20 रुपए की शीशी कैसे किसानों को मालामाल कर रही है...इसका जीता जागता उदाहरण पंकज वर्मा हैं. डेढ़ लाख की प्राइवेट कंपनी की नौकरी छोड़कर किसान बन गए और आज वेस्ट डिकंपोजर की बीस रुपए की इस शीशी की मदद से फ्रांस दूतावास को जैविक मशरुम और आस्ट्रेलियन दूतावास तो किन्नू खिला रहे हैं. यहां नहीं जिस पराली जलाने की समस्या से परेशान सरकार ने सब्सिडी पर पांच सौ करोड़ खर्च कर दिए हों लेकिन बीस रुपए की एक शीशी किसानों के कहीं ज़्यादा काम आ रही है.
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इससे पराली की समस्या का हल भी मिल रहा है और कीटनाशकों का भी. माना जा रहा है कि ये शीशी खेती की लागत बहुत कम कर सकती है और उन्हे मुनाफ़ा दिला सकती है. गाजियाबाद में रहने वाले किसान पंकज वर्मा बताते हैं सि पराली उनके लिए सोना है ये डिकंपोजर अमृत है. जबसे उन्होंने इसका इस्तेमाल करना शुरु किया है खेत की सेहत बढ़ गई है. फसल में कोई बीमारी नहीं लगती है. हरियाणा के किसान अमित कहते हैं कि हरियाणा के सैकड़ों किसानों को पराली जलाने से रोका है.
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इस डिकंपोजर के जरिए, पराली को खाद में कन्वर्ट किया है. दरअसल यह कोई जादू नहीं, शुद्ध विज्ञान है. इस शीशी में वेस्ट डीकंपोजर है जिसे गाय के गोबर और पत्तियों के जीवाणु से तैयार किया गया है. जो मिट्टी में जैविक परिवर्तन और केचुएं पैदा करते हैं. इसके जरिए पंकज वर्मा जैसे किसान जैविक खेती करके लाखों रुपए कमा रहे हैं. डिकंपोजर का ये सल्यूशन ले जाकर 200 लीटर पानी में दो किलो गुड़ घोलकर डिकंपोजर मिला दे. चार दिन बाद उस घोल का खेतों में छिड़काव करें. फिर इसी से दस लीटर घोल निकालकर 1000 लीटर दोबारा घोल तैयार कर सकते हैं. यानि एक बार सल्यूशन तैयार होने के बाद बार बार किसानों को खरीदना नहीं पड़ेगा.
पंजाब के किन्नू के किसान जीतेंद्र मावी बताते हैं कि किन्नू की खेती पर हर साल वो सात लाख का पेस्टीसाइड प्रयोग करते थे आज केवल पचास हजार के डिकंपोजर से किन्नू की फसल उगाते हैं. इस डीकंपोजर को राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र ने तैयार किया है. केंद्र के डायरेक्टर किशन चंद्रा बताते हैं कि पिछले साल से ही ये वेस्ट कंपोजर किसानों को दिया जा रहे हैं. इस वेस्ट डीकंपोजर की सबसे खास बात ये है कि किसान इसे दोबारा अपने खेत में ही तैयार सकते हैं और इसका इस्तेमाल करने के बाद उन्हें कोई कीटनाशक प्रयोग करने की जरुरत नहीं है.
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