काठमांडू:
मुश्किल दौर से गुजर रहे नेपाल के प्रधानमंत्री झलनाथ खनाल ने शनिवार को अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया। खनाल ने यह निर्णय सहयोगी पार्टियों के उस सुझाव पर लिया कि यदि वह इस्तीफा देते हैं तो देश में एक गम्भीर राजनीतिक संकट उत्पन्न हो जाएगा। देर शाम कम्युनिस्ट प्रधानमंत्री के सरकारी आवास पर हुई एक आपात बैठक में माओवादियों, सरकार को बाहर से समर्थन देने वाले राजनीतिक दल और सरकार की सहयोगी पार्टियां शामिल हुईं। बैठक में दलों ने 31 अगस्त तक खनाल को पद पर बने रहने का सुझाव दिया। ज्ञात हो कि नए संविधान के निर्माण की समयसीमा 31 अगस्त निर्धारित की गई है। गठबंधन सरकार के सहयोगियों ने कहा कि अंतरिम संविधान की समयसीमा 31 अगस्त को समाप्त हो रही है और इसकी जगह लेने वाला नया संविधान अभी तैयार नहीं है। इसे ध्यान में रखते हुए नए संविधान के निर्माण की समयसीमा फिर से बढ़ानी होगी। उन्होंने कहा कि ऐसे में देश में यदि कार्यवाहक सरकार आती है तो उसके पास यह संवैधानिक शक्ति नहीं होगी कि वह समयसीमा बढ़ाए और यदि ऐसा होता है तो देश में राजनीतिक संकट उत्पन्न हो जाएगा। खनाल की सरकार शांति प्रक्रिया आगे बढ़ाने और एक नए संविधान के निर्माण में असफल हुई है। खनाल को उम्मीद थी कि यदि वह अपने इस्तीफे की घोषणा करते हैं तो इससे माओवादियों पर दबाव बनेगा और उनकी सरकार एक बार फिर बच जाएगी। इसके पहले प्रधानमंत्री ने माओवादी नेतृत्व के समक्ष पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के करीब 20000 लड़ाकों में से लगभग 7000 को नेपाल आर्मी में शामिल करने का प्रस्ताव रखा। इसके अलावा उन्होंने शेष प्रत्येक लड़ाकों को करीब सात लाख नेपाली रुपये देने और उन पर से आरोप वापस लेने का भी प्रस्ताव रखा है। माओवादी यदि खनाल के इस प्रस्ताव से सहमत हो जाते हैं तो प्रधानमंत्री को अपना पद छोड़ने की घोषणा से छुटकारा मिल जाएगा। खनाल को उम्मीद है कि माओवादी प्रमुख पुष्प कमल दहाल प्रचंड उनके प्रस्ताव से सहमत होंगे क्योंकि मंत्रिमंडल की नियुक्तियों में उन्होंने पूर्व माओवादियों को काफी सहूलियतें दीं। प्रधानमंत्री की उम्मीद को हालांकि शुक्रवार को एक तगड़ा झटका उस समय लगा जब माओवादी नेतृत्व ने एक बैठक में पीएलए पर खनाल के प्रस्ताव पर चर्चा किया और एक सिरे से उसे खारिज कर दिया। बैठक के बाद माओवादी नेता सी.पी. गजुरेल ने पत्रकारों को बताया, "प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए प्रस्ताव पर सहमत होने का हम कोई कारण नहीं देखते और संसद में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते माओवादियों को सरकार का नेतृत्व करना चाहिए।" वहीं, ऊर्जा मंत्री गोकर्णा बिस्ता ने कहा, "चूंकि प्रधानमंत्री ने कहा है कि यदि शांति प्रक्रिया में शनिवार तक प्रगति नहीं होती तो वह इस्तीफा दे देंगे। उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।"
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