Ramdhari Singh Dinkar Birth Anniversary
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राष्ट्रकवि जयंती विशेष: 'अब प्राण का भी मोह नहीं...' जब 'उर्वशी' के लिए दिनकर ने लगा दी जान की बाजी, मिला 'ज्ञानपीठ' पुरस्कार
- Tuesday September 23, 2025
सबसे कठिन समय तब आया जब 1960 में दिनकर गंभीर रूप से बीमार पड़ गए. शरीर जवाब देने लगा था, और यह भय सताने लगा कि कहीं मृत्यु पहले न आ जाए और 'उर्वशी' अधूरी न रह जाए. पर दिनकर ने निर्णय लिया, अब चाहे कुछ भी हो, इस कविता को पूरा किए बिना वे प्राण नहीं त्यागेंगे.
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Ramdhari Singh Dinkar Poem: रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चांद...दिल छू लेगी 'दिनकर' की ये कविता
- Saturday May 3, 2025
दिनकर की कविताएं साहस, देशभक्ति और सामाजिक चेतना से भरी होती हैं, जो आज भी युवाओं को प्रेरित करती हैं. आज उनकी रचनाओं में से पेश है 'रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद' जो आपकों बेहद पसंद आएगी.
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PM मोदी ने कवि दिनकर की जयंती पर दी श्रद्धांजलि, कहा- उनकी कालजयी कविताएं करती रहेंगी प्रेरित
- Wednesday September 23, 2020
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिंदी जगत के मूर्धन्य कवि रामधारी सिंह दिनकर (Poet Ramdhari Singh Dinkar) की जयंती पर बुधवार को उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा, कि उनकी कालजयी कविताएं देशवासियों को प्रेरित करती रहेंगी।
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जब रामधारी सिंह दिनकर ने कहा- ''अच्छे लगते मार्क्स, किंतु है अधिक प्रेम गांधी से..''
- Monday September 23, 2019
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) की आज जयंती है. उनकी जयंती (Ramdhari Singh Dinkar Jayanti) के मौके पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है. दिनकर एक ऐसे कवि थे जो सत्ता के करीब रहते हुए भी जनता के दिलों में रहे. देश की आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी मिलने तक के सफर को दिनकर (Dinkar) ने अपनी कविताओं द्वारा व्यक्त किया है.
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उर्वशी के दिनकर और दिनकर की उर्वशी...
- Thursday September 22, 2016
रामधारी सिंह 'दिनकर' के बारे में आपने पहले ही बहुत पढ़ा होगा. कभी उनकी जीवनी, कभी उनकी कविताएं, तो कभी उनकी लेखन शैली के बारे में. आज यहां इस लेख में मैं ऐसा कुछ नहीं लिखूंगी... खुद को बयां करने के लिए दिनकर ने इतनी रचानाएं दी हैं कि उनसे मिले बिना उनके बेहद करीब महसूस किया जा सकता है.
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सबसे कठिन समय तब आया जब 1960 में दिनकर गंभीर रूप से बीमार पड़ गए. शरीर जवाब देने लगा था, और यह भय सताने लगा कि कहीं मृत्यु पहले न आ जाए और 'उर्वशी' अधूरी न रह जाए. पर दिनकर ने निर्णय लिया, अब चाहे कुछ भी हो, इस कविता को पूरा किए बिना वे प्राण नहीं त्यागेंगे.
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