पाकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक चल रही है. इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर पाकिस्तान पहुंचे हैं. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसका उद्देश्य यूरेशिया में राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य सहयोग को बढ़ावा देना है. इसे 2001 में चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं ने मिलकर स्थापित किया था. भारत को इस संगठन में बाद में सदस्यता मिली. पाकिस्तान भी इस संगठन का सदस्य है. आइए जानते हैं यह भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है.
मध्य एशियाई देश कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. बताते चलें कि यह क्षेत्र भारते के विस्तारित पड़ोस का हिस्सा के तौर पर देखा जाता है.
एससीओ एक ऐसा मंच प्रदान करता है जहां एक ही मंच पर वो तमाम देश आ जाते हैं जो भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं.
ये वो देश हैं जिनके ऊपर भारत सुरक्षा, ऊर्जा और कनेक्टिविटी जैसी चीजों के लिए निर्भर है और व्यापार तथा निवेश के लिए ये देश बेहद उपयोगी हैं.
भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 85% आयात करता है, और तुर्कमेनिस्तान के पास प्राकृतिक गैस का दुनिया का चौथा सबसे बड़ा भंडार है. कजाकिस्तान विश्व में यूरेनियम अयस्क का सबसे बड़ा उत्पादक है. भारत कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के साथ भी सैन्य अभ्यास करता रहा है.
इस संगठन पर शुरुआत से ही चीन की पकड़ मजबूत रही है. भारत जब इसका सदस्य बन रहा था तो देश में इसकी आलोचना हुई थी हालांकि बाद में इसके महत्व देखते हुए इसे सही कदम माना गया.
SCO के आठ सदस्य देश हैं. चीन, भारत, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, पाकिस्तान, रूस, उज़्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान. ईरान जल्द ही संगठन में शामिल होने वाला नया सदस्य बन सकता है.
इस संगठन में अफगानिस्तान, बेलारूस और मंगोलिया पर्यवेक्षक का दर्जा रखते हैं और वे भी ईरान की तरह संगठन की सदस्यता चाहते हैं.
पाकिस्तान में हो रहे कार्यक्रम में भारत के हिस्सा लेने को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं हालांकि इस संगठन के अंतर्गत कई ऐसे देश हैं जिनमें आपसी द्वंद रहे हैं.
भारत और पाकिस्तान की ही तरह किर्गिज़स्तान और ताजिकिस्तान के बीच भी सीमा विवाद देखने को मिलता रहा है.
तालिबानी नेतृत्व वाले अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच भी कई बार सीमा विवाद होते रहे हैं. बताते चलें कि SCO का मुख्य उद्देश्य यूरेशिया में शांति को बढ़ावा देना है.