द सरकार के सूचना मंत्री एसए नैयर, रूसी तथा अमेरिकी जासूसों और शाहनवाज समिति के समक्ष विरोधाभासी बयान दिए... रहमान ने कभी कहा कि उन्होंने नेताजी के जलते हुए कपड़े उनके बदन से अलग किए थे तो कभी अपने बारे में कहा कि वह तो विमान हादसे में खुद भी बेहोश हो गए थे, और जब आंख खुली तो खुद को ताइपेई के एक अस्पताल में पाया... कभी उन्होंने नेताजी के अंतिम संस्कार की तारीख 20 अगस्त, 1945 तो कभी 22 अगस्त बताई... आज़ाद हिन्द फौज (आईएनए) के बहुत-से सैनिकों और अधिकारियों ने भी यह कहा कि नेताजी की मौत कथित विमान हादसे में नहीं हुई थी...
रहस्य से पर्दा उठाने के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार द्वारा शाहनवाज खान के नेतृत्व में अप्रैल, 1956 में बनाई गई जांच समिति ने विमान हादसे की घटना को सच बताया था, लेकिन समिति में शामिल रहे नेताजी के बड़े भाई सुरेशचंद्र बोस ने इस रिपोर्ट को नकारते हुए कहा था कि कथित विमान हादसे को जान-बूझकर सच बताने की कोशिश की जा रही है... आज़ाद हिन्द फौज के वयोवृद्ध सेनानी रामसिंह का मानना है कि नेताजी आज़ादी के बाद भी बहुत दिनों तक जीवित रहे थे और देश की घटिया राजनीति ने उन्हें कभी सामने नहीं आने दिया...
इसके बाद जुलाई, 1970 में बनाए गए न्यायमूर्ति जीडी खोसला आयोग ने भी वही रिपोर्ट दी, जो शाहनवाज समिति ने दी थी... इसके बाद नेताजी की कथित मौत की जांच के लिए वर्ष 1999 में तीसरा आयोग गठित किया गया, जिसका नाम मुखर्जी आयोग था... इसने अपनी रिपोर्ट में विमान हादसे में नेताजी की मौत को खारिज कर दिया तथा कहा कि मामले में आगे और जांच की ज़रूरत है... मुखर्जी आयोग ने 8 नवम्बर, 2005 को अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी थी, जिसे 17 मई, 2006 को संसद में पेश किया गया, लेकिन सरकार ने रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया...
इस बीच, आज़ाद हिन्द फौज से जुड़े कई लोग यह दावा कर चुके हैं कि उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद में रहने वाले 'गुमनामी बाबा' ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे, और वह गुप्त रूप से नेताजी से मिला करते थे... अनुज धर ने भी अपनी किताब 'इंडिया'ज़ बिगेस्ट कवर-अप' में कई गोपनीय दस्तावेज़ों और तस्वीरों के हवाले से दावा किया है कि नेताजी वर्ष 1985 तक जीवित थे...
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