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This Article is From Nov 21, 2017

EXCLUSIVE: जर्मनी का 'चिपको' आंदोलन, हमबख के जंगलों को बचाने के लिए पेड़ों पर बनाए घर

जर्मनी के बॉन शहर में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के वक्त जहां एक ओर दुनिया भर से इक्ट्ठा हुए कई लोग कोयले के इस्तेमाल के खिलाफ नारे लगाते रहे, वहीं दूसरी ओर...

EXCLUSIVE: जर्मनी का 'चिपको' आंदोलन, हमबख के जंगलों को बचाने के लिए पेड़ों पर बनाए घर
हमबख के जंगल
बॉन: जर्मनी के बॉन शहर में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के वक्त जहां एक ओर दुनिया भर से इक्ट्ठा हुए कई लोग कोयले के इस्तेमाल के खिलाफ नारे लगाते रहे, वहीं दूसरी ओर यहां से कुछ किलोमीटर दूर मुट्ठी भर लोग धरती के सबसे पुराने जंगलों में से एक को बचाने के लिए लड़ते दिखे. बॉन से कोई 50 किलोमीटर दूर हमबख के जंगल आज खत्म होने की कगार पर हैं. इन जंगलों को बचाने के लिए लोग कहते हैं कि पुलिस दमन का खतरा हर वक्त मंडराता है, कई साथी जेल में हैं. हमसे बात करते वक्त इन लोगों ने अपने चेहरे नहीं दिखाए और पहचान छुपाए रखी.

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इनमें से एक ह्यूगो (बदला हुआ नाम) का कहना है कि बिजली बनाने वाली जर्मनी की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी RWE यूरोप के सबसे पुराने जंगल को ब्राउन कोल के खनन के लिए खत्म कर रही है. लोगों को अपने घरों से हटाया जा रहा है. हमबख के जंगलों का नब्बे प्रतिशत हिस्सा काटा जा चुका है. पावर और माइनिंग कंपनी RWE को यहां जमीन के नीचे दबे ब्राउन कोल का ठेका मिला है जो बिजली बनाने के लिये इस्तेमाल किया जा रहा है.
 
hambach forest

इन प्रदर्शनकारियों ने पुलिस और माइनिंग कंपनी के लोगों को भीतर घुसने से रोकने के लिए जंगल में प्रवेश करने वाली सड़कों को काट दिया है. हमबख फॉरेस्ट को घुसते वक्त हमें शुरुआत में ही एक बैनर लगा दिखा जिसमें अंग्रेज़ी में लिखा था- 'रिस्पेक्ट एक्जिस्टेंस ऑर एक्पेक्ट रेजिस्टेंस' यानी लोगों की ज़िंदगी का सम्मान करो वरना विरोध का सामना करो. इसी बैनर के साथ लगा था एक नाका जिस पर एक क्रॉस पर जीसस का पुतला लगाया गया था. 

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विरोध करने वालों में से एक ने कहा कि इस नाके का मकसद पुलिस को जंगल में आने से रोकना है ताकि जंगल को बरबादी से बचाया जा सके. हम दुआ करते हैं कि ड्राइवर ईसाई हो और यीशू के पुतले को तोड़कर गाड़ी ले जाने से मना कर दे.

जलवायु परिवर्तन वार्ता में भले ही जर्मनी पूरी दुनिया के देशों से कार्बन उत्सर्जन कम करने की बात करता हो लेकिन यह सच है कि आज यूरोप का सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है. यूरोप का 20 प्रतिशत उत्सर्जन जर्मनी ही करता है और इस सच की गवाह है हमबख जंगलों से लगी कोयला खदान. करीब 84 वर्ग किलोमीटर में फैली यह यूरोप की सबसे बड़ी कोल माइन कही जाती है  जिससे सालाना 4 करोड़ टन कोयला निकाला जा रहा है. ज्यादातर बिजली निर्यात कर दी जाती है यानी अगर जर्मनी चाहे तो कोयले के इस्तेमाल को कम कर सकता है.
 
