मध्य प्रदेश में तोप से गोले दागकर बताया जाता है इफ्तार-सहरी का समय. तस्वीर: प्रतीकात्मक
नई दिल्ली:
दुनिया भर में रमजान की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. इस साल 27 मई से 24 जून तक रमजान होने की बात कही जा रही है. विविधता में एकता वाले देश भारत में रमजान के कई रंग देखने को मिलते हैं. रोजा, इफ्तार और सहरी पर हर शहरों की अपनी परंपराओं का असर दिखता है. ऐसे में हम आपको मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से जुड़ी रमजान की एक अनोखी परंपरा से रूबरू करा रहे हैं. रायसेन स्थित मस्जिद में पारंपरिक तोप से गोले दागकर लोगों को चांद दिखने की सूचना दी जाती है. चांद का दीदार करने के बाद शहर के काजी मस्जिदों से बारूदी गोले दागते हैं, जिसकी आवाज सुनकर लोग समझ जाते हैं कि अगले दिन से रोजा रखना है. इतना ही नहीं पूरे रमजान में मस्जिद से गोले दागे जाते हैं, जिसकी आवाज सुनकर लोग सहरी और इफ्तार का वक्त जान पाते हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस बार मस्जिद कमिटी ने रमजान के लिए खास तरह के गोले मंगवाए हैं. इन्हें दागे जाने पर रंगीन धुंए निकलेंगे. मसाजिद कमेटी के प्रभारी सेकेट्री यासिर अराफात के हवाले से बताया जा रहा है कि भोपाल के अलावा सीहोर व रायसेन जिलों की मस्जिदों में ये गोले भेजने का जिम्मा मसाजिद कमेटी के पास है. कमेटी भोपाल की 50, सीहोर में 30 व रायसेन जिले में 20 मस्जिदों को गोले भेजती है. रमजान पर हर मस्जिद को करीब 60 गोले दिए जाते हैं.
माहे रमजान में दागे जाने वाले गोले का खर्च मसाजिद कमेटी उठाती है. रमजान में इसे चलाने के लिए स्थानीय डीएम से खासतौर से लाइसेंस लिया जाता है. बताया जाता है कि रायसेन के किले में रखे पुराने तोप से ही सारे गोले दागे जाते हैं. इस तोप में आग के सहारे गोले दागे जाते हैं. तोप का मुंह आसमान की तरफ रखा जाता है ताकि किसी को नुकसान न हो.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस बार मस्जिद कमिटी ने रमजान के लिए खास तरह के गोले मंगवाए हैं. इन्हें दागे जाने पर रंगीन धुंए निकलेंगे. मसाजिद कमेटी के प्रभारी सेकेट्री यासिर अराफात के हवाले से बताया जा रहा है कि भोपाल के अलावा सीहोर व रायसेन जिलों की मस्जिदों में ये गोले भेजने का जिम्मा मसाजिद कमेटी के पास है. कमेटी भोपाल की 50, सीहोर में 30 व रायसेन जिले में 20 मस्जिदों को गोले भेजती है. रमजान पर हर मस्जिद को करीब 60 गोले दिए जाते हैं.
माहे रमजान में दागे जाने वाले गोले का खर्च मसाजिद कमेटी उठाती है. रमजान में इसे चलाने के लिए स्थानीय डीएम से खासतौर से लाइसेंस लिया जाता है. बताया जाता है कि रायसेन के किले में रखे पुराने तोप से ही सारे गोले दागे जाते हैं. इस तोप में आग के सहारे गोले दागे जाते हैं. तोप का मुंह आसमान की तरफ रखा जाता है ताकि किसी को नुकसान न हो.
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