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This Article is From Aug 16, 2021

अफगानिस्‍तान संकट : तालिबान की सत्‍ता में वापसी से महिलाओं को सता रहा हकों को छीने जाने का डर

तालिबान ने पिछली बार शरिया लॉ के कट्टरपंथी वर्जन को लागू किया था जिसके तहत महिलाओं और लड़कियों को शिक्षा और रोजगार से वंचित कर दिया गया था. महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्‍थानों पर पूरा चेहरा ढंकना अनिवार्य कर दिया था  और किसी पुरुष सहयेागी के बिना उनके लिए घर से बाहर निकलने की मनाही थी.

अफगानिस्‍तान संकट :  तालिबान की सत्‍ता में वापसी से महिलाओं को सता रहा हकों को छीने जाने का डर
राजधानी काबुल पर कब्‍जे के साथ ही तालिबान का अफगानिस्‍तान पर पूरा नियंत्रण हो गया है

अफगानिस्‍तान संकट : अफगानिस्‍तान में तालिबान के शासन की पहली रात आयशा खुर्रम ने जागते हुए ही काटी. गोलियां की आवाजें और विमानों का आवाज लगातार रात के सन्‍नाटे को ब्रेक कर रही थी. उन्‍होंने इस दिन को पूरे मुल्‍क के लिए कयामत की तरह बताया. सोमवार को सिलसिलेवार ट्वीट के जरिये अपने अनुभव न्‍यूज एजेंसी AFP के साथ शेयर करते हुए आयशा ने कहा, 'पलक झपकते ही सब कुछ ढहते हुए, तबाह होते हुए देखना, यह सब पूरे देश के लिए कयामत के दिन जैसा था.. ' तालिबान के लड़ाकों ने रविवार को राजधानी काबुल (Afghanistan capital Kabul)पर भी कब्‍जा जमा लिया. कट्टरपंथी समूह पहले ही अफगानिस्तान के ज्यादातर शहरों और प्रांतों पर कब्जा जमाकर अपना वर्चस्व कायम कर चुका है और सिर्फ काबुल ही उसकी पहुंच से बाहर रह गया था.

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 22 वर्षीय खुर्रम, यूनाइटेड नेशंस की पूर्व यूथ रिप्रजेंटेटिव है और वे काबुल यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन से कुछ ही माह की दूरी पर हैं. हालांकि अब वे जानती है कि 'शैतान' तालिबानियों के आने के बाद उनके और उनकी सहयोगी महिला स्‍टूडेंट्स के भविष्‍य को लेकर अनिश्चितता गहरा गई है.  उन्‍होंने कहा, 'दुनिया और अफगान नेताओं ने अफगानिस्‍तान की युवा पीढ़ी (के सपनों) को निर्मम तरीके से नाकाम  कर दिया. यह उन शिक्षित महिलाओं के लिए बुरे सपने की तरह है जो अपने और आने वाली पीढ़ी के लिए उज्‍जवल भविष्‍य की कल्‍पना कर रही थी.'

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हालांकि, पिछली बार 1996 से 2001 तक अफगानिस्‍तान की सत्‍ता में रहे तालिबानी नेतृत्‍व  ने सत्‍ता में वापसी के बाद इस बार, पिछली बार की तुलना में कुछ उदारवादी छवि पेश करने का प्रयास किया है लेकिन महिलाएं इनमें वादों पर ऐतबार करने के लिए तैयार नहीं हैं. तालिबान ने पिछली बार शरिया लॉ के कट्टरपंथी वर्जन को लागू किया था जिसके तहत महिलाओं और लड़कियों को शिक्षा और रोजगार से वंचित कर दिया गया था. महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्‍थानों पर पूरा चेहरा ढंकना अनिवार्य कर दिया था  और किसी पुरुष सहयेागी के बिना उनके लिए घर से बाहर निकलने की मनाही थी.

 व्‍याभिचार (adultery) के लिए शहर के चौराहों और  स्‍टेडियमों में पत्‍थरों/कोड़ों से मारने और फांसी देने जैसी पुरातन काल की सजाएं थीं और कई बार तो प्रभावित को अपना पक्ष रखे बिना ही सजा दे दी जाती थी. हालांकि तालिबानियों के सत्‍ता से बाहर होने के बाद भी इन प्रथाओं का पूरी तरह से खात्‍मा नहीं हुआ. खासकर ग्रामीण इलाकों में  महिलाएं  हाशिये पर थीं और उन पर तमाम बंदिशें थीं.  इसके बावजूद कहा जा सकता है कि पिछले दो दशक में शहरों में महत्‍वपूर्ण प्रगति दिखी. महिलाएं यूनिवर्सिटी में पढ़ रही हैं और मीडिया, सियासत, न्‍यायपालिका यहां तक कि सुरक्षा बलों में भी अहम पदों पर हैं. महिलाओं को यह आशंका सता रही कि तालिबान के आने से उनके सपने कहीं चूर न हो जाएं.  पिछले 24 घंटों में काबुल की कई प्रमुख महिलाओं ने सोशल मीडिया के जरिये अपनी पीड़ा का इजहार किया. 

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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