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This Article is From Dec 01, 2016

संगरूर : कैश की जद्दोजहद, कड़ाके की ठंड में लोग बैंक के बाहर रात काटने को मजबूर

संगरूर : कैश की जद्दोजहद, कड़ाके की ठंड में लोग बैंक के बाहर रात काटने को मजबूर
संगरूर: नोटबंदी के चलते ग्रामीण इलाकों में लोगों को बैंक के बाहर रात गुजारनी पड़ रही है. पंजाब के संगरूर जिले में गांववाले रात भर एक बैंक के बाहर डेरा डाले रहे, क्योंकि उन्हें शक था कि बैंक वाले अंधेरे में अपने जान पहचान वालों की मदद कर रहे थे. गुरुवार की सुबह बैंक ने धरने पर बैठे लोगों को सबसे पहले कैश बांटा.

संगरूर के लहरागागा में बुधवार की रात कड़ाके की ठंड के बावजूद अशोक कुमार को स्टेट बैंक ऑफ पटियाला के बाहर धरने पर बैठने को मजबूर होना पड़ा. बहन की शादी के लिए रकम की सख्त जरूरत है, लेकिन पिछले कई दिनों से लाइन में घंटों खड़े होने के बावजूद नंबर आने से पहले कैश खत्म होने की वजह से बैंक से खाली हाथ लौट रहे थे.

अशोक कुमार ने बताया, 'मेरी बहन की शादी 8 दिसम्बर को है. पिछले बुधवार से यहां चक्कर काट रहा हूं. सरकार कह रही है कि शादी के लिए ढाई लाख मिल सकते हैं, लेकिन बैंक मैनेजर कह रहे हैं कि रूल बादल गए हैं.'

अशोक की तरह कई और गांव वाले रजाई-कंबल लेकर बैंक के बाहर डटे रहे. गांव वालों का आरोप है कि कई बार बैंक के चक्कर काटने के बावजूद उन्हें रकम नहीं मिल रही थी, इसलिए ऐसा करना पड़ा. बुजुर्गों से लेकर स्कूल प्रिंसिपल तक, बैंक के बाहर धरने पर बैठे.

71 साल के बलजिंदर सिंह कहते हैं, 'हमने साफ कह दिया है कि रात 11 बजे तक काम करना पड़े, लेकिन कैश दो. हम यहीं धरने पर बैठेंगे. कुछ भी हो जाए.'

एक स्कूल के प्रिंसिपल गुरचरण सिंह ने बताया, 'पिछले एक महीने से बच्चों को उधार पर खाना खिला रहा हूं. अकाउंट में पैसे आ गए हैं. फिर भी बैंक कहता है कैश खत्म हो गया. अब तभी वापस जाऊंगा जब कैश मिलेगा.'

स्टेट बैंक ऑफ पटियाला के मैनेजर तो कैमरे के सामने नहीं आए, लेकिन बगल में स्थित ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स के ब्रांच मैनेजर ने अपना हाल सुनाया. उन्होंने कहा, पहले डेढ़-दो करोड़ रुपये कैश रोज आता था. खरीद सीजन में कैश का लेनदेन काफी होता है, लेकिन अब कभी दो लाख, कभी चार लाख तो कभी छह लाख रुपये ही आ रहे हैं. जितनी जरूरत है, उसके मुताबिक कैश नहीं आ रहा.

पंजाब के ग्रामीण इलाकों की अर्थव्यवस्था को-ऑपरेटिव बैंक के सहारे है. राज्य के करीब 800 को-ऑपरेटिव बैंकों में भी कैश की किल्लत है, जिसके चलते गांव वाले कैश के लिए सरकारी और प्राइवेट बैंकों के भरोसे हैं.

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