बिहार के आरा से चुनावी शंखनाद करते हुए केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ा ऐलान कर दिया. उन्होंने स्पष्ट कहा- “हां, मैं चुनाव लड़ूंगा, 243 में से हर सीट पर हमारी पार्टी चुनाव लड़ेगी. लड़ाई बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट की होगी.” हालांकि वे खुद किस सीट से मैदान में उतरेंगे, यह उन्होंने जनता पर छोड़ दिया. कहा- “आप जहां से कहेंगे, वहीं से चुनाव लड़ूंगा.”
अब सवाल उठता है—क्या वाकई चिराग केंद्र की राजनीति छोड़कर बिहार की राजनीति में पूरी तरह उतरने जा रहे हैं? क्या यह महज़ सियासी दांव है या वाकई किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा?
बिहार की राजनीति जानने-समझने वाले इस घोषणा को थोड़े संदेह की नज़र से देख रहे हैं. कारण साफ है—यहां अक्सर जो कहा जाता है, वह होता नहीं है. राजनीति में शब्दों और इरादों के बीच की दूरी कभी-कभी बहुत लंबी होती है.

एनडीए का समीकरण और चिराग की हकीकत
हालिया मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एनडीए में विधानसभा सीटों का बंटवारा लोकसभा नतीजों के आधार पर तय हो सकता है. सूत्रों की मानें तो जेडीयू को 102-103, बीजेपी को 101-102, और बाकी बची करीब 40 सीटों में लोजपा (रामविलास) को 25-28 सीटें मिल सकती हैं.
हिंदुस्तान आवाम मोर्चा को 6-7 और राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 4-5 सीटें दी जा सकती हैं.
इस बार माना जा रहा है कि चिराग एनडीए के साथ ही रहेंगे, क्योंकि पिछला अनुभव अकेले लड़ने का सबक दे गया. लेकिन बीजेपी उन्हें 30 से ज़्यादा सीटें देने के पक्ष में नहीं दिखती. सवाल ये उठता है—क्या 30 सीटों के दम पर चिराग मुख्यमंत्री बन पाएंगे? इसकी संभावना बेहद कम है.
अगर वे बीजेपी में शामिल न भी हों, तो भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं—लेकिन कैसे? समझिए
पिछली बार एनडीए और महागठबंधन के बीच सीटों का अंतर महज़ 10–15 सीटों का था. विधानसभा में सीटों का बंटवारा बीजेपी और जेडीयू अपने-अपने कोटे से करते हैं और छोटे दलों को उसमें से हिस्सा देते हैं. जैसे अगर बीजेपी को 122 सीटें मिलती हैं, तो उसी में से वह चिराग, मांझी, और कुशवाहा को सीटें देती है. यही बात 2020 में चिराग को नागवार गुज़री थी और उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था.
इसके बावजूद, अगर चिराग 20–22 सीटें जीत लाते हैं और एनडीए और महागठबंधन के बीच अंतर मामूली रहता है, तो सत्ता की चाबी उनके हाथ में आ सकती है. और हो सकता है, राजद चिराग को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने की कोशिश करे.
फिर क्यों हैं इतने आक्रामक?
क्या चिराग केंद्रीय मंत्री पद छोड़कर बिहार में मंत्री बनने का जोखिम उठाएंगे? अभी यह साफ नहीं है. नीतीश कुमार के भविष्य को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है. जेडीयू भले उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाना चाहती हो, बीजेपी खुलकर कुछ नहीं बोल रही. ऐसे में महाराष्ट्र जैसा कोई फार्मूला बिहार में भी लागू हो सकता है.

कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी चिराग को तभी मुख्यमंत्री पद का चेहरा बना सकती है, जब वह अपनी पार्टी का विलय बीजेपी में कर दें. लेकिन मौजूदा हालात में इसकी संभावना बेहद क्षीण है.
चिराग की रैलियों में अच्छी-खासी भीड़ उमड़ती है, और वह भी सभी जातियों से. उनके साथ करीब 7% दलित वोट जुड़ा है, जो उनके पिता रामविलास पासवान की विरासत है. बीजेपी इस आधार वोट को नाराज़ नहीं करना चाहेगी.
सीमाएं और संभावनाएं
चिराग के राजनीतिक सफर की कुछ सीमाएं भी हैं. इस बार जेडीयू के सामने वोट काटने का काम प्रशांत किशोर की पार्टी कर सकती है. किशोर दोनों नीतीश और तेजस्वी पर बराबर निशाना साध रहे हैं. ऐसे में समीकरण नए बन सकते हैं.
चिराग मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं, यह बात अब छिपी नहीं है. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व के खिलाफ जाकर कोई अलग मोर्चा बना लें, इसकी संभावना न के बराबर है. यही वजह है कि वह 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं, जाहिर तौर पर यह दबाव की रणनीति है.
इस बार मुकाबला एनडीए बनाम महागठबंधन तय है. लेकिन चिराग इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का सपना देख रहे हैं. वे सफल होंगे या नहीं—यह आने वाला वक्त तय करेगा.
राजीव रंजन NDTV इंडिया में डिफेंस एंड पॉलिटिकल अफेयर्स एडिटर हैं...
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