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This Article is From Sep 21, 2015

हार्ट अटैक के बाद दिल की कोशिकाओं को फिर से बना देगा यह प्रोटीन

हार्ट अटैक के बाद दिल की कोशिकाओं को फिर से बना देगा यह प्रोटीन
प्रतीकात्मक तस्वीर
वॉशिंगटन: दिल के मरीजों के लिए एक अच्छी खबर है। वैज्ञानिकों ने ऐसे प्रोटीन की पहचान की है जो दिल का दौरा पड़ने के बाद उसकी मांसपेशी की कोशिकाओं को फिर से बनाने में मदद करता है। अभी इसे जानवरों पर टेस्ट किया गया है। जल्द ही इसे इंसानों पर भी टेस्ट किया जाएगा।

हार्ट अटैक से बचने की संभावना भी बढ़ा देता है यह प्रोटीन...
अनुसंधानकर्ताओं ने यह भी बताया है कि हृदय के अंदर थोड़ी अधिक मात्रा में यह प्रोटीन रखा जाए तो चूहों और सुअरों में इससे न केवल हृदयघात के बाद दिल के कामकाज में सुधार होता है बल्कि उनके बचने की संभावना भी बढ़ जाती है।

पशुओं के मामले में किया जा चुका है टेस्ट...
पशुओं का अगर इस प्रोटीन के पैच के साथ इलाज किया जाए तो चार से आठ सप्ताह के अंदर उनका हृदय सामान्य कामकाज करने की स्थिति के करीब पहुंच जाता है।

इंसानों पर 2017 में होगा परीक्षण...
अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि शायद वर्ष 2017 तक इस तरह का परीक्षण मनुष्य में करना संभव हो पाएगा। इस प्रोटीन की पहचान फोलिस्टैटिन-लाइक 1 (एफएसटीएल1) के तौर पर की गई है। अनुसंधानकर्ताओं ने प्रोटीन का एक पैच तैयार कर उसे प्रायोगिक तौर पर हृदयघात से गुजरे चूहों और सुअरों के हृदयों की सतह पर रखा। एफएसटीएल1 प्रोटीन हृदय के अंदर पहले से ही मौजूद मांसपेशी कोशिकाओं की विभाजन दर को तेज कर, डैमेज हार्ट की मरम्मत के लिए प्रेरित करता है।

हार्ट अटैक के बाद कई बार बच तो जाते हैं मरीज लेकिन...
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पिलर रूइज लोजानो ने कहा कि हृदय की मांसपेशियों की कोशिकाओं का फिर से बनना और उनका जख्मी होना, ये वह दो मुद्दे हैं जिनका अबी तक इलाज नहीं है। इसी के फलस्वरूप कई मरीजों का हृदय सही तरीके से काम नहीं करता और वे दीर्घकालिक विकृति के शिकार हो जाते हैं। इसकी परिणति मौत के रूप में होती है। कई मरीज हृदयाघात के बाद बच जाते हैं। लेकिन, क्षतिग्रस्त अंग और जख्म की वजह से रक्त को पंप करने में दिक्कत होती है। लगातार दबाव की वजह से जख्म बढ़ता जाता है और फिर हृदय काम करना ही बंद कर देता है। इन तथ्यों को देखते हुए अनुसंधानकर्ताओं ने हृदयाघात से गुजर चुके चूहों और सुअरों पर एफएसटीएल1 प्रोटीन के पैच के साथ प्रयोग किया और सफल रहे। अध्ययन के नतीजे 'नेचर' जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।

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