वाशिंगटन:
अमेरिकी विदेश विभाग की तरफ से वैश्विक आतंकवाद पर तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि अल कायदा का केंद्रीय नेतृत्व भले ही कमजोर हो गया है लेकिन लश्कर-ए-तैयबा और अन्य आतंकवादी समूहों के साथ इसके गठजोड़ से दक्षिण एशिया में खतरा अभी बना हुआ है। आतंकवाद पर साल 2010 की सालाना रिपोर्ट में कहा गया कि साल 2010 में अल कायदा अमेरिका के लिए सबसे बड़ा खतरा बना रहा। हालांकि, पाकिस्तान में अल कायदा का केंद्रीय नेतृत्व कमजोर पड़ गया है, लेकिन क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के हमलों को अंजाम देने की इसकी क्षमता बची हुई है। रिपोर्ट कहती है कि अल कायदा और अफगानिस्तान और पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों के बीच आपसी सहयोग काफी खतरनाक है। इसके अलावा, लश्कर-ए-तैयबा का खतरा और अल कायदा और पाकिस्तान स्थित इसके सहयोगियों और तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) और हक्कानी नेटवर्क जैसे संगठनों के बीच आपसी सहयोग से दक्षिण एशिया में खतरा बना हुआ है। इसमें कहा गया है कि तेहरान द्वारा समूचे पश्चिम और मध्य एशिया में आतंकवाद और आतंकवादी समूहों को वित्तीय मदद, सामग्री और साजो-सामान की मदद देने का शांति को प्रोत्साहन देने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों पर सीधा असर है और उसने खाड़ी क्षेत्र में आर्थिक स्थिरता को खतरा पहुंचाया है और लोकतंत्र के विकास को कमजोर किया है। साल 2010 में ईरान उन समूहों का प्रमुख समर्थक रहा, जो पश्चिम एशिया में शांति प्रक्रिया के विरोधी रहे हैं। सूडान को 1993 में आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देश का दर्जा दिया गया। विदेश विभाग ने कहा कि वह अल कायदा के खिलाफ 2010 में वैश्विक आतंकवाद निरोधी प्रयासों में सहयोगी रहा। पिछले साल सूडान की सरकार ने अल कायदा के अभियानों का प्रतिरोध करने के लिए सक्रियता से काम किया। अल कायदा के अभियान अमेरिकी हितों और सूडान में उसके कर्मियों के लिए संभावित खतरा थे। रिपोर्ट में बताया गया है कि सीरिया को आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देश का दर्जा 1979 में दिया गया था। साल 2010 में उसने विभिन्न आतंकवादी समूहों को राजनैतिक समर्थन दिया जिससे क्षेत्र और उसके बाहर स्थिरता प्रभावित हुई। विदेश विभाग ने कहा कि सीरिया ने लेबनान में हिजबुल्ला को समर्थन दिया और ईरान को आतंकवादी संगठनों को हथियारों की फिर से आपूर्ति की अनुमति दी।
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अल कायदा, आतंकवाद, अमेरिका