hambach forest

हमबख में लड़ रहे आंदोलनकारियों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की वजह से जर्मनी सरकार और पावर कंपनी ने पेड़ों को काटने का काम रोक दिया है लेकिन जैसे ही दुनिया भर से आए पर्यावरणविद् और दूसरे देशों के लोग चले जायेंगे तो ये जंगल काट दिया जायेगा. जंगलों को बचाने की ऐसी लड़ाई दुनिया भर में चल रही है. मध्य भारत के बस्तर और झारखंड से लेकर हिमालयी राज्यों में चल रहे संघर्ष की झलक हमबख के जंगलों में दिखती है. यहां आकर लगा कि जैसे सत्तर के दशक में उत्तराखंड का चिपको आंदोलन यूरोप में हमबख के जंगलों में चला आया हो. तब गौरा देवी गढ़वाल के जंगलों को बचाने के लिये महिलाओं के साथ पेड़ों से चिपक गईं और यहां ट्री-हाउस (मचान)  बना कर रह रहे लोग पेड़ों के कटने से पहले खुद मर जाना चाहते हैं.

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एक आंदोलनकारी ने कहा, इस तरह मचान बनाने का मकसद पेड़ों को कटने से बचाना है. जब तक इस पेड़ पर कोई आदमी चढ़ा रहेगा इसे काटा नहीं जा सकता. इस तरह से हम पेड़ों को कटने और कोयले के खनन को रोक सकते हैं और जलवायु बिगड़ने से बचा सकते हैं.

यह तमाम पर्यावरण प्रेमी जर्मनी से ही नहीं बल्कि दुनिया के अलग अलग देशों के हैं जो हमबख के बचे खुचे अस्तित्व को लुटने से बचाने के लिये इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा, इटली औऱ स्पेन से यहां डेरा डाले हैं. यहां जो जंगल बचा है उसे इन्होंने अपना घर बना लिया है और हटने को तैयार नहीं. एक आंदोलनकारी ने कहा, यह एक जंगल को बचाने की लड़ाई नहीं है. हम एक ऐसे हालात से लड़ रहे हैं जहां बिजली बनाने के लिए लिग्नाइट का इस्तेमाल रोका जा सके. हम जलवायु परिवर्तन को गलत मानते हैं और धरती को बचाने के साथ राज्यसत्ता की हिंसा के खिलाफ काम कर रहे हैं.
 
hambach forest

क्रिश्यचन एड के राम किशन दुनिया भर में आपदा और जंग से जूझ रहे लोगों के बीच राहत कार्यों से जुड़े हैं. उनका कहना है कि हमबख में जर्मन सरकार जैसी अनदेखी कर रही है वह लोगों के गुस्से को बढ़ाने में और शांतिपूर्ण संघर्ष के हिंसक बन जाने का रास्ता तैयार करता है. रामकिशन कहते हैं कि मैं दुनिया के तमाम देशों में यह देख चुका हूं कि खनिजों की लूट के लिए सरकार और कंपनियां पर्यावरण की परवाह नहीं करती और स्थानीय लोगों को धोखा देती हैं. शांतिपूर्ण संघर्ष को अनदेखा करना खतरनाक हो सकता है और अशान्ति का रास्ता तैयार करता है.

हमबख आंदोलनकारियों में से एक ने कहा कि मैं खुद हथियार नहीं उठा रहा. मैं नाके लगाकर और मुश्किलें पैदा कर इस जंगल को आखिरी वक्त तक बचाने की कोशिश करुंगा. लेकिन अगर कोई हथियार उठाकर आक्रामक रूप से जंगल को बचाने की कोशिश करता है तो मैं उसका समर्थन करूंगा.

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एक ऐसे वक्त में जब जर्मनी दुनिया को साफ ऊर्जा के इस्तेमाल की नसीहत दे रहा हो हमबख दुनिया के ताकतवर देशों को आईना दिखाता है. यह एक नसीहत हमारी सरकार के लिए भी है जहां वन सम्पदा से समृद्ध जंगलों से बार बार आदिवासियों को विस्थापित होना पड़ता है.

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