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This Article is From Jan 03, 2017

Google Doodle: सावित्रीबाई फुले ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था...

Google Doodle:  सावित्रीबाई फुले ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था...
Savitribai Phule जब पढ़ने जाती थीं तो लोग उन पर गंदगी फेंकते थे....
नई दिल्ली: गूगल ने आज डूडल के जरिए भारत की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारक और मराठी कवयित्री सावित्रीबाई फुले को उनके 186वें जन्मदिन पर श्रद्धांजलि दी है. डूडल ने सावित्रीबाई को अपने आंचल में महिलाओं को समेटते दिखाया है. सावित्रीबाई ने उस समय महिलाओं के विकास के बारे में सोचा, जब भारत में अंग्रेजों का राज था.

1848 में खोला था पहला स्कूल
सावित्री बाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र स्थित सतारा के गांव नायगांव में हुआ था.वह अमीर प्रभावशाली किसान परिवार से संबंध रखती हैं. उस समय महिलाओं को पढ़ने की आजादी नहीं थी, लेकिन फुले ने हिम्मत दिखाते हुए अपनी शिक्षा पूरी की. 1848 में उन्होंने पहला महिला स्कूल पुणे में खोला था. इसके बाद उन्होंने कई महिला स्कूल खोले और उन्हें शिक्षित किया.

स्कूल जाते समय एक साड़ी रख लेती थीं साथ
कहा जाता है कि जब वह स्कूल जाती थीं तो महिला शिक्षा के विरोधी लोग पत्थर मारते थे, उन पर गंदगी फेंक देते थे. महिलाओं का पढ़ना उस समय पाप माना जाता था. सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंचकर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं.

9 साल की उम्र में हो गई थी शादी
दलित परिवार से संबंध रखने वाली सावित्रीबाई फुले की शादी 9 साल की उम्र में ही ज्योतिबा फुले से हो गई थी. उस समय फूले की कोई शिक्षा नहीं हुई थी. समाज में व्याप्त कुरीतियां और महिलाओं की हालत देख सावित्रीबाई फुले ने दलितों और महिलाओं को सम्मान दिलाने का प्रण लिया. बिना किसी आर्थिक मदद के फुले ने लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोल दिए थे. उस दौर में ऐसा सोच पाना भी आसान नहीं थास लेकिन सावित्रीबाई फुले ने ऐसा करके दिखाया. उन्होंने छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया. लगभग 18 दशक बाद महाराष्ट्र सरकार ने सावित्रीबाई फुले के सम्मान में पुणे विश्वविद्यालय का नाम सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय कर दिया। 
savitribai phule

सेवा करते हुए ही दुनिया को अलविदा कह गई थीं सावित्रीबाई फुले
कहा जाता है कि फुले दंपति ने जिस यशवंतराव को गोद लिया था वे एक ब्राह्मण विधवा के बेटे थे. उन्होंने अपने बेटे के साथ मिलकर अस्पताल भी खोला था.इसी अस्पताल में प्लेग महामारी के दौरान सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं. एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण उनको भी यह बीमारी हो गई, जिसके कारण उनकी 10 मार्च 1897 को मौत हो गई.

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